इस बीच सरकार और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी आम-जन के आक्रोश को शांत करने के लिए कुछ कदम उठा रही हैं। 19 दिसंबर को केंद्र सरकार ने अखबारों में नागरिकता संशोधन अधिनियम के बारे में कथित गलत सूचना पर बड़े बड़े विज्ञापन निकाले। 20 दिसंबर को सरकार की तरफ से एक ऐसा बयान आया, जिस से लगा कि सरकार कम से कम नागरिकों के रजिस्टर को लेकर थोड़ी नरम हो रही है। गृह राज्य मंत्री जीके रेड्डी ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर यह रजिस्टर बनाने की अभी कोई योजना नहीं है। सरकार की नरमी का एक और संकेत असम से भी आया, जहां मुख्यमंत्री सर्बानंदा सोनोवाल ने प्रदर्शनकारियों को बातचीत के लिए आमंत्रण दिया। भाजपा के 12 विधायकों के उनसे मिलने की भी खबर आई। विधायकों ने उनसे कहा कि वे इस संकट को समाप्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मनाएं। एक मीडिया हाउस की खबर के मुताबिक कर्नाटक सरकार ने एनआरसी लागू ना करने का फैसला किया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार पहले ही ऐसा एलान कर चुके हैं। पश्चिम बंगाल और केरल जैसी विपक्षी सरकारें एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून के मामले में ऐसा इरादा पहले ही जता चुकी हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी इन पर अमल में शामिल ना होने की बात कह चुके हैं। इनका क्या असर होगा, ये अभी साफ नहीं है। मगर यह तय है कि जन आंदोलन का असर हुआ है। गौरतलब है कि नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। 19 दिसंबर को देशव्यापी प्रदर्शनों में लाखों लोग कानून के विरोध में सड़कों पर निकल कर आए। 21 दिसंबर को बिहार में बंद रखा गया। इसके अलावा दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, लखनऊ, पटना समेत अनेक बड़े शहरों और 100 से भी ज्यादा छोटे शहरों और कस्बों में प्रदर्शन किए गए। अलग-अलग राज्यों और अलग अलग शहरों की पुलिस ने हजारों लोगों को हिरासत में लिया है। कहीं कहीं प्रदर्शनों के बीच हिंसा भी हो गई और जिनमें कई लोगों की जान चली गई। दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में पिछले हफ्ते से शुरु हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद विरोध प्रदर्शनों फैलते चले गए हैं। यहां तक कि विदेशों में भी भारतीय समुदाय के लोगों ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं। ये अच्छी बात होगी कि सरकार विरोध पर उतरे लोगों की भावना पर ध्यान दे। लाठी-गोली हर समस्या का हल नहीं होता।