फाइजर कंपनी ने अपनी वैक्सीन को मंजूर कराने का भारत में आवेदन किया है। यह आश्चर्यजनक है इसलिए कि कंपनी के पास पहले से ही विकसित देशों के कई महीनों के एडवांस ऑर्डर हैं। सारे अमीर-विकसित देश फाइजर व मार्डेना वैक्सीन पर टूट पड़ रहे हैं। फिर इस टीके से लिए माइनस 70 डिग्री के कोल्ड स्टोरेज की जरूरत भारत के लिए झंझट वाली बात है। इन दोनों कंपनियों की वैक्सीन की कीमत भी भारी है। बावजूद इसके फाइजर कंपनी ने भारत में तुरंत सप्लाई की संभावना में धंधा भारी बूझा है तो सीधा अर्थ है कि भारत के आला सत्तावान, पैसे वाले, क्रीमी लेयर अपने लिए खास वैक्सीन उपलब्ध रखने की रणनीति सोचे हुए हैं। मोदी सरकार के टीकाकरण प्रोग्राम में वह छूट या लचीलापन होगा, जिससे नेता, मंत्री, अफसर, अमीर लोग बिजनेस क्लास वाले अमीर अमेरिकी-यूरोपीय कंपनी की टीके लगवाएंगे जबकि आम जनता याकि कैटल क्लास को देशी वैक्सीन, रूसी वैक्सीन, ऑक्सफोर्ड या डब्ल्यूएचओ के जरिए आई वैक्सीन के टीके उपलब्ध होंगे।
मोदी सरकार ने दो बातें गजब कही हैं। एक, सभी को टीका लगाने के लिए सरकार ने कभी नहीं कहा। दूसरे, न ही सभी को मुफ्त में टीके की बात है। सरकार अपने एप और शायद आधार कार्ड से टीकाकरण को जरूर जोड़ कर उपलब्धि का ढिंढोरा पीटेगी, डाटाबेस बनाएगी और अपनी पसंद की कंपनियों को कोविड सुरक्षा मिशन में अरबों रुपए देकर वैक्सीन खरीद उन्हें बांटेगी भी लेकिन खुले बाजार का खेल भी चलेगा। फिलहाल लगता है आठ-दस कंपनियों को सरकारी ठेका मिलेगा। इसमें रूस का स्पूतनिक टीका भी हो सकता है तो ऑक्सफोर्ड के सीरम संस्थान का कोवीशील्ड व भारत की देशी कंपनी बायोटेक की कोवैक्सीन भी हो सकती है तो मंहगी याकि बिजनेस क्लास वाली फाइजर-बायोएनटेक की एमआरएनए तो निश्चित ही होगी। मार्च आते-आते छह-आठ कंपनियों से भारत सरकार जहां थोक में सौदे करेगी तो उनका वितरण लॉजिस्टिक की दलीलों पर मनमाना होगा। मतलब झारखंड, बिहार में यदि कोल्ड स्टोरेज का टोटा है तो प्रोटीन आधारित फार्मूलों वाले, सस्ते टीके पहुचेंगे और दिल्ली, मुंबई के एम्स जैसे नामी सरकारी संस्थानों में मंत्रियों, अफसरों के लिए महंगे टीके का स्टोरेज होगा। ऐसे ही नामी प्राइवेट अस्पताल भी अपनी बिजनेस क्लास के लिए महंगा टीका लिए हुए होंगे।
हां, यह शक भारत में फाइजर की फुर्ती से इमरजेंसी उपयोग की मंजूरी के आवेदन से बना है। टीका आधार कार्ड या एप मे डाटा एंट्री के साथ भले हो लेकिन यदि अलग-अलग रेट के खुले खेल से होना है तो अमीर-गरीब का फर्क अपने आप बनेगा और अगले छह महीने अमीर-मध्यवर्गीय जुगाड़ुओं की वह भगदड़ मचेगी, जिस पर जितना सोचें कम होगा। एक गंभीर पेंच यह भी है कि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि कौन सी वैक्सीन कितने महीनों या कितने साल प्रभावी रहनी है? रूस, चीन, ब्रिटेन, अमेरिका, भारत