दुनिया को लास्ट वार्निंग जारी कर दी गई है। और यह हमारी धरती और हमारे लिए अच्छी खबर नहीं है। जलवायु परिवर्तन को ले कर बनी अंतर्रसरकारी पैनल (आईपीसीसी) के नामी मौसम विज्ञानियों ने भारी-भरकम, आठ वर्षों की मेहनत से तैयार छठवीं आकलन रपट मेंदो टूक कहा है-“अभी नहीं तो कभी नहीं”।
हां, दुनिया का तापमान पहले ही 1.1 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ चुका है। सन 2030 के दशक तक यह 1.5 डिग्री से से भी अधिक बढ़ जाएगा। और यह सब राजनैतिक भाषणबाजियों और खर्चीली व भव्य सीओपी शिखर बैठकों के बावजूद हो रहा है। ये बैठकें हर साल दुनिया के अलग-अलग दर्शनीय स्थलों पर होती हैं ( जैसेइस साल सीओपी28 दुबई में आयोजित है)।
बकौल संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के, ‘‘यह रपट हमे आव्हान करती है कि हर देश, हर क्षेत्र और हर समयावधि वाले जलवायु परिवर्तन नियंत्रण प्रयासों में तेजी लाई जाए। जलवायु के मामले में दुनिया को सभी मोर्चों पर हर जगह, एक साथ और तुरंत काम करना होगा।‘ध्यान रहे आईपीसीसी 1990 के दशक से ही अपनी रपटों और शोधों के जरिए खतरे की घंटी बजाता आ रहा है। यह संदेश दिया हुआ है कि वे हमारी धरती को हल्के में न लें। यह चेतावनी भी दी हुई है कि पिछले 200 सालों से ग्रीनहाउस गैसों के उर्त्सजन में बढ़ोत्तरी हो रही है और अगर इस प्रक्रिया को पलटा नहीं गया तो धरती जीने लायक नहीं रह जाएगी।
धरती यदि जीने लायक नहीं रही तो वह कैसी होगी, इसकी एक झलक चाहे तो एपल टीवी के नए शो ‘एक्स्ट्रापोलेशन’ में देखी जा सकती है। इसमें वैज्ञानिक जानवरों की आखिरी प्रजाति को बचाने की जुगत में लगे हुए हैं तो पाषण-ह्रदय खरबपति धरती को नष्ट करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। वे बिना पायलट के हेलिकाप्टरों में इधर-उधर जाते हैं और ‘खाना पकाने’ के लिए थ्री डी प्रिंटरों का इस्तेमाल करते हैं। मेमोरी बैंक जब चाहे तब बंद हो जाते हैं। यह शो 2037 से 2070 के बीच का परिदृश्य दिखाता है। जंगलों में दावानल हैं, हवा में गुलाबी रंगत है और वह सांस लेने लायक नहीं बची है और कई देश समुद्र में डूब चुके हैं।
इस शो में कई जानेमाने कलाकार हैं जिनमें मेरिल स्ट्रीप, मारियों कोतियार, एड नाटन, किट हेरिंगटन आदि शामिल हैं। आईपीसीसी की रपट की तरह यह भी चेतावनी का सायरन है, आने वाली विपदा का ट्रेलर है। बेहतर हो कि हम इसे यथार्थ नहीं बनने दें।
ताजा रपट में नीति-निर्माताओं के लिए बने नोट में कहा गया है कि यदि हमें तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम रखना है तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सन् 2030 तक, सन 2019 की तुलना में उर्त्सजन में 48 प्रतिशत की कमी लाई जाए और सन् 2050 तक 99 प्रतिशत की। अभी तो हाल यह है कि विभिन्न देशों की जलवायु संबंधी घोषित नीतियां अगर पूरी तरह से अमल में लाई जाती हैं तब भी सन् 2100 तक तापमान में 2.5 डिग्री से लेकर 3.2 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो जाएगी। जाहिर है कि यह तबाही ही लाएगी। वैसे भी जंगलों में आग, बाढ़ और भूकंप की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। बेमौसम बरसात और बर्फबारी हो रही है, कहीं जमा देने वाली ठंड पड़ रही है तो कहीं प्रचंड गर्मी। इससे खेतों में खड़ी और खलिहानों में फसलें नष्ट हो रही हैं जिसके नतीजे में लाखों लोग भूख और मौत के पंजे में फंस रहे हैं।
आईपीसीसी के अनुसार तीन अरब लोग दुनिया के ऐसे इलाकों में रह रहे हैं जहां जलवायु तंत्र के पूरी तरह फेल हो जाने की संभावना है। दुनिया की आधी आबादी को साल के कम से कम कुछ हिस्से में पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। रपट के अनुसार कई क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन, मनुष्य के उसके अनुरूप ढ़लने की क्षमता की सीमा को पार कर चुका है जिसके कारण अफ्रीका, एशिया, उत्तर, मध्य और दक्षिण अमरीका और दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में लोग अपने घर-गांव से पलायन कर रहे हैं। पेरिस में निर्धारित लक्ष्य – अर्थात तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम रखना – को हासिल करने हेतु यह आवश्यक होगा कि 2019 की तुलना में 2050 तक हमारी दुनिया में कोयले के इस्तेमाल में 95 प्रतिशत, तेल के इस्तेमाल में 60 प्रतिशत और गैस के इस्तेमाल में 45 प्रतिशत तक की कमी आए। तापमान वृद्धि की उच्चतर सीमा को 2 डिग्री सेल्सियस रखने पर भी इन लक्ष्यों में कोई विशेष कमी नहीं आएगी।
वर्तमान में चल रहे यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण दुनिया में कोयले की मांग में 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इंग्लैंड, जिसने कहा था कि वह 2024 के बाद बिजली के उत्पादन के लिए कोयले का इस्तेमाल नहीं करेगा, ने हाल में कोयले की एक नई खदान में काम शुरू करने की इजाजत दी है। एशिया में कोयले का बाजार अगले कई सालों तक बड़ा होता जाएगा क्योंकि बिजली की बढ़ती मांग की पूर्ति के लिए नए ताप बिजलीघर बनाए जाएंगे।
रपट का निहितार्थ है कि यदि हम पृथ्वी को जीव-जंतुओं और मनुष्यों के जीने लायक बनाए रखना चाहते हैं तो हमें कोयले, तेल और गैस का इस्तेमाल पूरी तरह बंद करना होगा। पवन और सौर ऊर्जा जैसे ऊर्जा के नवीकरणीय स्त्रोतों को अपनाना होगा। हमें इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का उपयोग बढ़ाना होगा। हमारे शहरों को साईकिल के उपयोग के अनुकूल बनाना होगा।
आईपीसीसी की रपट निंसंदेह बर्बादी की आहट है परंतु अब भी आशा की किरण बाकी है। अगर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का स्तर जल्द से जल्द पार कर लिया जात है और उसके बाद इस उत्सर्जन में तेजी से कमी लाई जाती है तो हम शायद उस तबाही से बच सकेंगे जो तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से उपजेगी।तभी गुटेरेस ने सरकारों से अपील की है कि उत्सर्जन में कमी लाने के लिए वे तुरंत प्रभावी कदम उठाएं और नवीकरणीय ऊर्जा व निम्न कार्बन प्रौद्योगिकी में निवेश करें। उन्होंने कहा है कि धनी राष्ट्रों को नेट जीरो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लक्ष्य को 2040 तक हासिल करने का प्रयास करना चाहिए और 2050 की उस समय सीमा का इंतजार नहीं करना चाहिए जिसे अधिकांश देशों ने मंजूरी दी है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)