बेबाक विचार

गहलोत-पायलट झमेले के बाद कांग्रेस संकट में, पार्टी चन्नी कांग्रेस बनने की और!

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गहलोत-पायलट झमेले के बाद कांग्रेस संकट में,  पार्टी चन्नी कांग्रेस बनने की और!
सोनिया गांधी महाबलंडर करने वाली हैं। उन्हीं के हाथों से राष्ट्रीय कांग्रेस पंजाब जैसी दुर्दशा वाली चन्नी कांग्रेस बनने वाली है। सोनिया, प्रियंका व राहुल गांधी आज-कल में चन्नी जैसे किसी नेता को पार्टी अध्यक्ष बनाने का फैसला लेंगे। मतलब मीरा कुमार, मुकुल वासनिक, पवन बंसल, केसी वेणुगोपाल जैसे डमी नेता से अध्यक्ष पद का नामांकन पत्र भरवाएंगें। यह भी संभव है कि कांग्रेस के संगठन चुनाव टलें। जानकार सूत्रों के अनुसार कल सोनिया गांधी ने कमलनाथ को अध्यक्ष बनने के लिए राजी करने की कोशिश की। वे नहीं माने। उन्हें मनाने की कोशिश इसलिए क्योंकि महासचिव केसी वेणुगोपाल, अजय माकन और खड़गे ने सोनिया गांधी को राजस्थान के विधायकों और अशोक गहलोत को अनुशासनहीन करार देने की रिपोर्ट दे दी है। सचिन पायलट और प्रियंका व राहुल गांधी और उनके नौजवान सलाहकारों ने सोनिया गांधी के कान भर दिए है कि पायलट गद्दार नहीं हैं, बल्कि गहलोत और धारीवाल हैं। उनके समर्थक विधायक गद्दार हैं। https://youtu.be/vrzC-NCi60M तभी गहलोत की जगह नए चेहरे की तलाश है। सोनिया गांधी-प्रियंका-राहुल तीनों कांग्रेस के उस टर्निंग प्वाइंट को मिट्टी में मिला देने के मोड में हैं, जो नरेंद्र मोदी-अमित शाह के परिवारवाद के हल्ला बोल के लिए कांग्रेस को संयोग से प्राप्त हुआ। राहुल गांधी ने जिद्द बनाए रखी कि मैं और प्रियंका अध्यक्ष नहीं बनेंगे। जनाधार वाला पुराना खांटी कांग्रेसी अध्यक्ष बनेगा। मोदी-शाह और गुलाम नबी एंड पार्टी के हल्ला बोल ग्रुप की जुबान को चुप कराने का यह असरदार फैसला था। संगठन के रियल चुनाव करवा कर देश भर में भाजपा और बाकी पार्टियों के आगे कांग्रेस की साख और सम्मान बनवाने वाला फैसला था। राहुल गांधी की यात्रा के साथ कांग्रेस के सच्चे लोकतांत्रिक मिजाज को लोगों को गले उतारना था। लेकिन कांग्रेस के इस टर्निंग प्वाइंट को परिवार ने एक झटके में श्मशान के दरवाजे पर पहुंचा दिया। हां, मामला श्मशान के बाहर जितना ही गंभीर हैं। कैसे? इसलिए कि सोनिया-राहुल-प्रियंका को अब अपनी गलती का ठीकरा अशोक गहलोत पर फोड़ना है। ये गहलोत को भरोसे लायक नहीं करार दे कर उन्हें अध्यक्ष पद का उम्मीदवार नहीं बनाएंगे। और जिसे बनाएंगे वह डमी होगा। जनता की निगाह में उनका गुलाम होगा। मोदी-शाह-भाजपा पूरे देश में नए जोश के साथ नैरेटिव बनवाएंगे कि देखो, गांधी परिवार ने कैसे गहलोत को डंप करके एक डमी को अध्यक्ष बनाया। और वह डमी अध्यक्ष (फिर भले मीराकुमार, मुकुल वासनिक, खडगे, पवन बंसल, वेणुगोपाल आदि में कोई भी हो) न तो गुजरात, हिमाचल, कर्नाटक और बाद के विधानसभा चुनावों में गहलोत जैसी मेहनत करता हुआ होगा और न नीतीश, शरद पवार, केसीआर, ममता, अखिलेश जैसे