बेबाक विचार

बहुत सहज स्वभाव के थे अहमद पटेल

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बहुत सहज स्वभाव के थे अहमद पटेल
बहुत दिनों से कॉलम नहीं लिख रहा था। वजह यह थी कि बेटी के पास बेंगलुर आया हुआ था। बेटी व नाती काफी दिनों से बुला रहे थे। पहले मैं सोच रहा था कि वे लोग गरमी की छुट्टियो में दिल्ली आ जाएंगे। मगर कोविड के कारण लगभग पूरे देश में ही लॉकडाउन हो गया। मगर जिन कारण मुझे कॉलम शुर करना पडा है उसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। सुबह अखबार पढ़ रहा था कि तभी बड़े भाई का फोन आया। उन्होंने मुझसे पूछा कि तुमने टीवी देखा। मैंने कहा कि मैं तो अभी सोकर ही उठा हूं। उन्होंने कहा कि खबर आ रही है कि अहमद पटेल नहीं रहे। यह सुनकर मैं स्तंभ रह गया। वे काफी बीमार चल रहे हैं यह तो मुझे पता था पर वे एक दिन हम सबको छोड़कर विदा हो जाएंगे मैंने कभी इसकी कल्पना नहीं की थी। करीब एक महीने तक फरीदाबाद के एक अस्पताल में ईलाज करवाने के बाद उन्हें पिछले दिनों गुड़गांव के मेदांता अस्पताल ले जाया गया था लेकिन वे कोरोना से बच नहीं पाए। बुरी खबर सुनने के बाद तमाम पुरानी यादें ताजा हो गई। इसकी एक वजह यह थी कि वे नया इंडिया व मेरे कॉलम के पुराने पाठक थे व तमाम बातों पर पढ़ने के बाद मुझे फोन कर उन पर खुलकर चर्चा करते थे। जब व्यासजी ने नया इंडिया निकालना शुरू ही किया था। वह मोदी के आने से पहले की बात थी। लोग व्यासजी की मंशा में कई बाते करते थे। तब एक बार उन्होंने मुझसे पूछा था कि यह पंडितजी को क्या हो गया है जो कि घर फूंक कर तमाशा देख रहे हैं व अखबार निकाल रहे हैं? इनसे पूछना कि उन्हें कुछ मदद तो नहीं चाहिए। मैंने जब यह बात व्यासजी को बताई तो उन्होंने मुझे लगभग हड़काते हुए कहा कि भविष्य में तुम इस बारे में उनसे कुछ मत कहना मुझे किसी से कोई सहायता नहीं चाहिए। लोग इस बारे में जो कुछ अटकले लगा रहे हैं व उल-जलूल कह रहे हैं वह उन्हें कहने दो। मुझे न तो किसी को कोई सफाई देनी है और ना ही किसी के आगे हाथ फैलाना है। बात आई गई हो गई। जब देश में कोरोना का प्रहार शुरू हुआ तो वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने एक दिन मुझे फोन करके मेरा व पूरे परिवार का हालचाल पूछने के बाद कहा कि अगर किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो मुझे निःसंकोच बता देना। मैंने कहा कि मैं तो किसी दिन आपसे मिलना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि अभी हालात बहुत खराब चल रहे हैं मैं तुम्हें खुद फोन करके बुला लूंगा। यह वो दिन था जबकि अंतिम बार मेरी उनसे बातचीत हुई थी। हमारा फिर कभी मिलना नहीं हो पाया।अहमद पटेल देश के उन चुनिंदा नेताओं में गिने जा सकते है जिन्होंने सरकार में कोई पद लिए बगैर ही सत्ता की दिशा और दशा तय की। पहले राजीव गांधी व फिर वे सोनिया गांधी के सबसे विश्वासपात्र बने। जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तब वे ही यह तय करते थे कि कौन मंत्री व कौन राज्यपाल बनेगा। बड़े-बड़े उद्योगपतियो से लेकर नेता तक उनसे मिलने के लिए लालयित रहते थे। एक बार मैं उनसे मिलने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा करता हुआ उनके निजी सचिव के पास बैठा हुआ था तभी एक मोटा सा व्यक्ति हांफता हुआ वहां आया। उसने सफाई देते हुए कहा कि सरदार पटेल मार्ग पर किसी की बारात के कारण ट्रैफिक जाम हो गया था। अतः मैं अपनी कार वहीं छोड़कर पैदल ही आया