चीन ख़म ठोंक रहा है। शनिवार को उसने ताईवान के आसपास विशाल सैन्य अभ्यास शुरू किया। इस तीन दिन के ऑपरेशन युनाईटेड शार्प स्वार्ड में ताईवान की घेराबंदी का अभ्यास किया है। लड़ाकू विमान, युद्धपोत और सैनिकों की ताईवान स्ट्रेट के वायु तथा समुद्री क्षेत्रों में कूंच है। मतलब ‘ताइवान के लिए कड़ी चेतावनी’ ।
इधर ताईवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन अमेरिका गईं और वहां उनकी मुलाकात हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव्स के स्पीकर केविन मेकार्थी से हुई तो उधर चीन तिलमिलाया और उसने अपने गुस्से का इज़हार करने के लिए ताइवान की घेराबंदी की। जाहिर है त्साई की यात्रा से चीन और अमेरिका के रिश्तों में कड़वाहट बढ़ी है वही ताईवान में भी अंदरूनी तनाव में इज़ाफा हुआ है। पिछले वर्ष भी अमेरिका की तत्कालीन स्पीकर नेन्सी पिलोसी की ताईवान यात्रा के बाद चीन ने ऐसे ही गुस्सा दिखाया था।
चीन का दावा है कि ताईवान उसका हिस्सा है। उसे चीन में शामिल करेगा, भले ही इसके लिए उसे बल का इस्तेमाल क्यों न करना पड़े, यह उसका सार्वभौमिक अधिकार है।निसंदेह युद्ध की नौबत ताईवान के 2.30 करोड़ निवासियों के लिए अत्यंत भयावह होगी और दुनिया पर इसके दूरगामी दुष्प्रभाव पड़ेंगे। चीन अगर ताईवान पर हमला करता है तो अमरीका, और संभवतः जापान, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन भी इस युद्ध में घसीट लिए जाएंगे।ताईवान की लड़ाई आकार और खतरे दोनों दृष्टियों से यूक्रेन से बड़े होंगे।
कई लोगों का मानना है कि हमले का खतरा बढ़ता जा रहा है। विशेषकर चीन की सत्ता शी जिन पिंग के हाथ में मजबूत होते जाने और ताईवान ही नहीं बल्कि सभी अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर उनके आक्रामक रूख के चलते। पिछले महीने शी ने इस स्व-शासित द्वीपको चीन में शामिल करने का संकल्प दुहराया। उन्होंने कहाँ, “हमें बाहरी शक्तियों और ताईवान की स्वंतत्रता संबंधी अलगाववादी गतिविधियों का कड़ा विरोध करना चाहिए। हमें राष्ट्रीय पुनर्जागरण व पुनःएकीकरण के कार्य में अडिगता से जुटे रहना चाहिए।” शी ने नेशनल पीपुल्स कांग्रेस को संबोधित करते हुए सैन्य शक्ति के इस्तेमाल से इंकार नहीं किया।
इस मामले मेंअमेरिका की ढुलमुल नीति है। वह ताईवान पर चीन की सार्वभौमिकता को स्वीकार नहीं करता लेकिन वह ताईवान को एक स्वतंत्र देश का दर्जा भी नहीं देता। उसके केवल चीन से कूटनीतिक संबंध हैं (हालांकि वह ताईवान को हथियार देता है)।
शक नहीं कि पिलोसी की यात्रा के बाद से चीन, अमरीका और ताईवान के आपसी रिश्तों में बदलाव आया है। ताइवान चीन से खिसक रहा है और रूस-यूक्रेन युद्ध से यह दूरी और बढी है। दो पीढ़ी पहले तक ताईवान में सैनिक तानाशाही थी और शासन गुओमिंदांग या केएमटी नामक चीनी राष्ट्रवादी पार्टी के हाथों में था जो सिद्धांत के स्तर पर स्वीकार करती थी कि ताईवान चीन का हिस्सा है। आज ताइवान एक फलता-फूलता लोकतंत्र है जहां सत्ता राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन और उनकी स्वतंत्रता समर्थक डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के हाथ में है। यद्यपि सन् 2024 में होने वाले चुनाव से ताईवान की आंतरिक स्थिति में परिवर्तन हो सकता है। त्साई अगला चुनाव शायद नहीं लड़े। यह साफ नहीं है कि राष्ट्रपति के पद पर उनका उत्तराधिकारी कौन होगा और यह भी क्या सत्ता पर स्वतंत्रता-समर्थक डीपीपी का कब्जा बना रहेगा। उनकी पार्टी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी गुओमिंदांग (केएमटी) का दावा है कि डीपीपी ने चीन से रिश्ते खराब कर लिए हैं और हम इन्हें सुधारेंगे।
हालांकि केएमटी चीन समर्थक नहीं है लेकिन उसका मानना है कि चीन से शांतिपूर्ण संबंध बने रहने चाहिए। पूर्व केएमटी नेता मा इंग-जो, जो 2008 से लेकर 2006 तक ताइवान के राष्ट्रपति थे, के कार्यकाल में ताइवान और चीन के सम्बन्ध अत्यंत मधुर थे। दोनों देशों ने 23 व्यापार संधियों पर हस्ताक्षर किये थे, दोनों के बीच सीधी उड़ानें शुरू हुईं थी। स्कूली बच्चों का एक्सचेंज प्रोग्राम चला करता था। हाल में मा इंग-जो चीन की यात्रा पर गए थे जिससे उलझन और बढ़ी है।
राजनैतिक और रणनीतिक – दोनों दृष्टियों से ताइवान स्ट्रेट अनिश्चितिता के पंजे में है।इलाके में खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। अगर देश में सत्ता परिवर्तन होता है तो उससे भी टकराव बढेगा ही क्योंकि ताइवान के 60 प्रतिशत से अधिक नागरिक अब स्वयं को केवल ताईवानी के रूप में देखते हैं।
एक छोटा सा प्रजातंत्र अपने भीमकाय तानाशाह पड़ोसी के सामने सीना तान कर खड़ा हुआ है, पर पूरे परिदृश्य को इस रूप में देखना ठीक नहीं होगा। अमरीका की ढुलमुल नीति ने हालात को और गंभीर बनाया है। यूएस कौंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के मुखिया रिचर्ड हास ने यूक्रेन पर हमले के ठीक पहले प्रकाशित अपने लेख में चेतावनी दी थी कि बाईडेन में ‘रणनीतिक स्पष्टता’ के कमी के चलते, पुतिन की तरह शी भी हालात का आंकलन करने में गंभीर भूल करने की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)