बेबाक विचार

भारत गाय है, दुहने, खाने और गाड़ी खींचने के काम की- माओ त्से तुंग

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भारत गाय है, दुहने, खाने और गाड़ी खींचने के काम की- माओ त्से तुंग
शीर्षक क्या बताता है? चीन की भारत के प्रति हिकारत। हां, इस सत्य को दिल-दिमाग में पैठा ले कि चीन के रग-रग में भारत के प्रति हिकारत है। वह यह मानता-समझता है कि भारत नाम की गाय के बस में कुछ नहीं है। भारत की ताकत और उसकी महत्वकांक्षाएं बेमतलब है। कोई माने या न माने, मेरा मानना था, है और रहेगा कि माओं त्से तुंग की वैश्विक सोच चाईनीज हॉन सभ्यता की गीता है। उनका एसेसमेंट ही आज के शी जिनपिंग की  बुद्धी है और भविष्य के चाईनीज राष्ट्रपतियों की भी होगी। सन् 1949 से 2015 की चाईनीज विदेश नीति और चीन-भारत रिश्तों का इतिहास लिखने वाले प्रो, जान गारवर ने अपनी पुस्तक में माओं की एक कविता का उद्धरण दिया है। माओ कहते है- भारत भालू याकि सोवियत संघ के साथ खड़ी एक असहाय गाय है। माओ के अनुसार भारत के लिए गाय का रूपक सर्वाधिक उपयुक्त है। वह गाय से अधिक नहीं। केवल खाने के लिए, लोगों की सवारी और गाड़ी खींचने के काम लायक... उसमें कोई भी खास काबलियत नहीं। गाय भूखी मर जाएगी यदि उसे मालिक ने खाने को चारा नहीं दिया।... भले यह गाय अपनी कितनी ही महत्वकांक्षाएं बनाए, सभी बेमतलब। ( Chairman Mao use of the cow as a metaphor for India could not be the more appropriate. It is no better than a cow… it is only food or people to ride and for pulling carts; it has no particular talents. The cow would starve to death if its master did not give it grass to eat… even though this cow may have great ambitions, they are futile.” सोचे भारत पर चीन की यह सोच। क्या माओं के ये वाक्य आपके लिए चौकाने वाले नहीं है? कितनों को पता है यह? मगर हम हिंदुओं का रोना ही यह है कि जो हम, हमारे प्रधानमंत्री या अंबानी-अदानी जैसे सेठ यह पढ़ते बूझेते ही नहीं कि चाईनीज सभ्यता या दूसरी सभ्यताएं भारत और हिंदुओं को ले कर क्या सोचती है। जो हिंदू अपने को विश्व गुरू मानते है और भगवान नरेंद्र मोदी के श्रीमुख में विश्व का गौला देखते है वे हमारी हजार साल की गुलामी को भी भूल बैठे है। अपने ही घर में भयाकुल और गुलाम की तरह व्यवहार कर रहे है। बहरहाल, माओं का यह प्रसंग मेरी हाल में अरूण शौरी से हुई बातचीत में आया। मैंने अपने कौतुक में उनसे पूछा कि आप भारत सरकार में रहे है। जरा समझाए कि ऐसा कैसे है जो हमारे राष्ट्र-राज्य का प्रतिष्ठान, हमारे सामरिक पुरोधा चीन को समझते नहीं? अब तो समझ आना चाहिए? इसी बात पर उन्होने माओ त्से तुंग की भारत सोच का सार बताते हुए यह जानकारी दी कि उन्होने अपनी किताब में भी अमेरिकी विदेश मंत्री किसींजर और माओ की बातचीत में माओ की भारत थीकिंग बताई हुई है। कह सकते है कि अरूण शौरी, शिवशंकर मेनन, श्याम शरण जैसे विश्लेषक, चिंतक अपने-अपने लिखे से चीन की भारत दृष्टि के संकेत देते रहे है। लेकिन नेता और जनता के भेजे में ऐसी सच्चाई इसलिए नहीं उतरती क्योंकि गोपालक देश में वैश्विक मामलों की साक्षरता है कहां?  ऊपर से नेता और जनता की भाषा हिंदी में बेबाक लिखने और बोलने वाले भी नहीं है। इसलिए भारत की विदेश नीति लगातार चिकनी- चुपड़ी बातों और गाय के भोले स्वभाव की मारी है। ऐसा ईसाई, इस्लाम, यहूदी और चाईनीज सभ्यता में नहीं है। क्योंकि ये सभी सभ्यताएं (यहूदियों का मामला जरा अलग है) विजेता की जिंदादिली और रियल वैश्विक सोच की है। इस सत्य-तथ्य को जान ले कि चाईनीज हान सभ्यता संस्कारगत अपने को विश्व धुरी समझती है। माओ से पहले दक्षिणपंथी च्यांग काई शेक हो या घोर कम्युनिस्ट माओं या सुधारवादी कम्युनिस्ट देंग शियाओं पिंग या मौजूदा कारोबारी शी जिन पिंग और उनके साथ कम्युनिस्ट पार्टी, एलिट, खरबपती चाईनीज सभी मध्यकालीन हॉन सभ्यता के गौरव की वैश्विक पताका का रोड़मैंप बनाए हुए है। इसी फ्रेमवर्क में चीन चलता है। इसके खातिर चाईनीज ने अमेरिकी पूंजीपतियों को उल्लू बनाया। ईसाई, इस्लामी सभ्यता से याराना बना कर अपना उल्लू साधा। दूसरी तरफ एसिया के देशों तथा दुनिया के गरीब, विकासशील, भारत व पाकिस्तान, दक्षिण एसिया व आसियान देशों को व्यापार, पैसे, पूंजी से खरीदा हुआ है या अपने पर निर्भर बना रखा है। तभी तय माने कि माओ तथा चाउ एन लाई जैसे पंडित नेहरू को हैडल करते थे वैसे शी जिन पिंग अब नरेंद्र मोदी को हैंडल करते है। कोई चाईनीज भारत को ताकतवर नहीं मानता है। माओं ने अपने मन की बात, चाईनीज की भारत सोच को अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर को पटाते हुए (उसी से तथा निक्सन-किसिजर के कारण चीन दुनिया की फैक्ट्री बना। वह रियल महाशक्ति हुआ) बोली। सोवियत संघ से अपनी दुश्मनी को झांसा देते हुए माओं ने तब किसिंजर से भारत का खुलासा करते हुए कहा थधा- उसकी चिंता न करें - भारत की फिलोसाफी शब्दों का खाली पीपा है।  just a bunch of empty word. तभी सोचे कि शब्दों की जुगाली के महानायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बाते सुन कर राष्ट्रपति शी जिन पिंग मन ही मन क्या सोचते होंगे? कल्पना कीजिए।
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