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सुन भर लेने की चेतावनी

अब तो दुनिया कुछ इस तरह बंट गई है कि साझा चिंता के विषय कहीं पीछे छूट गए हैँ। बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र की अंतर-सरकारी एजेंसी- आईपीसीसी ने फिर एक रिपोर्ट पेश की है। लेकिन उसकी परवाह कौन करेगा?

जलवायु परिवर्तन से संबंधित चेतावनियों से पहले भी कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा था, लेकिन अब तक इनका महत्त्व बस सुन भर लेने लायक बचा है। यूक्रेन युद्ध के पहले तक यह स्थिति कि ऐसी चेतावनियों पर दुनिया भर की सरकारें चिंता जताती थीं। वे जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए वैश्विक साझा प्रयासों का संकल्प दिखाती थीं। लेकिन अब तो दुनिया कुछ इस तरह बंट गई है कि साझा चिंता के विषय कहीं पीछे छूट गए हैँ। बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र की अंतर-सरकारी एजेंसी- आईपीसीसी ने फिर एक रिपोर्ट पेश की है। समिति की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस सदी के अंत की बजाए अगले 17 साल में ही वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री की वृद्धि हो सकती है। 36 पन्नों की रिपोर्ट को “समरी फॉर पॉलिसीमेकर्स” नाम दिया गया है। आईपीसीसी की इस छठी रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते वर्षों में जो भी गर्मी देखी गई, वह आने वाले वर्षों के मुकाबले ठंडी महसूस होगी। यानी तपिश इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी बीते वर्षों की गर्मियां उनके आगे ठंडी लगने लगेंगी।

तो अब कई वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मौजूदा हालात बने रहे, तो साल 2100 तक पृथ्वी का औसत तापमान 1.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। इसका असर आधी इंसानी आबादी पर पड़ेगा। बहुत ज्यादा गर्मी और अत्यधिक नमी जानलेवा साबित होगी। रिपोर्ट में शामिल विश्व मानचित्र में दिखाया गया है कि दक्षिण पूर्वी एशिया और ब्राजील और पश्चिमी अफ्रीका के कुछ इलाकों को भीषण गर्मी झेलनी पड़ेगी। जाहिर है, ये परिवर्तन दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ेंगे। वे सामाजिक ताने-बाने पर भी असल डालेंगे। गौरतलब है कि यूक्रेन युद्ध की वजह से पैदा हुए ऊर्जा संकट के कारण कई यूरोपीय देशों में बिजली बनाने के लिए कोयले का इस्तेमाल फिर से बढ़ा है। जबकि पहले यूरोप ही जलवायु परिवर्तन से मुकाबले में सबसे आगे दिखता था। ताजा घटनाक्रम के कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन फिर से बढ़ने की आशंका है। ऐसे में उत्सर्जन घटाने की बातों का कितना वजन बचता है? आज की दुनिया अपने वर्तमान और स्वार्थ में बेहद सिमट चुकी है। इससे भविष्य संवारने की आशा रखना बेमतलब ही है।

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