हूं। तभी अपने दरवाजे को खोलकर अहमद पटेल वहां आए और मेरा नाम लेकर कहने लगे कि विवेक तुम आ जाओ। मैंने उनसे कहा कि आप पहले दूसरे लोगों से मिल लीजिए। मगर उन्होंने कहा कि लोगों को इंतजार करने दो वे लोग तो अपने काम से आए हुए हैं। तुम तो मुझसे बात करने आए हो। सत्ता में महा शक्तिशाली होने के बावजूद उन्हें जरा भी घमंड नहीं था। वे मुझे कार तक छोड़ने आते थे। एक बार व्यासजी ने उनके किसी करीबी की घटिया हरकत से नाराज होकर अपने गपशप कॉलम में उसकी जमकर धुलाई कर दी। अपने कॉलम में व्यासजी ने अहमद पटेल का भी जिक्र किया था। कुछ दिन बाद अहमद पटेल ने मुझे फोन कर कहा कि व्यासजी मुझसे क्यों इतना नाराज हैं। जब मैंने यह बात व्यासजी को बताई तो हंसकर कहने लगे कि मेरे लिखने पर प्रतिक्रिया होने लगी। यही तो मैं चाहता था। मैंने अहमद पटेल से मुलाकात कर उनसे व्यासजी से आमने-सामने बैठकर अपने गिल शिकवे दूर करने को कहा। वे मान गए। इस बैठक के बारे में फिर कभी विस्तार से लिखूंगा। व्यासजी पहले उनसे मिलना नहीं चाहते थे मगर मेरा अनुरोध उन्होंने मान लिया। जब 2014 के लोकसभा चुनाव हुए तो व्यासजी के चुनावी विश्लेषण पढ़ने के बाद अहमद भाई ने उस पर आपत्ति जताते हुए उसे गलत बताया। संयोग से मैं उनके साथ बैठा हुआ बातचीत कर रहा था। मैंने उनसे कहा कि आप अपनी बात सीधे व्यासजी से क्यों नहीं करते हैं।इस पर उन्होंने व्यासजी से बात कर करने को कहा मैंने नंबर मिलाया तो पता चला कि व्यासजी गुजरात में थे। अहमद पटेल ने हाथ में नया इंडिया लिए हुए उनसे करीब आधा घंटा तक चर्चा की व उनकी सीटो के आकलन के सामने अखबार पर पेन से अपना आकलन लिखा। संयोग था कि व्यासजी का आकलन एकदम सही निकला व उन्होंने कांग्रेस को जितनी सीटे दी थी, उसे उससे भी कम सीटें मिली। जब नितिन गड़करी भाजपा अध्यक्ष बने तो वे एक बार रामलीला मैदान में आयोजित जनसभा में सोनिया गांधी व अहमद पटेल को जमकर कोस रहे थे। अहमद पटेल ने मुझे फोन कर कहा कि इन्हें यह क्या हो गया है। मुझसे किस बात की अपनी खुंदक निकाल रहे हैं। अगर उनके किसी करीबी को जानते हो तो यह रूकवा दो। मैंने गड़करी के एक करीबी पत्रकार संजय शर्मा को फोन किया जोकि संयोग से मंच पर उनके पास ही बैठे थे और उनको बात बताई।उसने कागज पर लिखकर उनसे अहमद पटेल की आलोचना न करने का अनुरोध किया तो उसके बाद नितिन गड़करी ने विषय ही बदल दिया। बाद में गड़करी के बेटे की शादी में दिए गए रिसेप्शन में उन्होंने हिस्सा लेकर उसे शुभकामना दी। अटकल है कि अहमद पटेल के ईलाज में लापरवाही बरती गई। यदि उनका ठीक से ईलाज किया गया होता तो शायद वे इतनी जल्दी दुनिया से नहीं जाते। जो व्यक्ति कभी सर्वशक्तिमान था उसे एक छोटे से वायरस ने निपटा दिया। वे सहज स्वभाव वाले थे और सबकी सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। वे एक सफल नेता होने के साथ-साथ अच्छे इंसान भी थे और हर व्यक्ति का आदर-सम्मान करते थे। कांग्रेस के नेता होते हुए उनके परिवार के किसी भी सदस्य को कभी किसी ने नहीं देखा। वे उन्हें घर के लॉन तक में ही आने देते थे। अब तो बस यादे रह गई हैं।  मेरे कॉलम और नया इंडिया अखबार का एक पाठक चला गया है। अगर जयपुर के पाठक राजेंद्र छाबड़ा का सशक्त अनुरोध नहीं होता तो शायद मैं कुछ नहीं लिखता। इसलिए की खबर के बाद मैं यही सोचता रहा, मेरी समस्या रही, मैं यह तय नहीं कर पा रहा था कि क्या लिखूं और क्या छोडूं।
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