हालात के कुछ संभलते ही श्रीलंका में नए सिरे से चीनी निवेश का एलान शुरू हो गया है। जबकि यह आम धारणा रही है कि श्रीलंका के कर्ज संकट में फंसने की एक बड़ी वजह वहां बनी चीनी परियोजनाएं हैं।
यह धारणा अब सिरे से निराधार साबित हो रही है कि कर्ज संकट के अनुभव के बाद श्रीलंका बड़े पैमाने पर चीन के निवेश से गुरेज करेगा। उलटे हालात के कुछ संभलते ही वहां नए सिरे से चीनी निवेश का एलान शुरू हो गया है। यह आम धारणा रही है कि श्रीलंका के कर्ज संकट में फंसने की एक बड़ी वजह वहां बनी चीनी परियोजनाएं हैं। मगर श्रीलंका सरकार संभवतः इस बात से सहमत नहीं है। अब उसने एक बड़े लॉजिस्टिक्स कॉम्पलेक्स को बनाने का काम चीन की एक सरकारी कंपनी को सौंप दिया है। नए निवेश का एलान चीन की कंपनी चाइना मर्चेंट्स ग्रुप ने किया है। यह कंपनी कोलंबो बंदरगाह पर एक विशाल लॉजिस्टिक्स कॉम्पलेक्स बनाएगी। इसके निर्माण पर सवा 39 करोड़ डॉलर खर्च आने का अनुमान है। पिछले साल श्रीलंका ने ऋण डिफॉल्ट करने के बाद श्रीलंका में किसी बड़े विदेशी निवेश की यह पहली घोषणा है। चीनी कंपनी ने बताया है कि लॉजिस्टिक्स सेंटर के निर्माण के साथ श्रीलंका में इस कंपनी का निवेश दो बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। इससे यह कंपनी श्रीलंका में सबसे बड़ा निवेश करने वाली विदेशी कंपनी बन जाएगी।
जाहिर है, श्रीलंका में चीन की पैठ बढ़ती जा रही है। यह भी गौरतलब है कि चाइना मर्चेंट्स ग्रुप दक्षिणी श्रीलंका में स्थित हम्बनटोटा बंदहगाह का प्रबंधन भी संभालती है। हम्बनटोटा बंदरगाह 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में बना था। तब से इसकी ‘सफेद हाथी’ परियोजना बता कर आलोचना होती रही है। हम्बनटोटा परियोजना को श्रीलंका को आर्थिक संकट में फंसाने के लिए जिम्मेदार बताया जाता है। इस परियोजना को बनाने के लिए चीन से बड़े पैमाने पर ऋण लिया गया था। वह कर्ज नहीं चुका पाया तो आखिरकार 2017 में उसने हम्बनटोटा बंदरगाह का प्रबंधन 99 साल के लिए चीनी कंपनी को सौंप दिया। उचित ही यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या कोलंबो पोर्ट पर बनने वाले लॉजिस्टिक्स कॉम्पलेक्स का अंजाम उससे अलग होगा? या ये परियोजना श्रीलंका के संकट को बढ़ाने का कारण बनेगी? बहरहाल, यह तो साफ है कि श्रीलंका सरकार ऐसे सवालों से बेपरवाह है।