जलवायु परिवर्तन में भारत के हम लोग दुनिया के दूसरे देशों के वीडियो, खबरों को देखते हुए माने बैठे हैं कि वहां कितना विनाश है। वहां आपदाओं में जान-माल की तबाही अधिक है जबकि भारत में कम। पर बड़े देशों और कथित विश्वगुरू की अपनी ख्याली में भारत के लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि आपदाओं में लोगों की जान-मान की रक्षा के मामले में भारत तीसरी दुनिया के सर्वाधिक असुरक्षित देशों में से एक है। मतलब पाकिस्तान, नाइजीरिया, जाम्बिया, हैती जैसे देशों के साथ। प्राकृतिक आपदाओं की जोखिम में सर्वाधिक जीने वाले देश महासागरों के किनारों के, महासागर के बीच के द्वीपीय देश हैं। जैसे प्रशांत महासागर के दक्षिणी भाग के सागरीय द्वीप देश। मसल टोंगो, सोलोमान द्वीप समूह या वानातू देश। ऐसे देशों के लोग बहुत जोखिम में जीते हैं। फिर अफ्रीकी देशों जैसे नाइजीरिया, नाइजर, जाम्बिया, कैमरून हैं या दक्षिण अमेरिका में हैती। Climate change flood drought
ऐसे देशों के साथ आबादी- इलाके से भारत वैश्विक जोखिम इंडेक्स के 181 देशों की सूची में 89 नंबर पर है। महासागरीय किनारों के कारण जापान, चीन, भारत, लातिनी अमेरिकी देशों का चक्रवाती तूफानों, सुनामी के कारण जोखिम में होना समझा जा सकता है। मगर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, यूरोपीय देशों में भी कई महासागरों से सटे होने के बावजूद, बार-बार लगातार तूफानों का सामना करते हुए भी वहां पुनर्वास, आपदा प्रबंधन के बंदोबस्त ऐसे पुख्ता हैं कि इन्हें सुरक्षित देश माना जाता है। इन देशों में आपदा एक अनुभव है जबकि असुरक्षित देशों में जान और माल को गंवाना। ऐसे ही जलवायु परिवर्तन याकि मौसम रिस्क में दुनिया के देश रिस्क से चिन्हित हैं। और भारत सर्वाधिक रिस्की दस देशों में से सातवें नंबर पर है।
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अपना मानना है इन सब तरह के हिसाब में भारत में जीने की जोखिम भयावह प्राकृतिक जोखिम लिए हुए है। घर से बाहर निकलना ही जोखिम है। डेंगू के मच्छर का खतरा है तो सड़क के ट्रैफिक की अनियंत्रित-अराजक भीड़ में दर्दनाक मौतों की घटनाओं की दहशत भी है। या देश की राजधानी में जहरीली सांस से घुटघुट कर मरना है तो बिजली कड़कने और लू लगने से भी मर जाना! तभी सोचें भारत के 140 करोड़ लोगों का घर से बाहर निकल कर या घर में रहते हुए भी जीना कैसे होता है?