बेबाक विचार

कांग्रेस पार्टी की चिंताएं

ByNI Editorial,
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कांग्रेस पार्टी की चिंताएं
कांग्रेस के लिए आत्म-निरीक्षण का विषय है कि कानून का राज ध्वस्त करने बड़ी परिघटना के खिलाफ वह सड़क पर उतरती, तब लोग उससे ज्यादा जुड़ाव महसूस करते या अब करेंगे, जब उसने अपने नेता के लिए दम दिखाने का फैसला किया है? कांग्रेस ने बेशक दम दिखाया। पार्टी नेताओं/ कार्यकर्ताओं ने देश को बताने की कोशिश की कि अगर उनके नेता को सरकार को सरकार परेशान करेगी, तो वे चुप नहीं रहेंगे। इसलिए जब राहुल गांधी प्रवर्तन निदेशालय में पेशी के लिए निकले, तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतर कर आंदोलन का नजारा पेश किया। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने यह कहने के लिए अपने नेताओं की एक पूरी फौज लगा दी कि कांग्रेस पार्टी ‘भ्रष्टाचार’ और गांधी परिवार के ‘विशेषाधिकारों’ की रक्षा के लिए सड़क पर आकर अशांति फैला रही है। जाहिर है, जो आरएसएस/ भाजपा के समर्थक नेटवर्क में यही कहानी प्रचलित होगी। लेकिन इस बात में कोई अचरज नहीं होगा कि जो लोग इस नेटवर्क का हिस्सा नहीं हैं, उनके मन में भी कांग्रेस की प्राथमिकताओँ और चिंताओं को लेकर कुछ सवाल उठेंगे। इसलिए कि जिस रोज राहुल गांधी की पहली पेशी हुई, उस रोज भाजपा से असहमत तबकों में इलाहाबाद में जो हुआ, तो उसको लेकर व्यग्रता थी। जिस तरह देश में कानून के राज की अवहेलहना कर एकतरफा इंसाफ लागू करने का सिलसिला फैलता जा रहा है, यह बात उन्हें व्यथित कर रही है। ऐसे मौके पर यह सवाल उठना जायज है कि कांग्रेस देश के लिए एक बड़े जनमत की चिंताएं प्राथमिकता हैं, या अपने नेता से जुड़े मुद्दे? आखिर यह पहला मौका नहीं है, जब किसी विपक्षी नेता को ईडी ने बुलाया है। यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि ईडी और तमाम ऐसी सरकारी एजेंसियां विपक्ष और असहमति को दबाने और उसे निष्प्रभावी करने की सत्ताधारी समूह की बड़ी योजना का हिस्सा बन गई हैं। लेकिन यही परिघटना बिना मुकदमा चलाए, बिना दूसरे पक्ष की दलील सुने- सीधे पुलिस के हाथों सजा दिलवा देने में व्यक्त हो रही है। यह कांग्रेस के लिए आत्म-निरीक्षण का विषय है कि इस बड़ी परिघटना के खिलाफ अगर वह सड़क पर उतरती, तब लोग उससे ज्यादा जुड़ाव महसूस करते या अब करेंगे, जब उसने अपने नेता के लिए दम दिखाने का फैसला किया है? यह तो साफ है कि किसी पार्टी की चिंताएं जितनी बड़ी होती हैं, उतना ही जन समर्थन वह जुटा पाती है।
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