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विकलांगों से होगी बेरहमी?

भारत सरकार के एक प्रस्ताव से विकलांग लोग और उनके अधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ता विचलित हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सरकार विकलांगों पर होने वाले अपराधों पर दंडात्मक कानूनी प्रावधानों को लचीला बनाने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। कड़े प्रावधान आपराधिक श्रेणी से हटाने की तैयारी है। अभी मौजूद अधिनियम की धारा 89, 92(अ) और 93 के तहत दंड में कटौती का लक्ष्य रखा गया है। मौजूदा कानून के उल्लंघन के लिए पांच लाख रुपये तक का जुर्माने का प्रावधान है। बदसलूकी या सार्वजनिक रूप से किसी विकलांग को अपमानित करने पर पांच साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है। आम समझ है कि ये प्रावधान निकाले गए तो विकलांग व्यक्तियों के लिए स्थिति और विकट हो सकती है। विकलांग अधिकारों के लिए संघर्षरत कार्यकर्ताओं के मुताबिक अधिनियम का इस्तेमाल पहले ही सीमित है। ये संधोशन हुए तो विकलांगों के अधिकार और कमजोर हो जाएंगे।

अभी मौजूद कानून- आरपीडब्लूडी एक्ट का मूल मकसद था रोजगार और शिक्षा में समान अवसरों से वंचित रहने वाले विकलांगों की गरिमा को बहाल करना। इसी कानून के तहत सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में उनके लिए सीटें आरक्षित हैं, उनके लिए सुगम और सहज ढांचा मुहैया कराने का प्रावधान है और एक समावेशी पर्यावरण का निर्माण करने की बात है। निजी उद्यमों में विकलांगों के लिए सहज, अनुकूल, भेदभाव रहित और न्यायोचित्त माहौल का निर्माण करने में भी ये कानून कुछ हद तक महत्त्वपूर्ण रहा है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सरकार की दलील है कि इससे व्यावसायिक गतिविधियां सुगमता से चलाई जा सकेंगी और अदालतों पर भी बोझ कम होगा। सरकार यह भी मानती है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के पास विकलांगों के खिलाफ अपराधों का कोई ब्योरा नहीं है, तो कड़ी सजा के प्रावधान की जरूरत भी नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक विकलांगों की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 2.68 करोड़ है और वे देश की कुल जनसंख्या के 2.21 प्रतिशत हैं। विकलांगों के अधिकारों से जुड़े कई संगठनों का आरोप है कि प्रस्तावित संशोधन विकलांगों के अधिकारों का न सिर्फ दमन करते हैं, बल्कि सार्वजनिक जगहों में उनकी आवाजाही और उपस्थिति को भी असुरक्षित बनाते हैं। उनका आरोप है कि फीडबैक के लिए सिर्फ दस दिन का समय दिया गया, जो कि बहुत कम था। ये समयसीमा दस जुलाई को पार हो गई। बहरहाल, मूल प्रश्न यह है कि क्या सचमुच सरकार ऐसा कदम उठाएगी, जिसे बेरहमी की श्रेणी में रखा जाएगा?

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