आदि की जितनी कंपनियों वैक्सीन बना रही हैं उनके उत्पाद के प्रभावी रहने की अवधि, साइड इफेक्ट आदि का कोई आकलन सार्वजनिक डोमेन में नहीं है। इसलिए भारत जैसे बड़े बाजार में अलग-अलग कंपनियों की वैक्सीन की थोक खरीद, थोक उपयोग मैं कैसी क्या भगदड़ होगी, कैसे क्या गोलमाल होगा इसकी पारदर्शिता संभव ही नहीं है। जैसे पिछले दस महीनों में किसी को समझ नहीं आया कि वायरस संक्रमण के टेस्ट पहले क्यों हजारों में थे और अब कैसे कुछ सौ रुपए में हैं, जबकि तकनीक वहीं है और सब कुछ सरकार के नियंत्रण में था।
कुल मिला कर भारत में वर्ष 2021 की शुरुआत वैक्सीन के जुगाड़ और उसकी भगदड़ से होनी है, जिससे फिर पूरे साल अरबों-खरबों के धंधे में वह सब होगा जो भारत की सरकारी ठेकेदारी में सहज कल्पनीय है! कोरोना वायरस सचमुच में कमाई का गजब अवसर बना है, जिसमें पिछले दस महीनों में सर्वाधिक पिसी आम जनता है और वह आगे टीकाकरण में भी निश्चित ही मारी-मारी घूमेगी।
भारत की हिंदी पत्रकारिता में मौलिक चिंतन, बेबाक-बेधड़क लेखन का इकलौता सशक्त नाम। मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक-बहुप्रयोगी पत्रकार और संपादक। सन् 1977 से अब तक के पत्रकारीय सफर के सर्वाधिक अनुभवी और लगातार लिखने वाले संपादक। ‘जनसत्ता’ में लेखन के साथ राजनीति की अंतरकथा, खुलासे वाले ‘गपशप’ कॉलम को 1983 में लिखना शुरू किया तो ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ में लगातार कोई चालीस साल से चला आ रहा कॉलम लेखन। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम शुरू किया तो सप्ताह में पांच दिन के सिलसिले में कोई नौ साल चला! प्रोग्राम की लोकप्रियता-तटस्थ प्रतिष्ठा थी जो 2014 में चुनाव प्रचार के प्रारंभ में नरेंद्र मोदी का सर्वप्रथम इंटरव्यू सेंट्रल हॉल प्रोग्राम में था।
आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों को बारीकी-बेबाकी से कवर करते हुए हर सरकार के सच्चाई से खुलासे में हरिशंकर व्यास ने नियंताओं-सत्तावानों के इंटरव्यू, विश्लेषण और विचार लेखन के अलावा राष्ट्र, समाज, धर्म, आर्थिकी, यात्रा संस्मरण, कला, फिल्म, संगीत आदि पर जो लिखा है उनके संकलन में कई पुस्तकें जल्द प्रकाश्य।
संवाद परिक्रमा फीचर एजेंसी, ‘जनसत्ता’, ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, ‘राजनीति संवाद परिक्रमा’, ‘नया इंडिया’ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नींव से निर्माण में अहम भूमिका व लेखन-संपादन का चालीस साला कर्मयोग। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में नब्बे के दशक की एटीएन, दूरदर्शन चैनलों पर ‘कारोबारनामा’, ढेरों डॉक्यूमेंटरी के बाद इंटरनेट पर हिंदी को स्थापित करने के लिए नब्बे के दशक में भारतीय भाषाओं के बहुभाषी ‘नेटजॉल.काम’ पोर्टल की परिकल्पना और लांच।