विपक्षी नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिला कर, जमीनी समझ से सन् 2024 की चुनावी तैयारियां करवा सकेगा। नोट रखें मेरी इस बात को कि सन् 2024 के चुनावों में कांग्रेस की वहीं हालत होगी जो चन्नी की कमान में पंजाब में हुई! क्या ऐसा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बावजूद? हां, इसलिए क्योंकि यात्रा उत्तर भारत के राज्यों में फेल होनी है। केरल में यात्रा के असर की जो इनसाइड खबर है, और राहुल गांधी जनसंपर्क के बजाय जैसे केवल हर दिन 22 किलोमीटर चलना है, की धुन में हाईवे व गूगल मैप से कन्हैया एंड पार्टी के संग यात्रा कर रहे हैं तो उस सबसे उत्तर भारत में यात्रा अपने आप फेल होगी। (मैं इस पर विस्तार से बाद में लिखूंगा)। भाजपा और उत्तर भारत के तमाम क्षत्रप नेता तब राहुल गांधी, उनके डमी अध्यक्ष से विपक्षी तालमेल को लेकर संजीदा नहीं होंगे। यह भी तय माने कि तब कांग्रेस उत्तर भारत के आगामी विधानसभा चुनावों में लड़ सकने लायक ताकत से भी चुनाव नहीं लड़ते हुए दिखेंगी। जबकि मोदी और शाह जीवन मरण की ताकत से चुनाव लड़ेंगे। वही कांग्रेस मीरा कुमार, मुकुल वासनिक जैसे अध्यक्ष चेहरे से चुनाव लड़ेगी। तभी अपना मानना है कि अगले 24 घंटे कांग्रेस के लिए निर्णायक हैं। उस नाते चुनाव रद्द करना या टालना या राहुल व प्रियंका में कोई अध्यक्ष बने तो बात अलग है अन्यथा राहुल और प्रियंका अपने ही बनाए भंवर में सोनिया गांधी से डुबाने वाला फैसला करा रहे हैं। हां, राहुल व प्रियंका के ही सचिन पायलट के भंवर में डूबने से कांग्रेस का विकट मोड़ है। सवाल है भंवर से क्या मतलब? तो जवाब में जरा आप भी सोचें कि राहुल-प्रियंका ने क्या चाहा? और उनकी तरफ से केसी वेणुगोपाल, अजय माकन ने क्या किया? पहली बात जिस नेता को अध्यक्ष लायक भरोसेमंद, जमीनी नेता माना और अध्यक्ष पद के लिए उसका नाम सोचा उस पर अचानक अविश्वास कर डाला। सोचे राहुल-प्रियंका और उनके नौजवान सलाहकारों की इस बुद्धि पर जिन्होंने अध्यक्ष बनने से पहले ही सोनिया गांधी को क्या समझाया? पता नहीं गहलोत अध्यक्ष बनने के बाद सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने दें या नहीं। इसलिए वे अध्यक्ष पद के लिए नामांकन पत्र भरे उससे पहले ही सचिन पायलट को राजस्थान में मुख्यमंत्री बनवा लें। कह नहीं सकते कि यह जिद्द राहुल की थी या प्रियंका की। लेकिन जिस की भी रही हो उसके दिमाग में तनिक भी यह समझ नहीं थी कि ऐसा करके वे कांग्रेस को सांप-नेवले की पार्टी नहीं बना देंगे? मेरा मानना है कि सोनिया, प्रियंका, राहुल गांधी को सांप-नेवले की लड़ाई और उससे किसी भी संस्था, पार्टी का कैसा नुकसान होता है यह नहीं जानते है। कल्पना करें, सचिन पायलट जयपुर में मुख्यमंत्री और अशोक गहलोत एआईसीसी में राष्ट्रीय अध्यक्ष! उस दशा में क्या होगा? चौबीसों घंटे गहलोत और पायलट दोनों एक-दूसरे पर सांप-नेवले की तरह फुंफकारते हुए। लड़ते हुए, घायल होते हुए। खास कर तब जब विधायकों को आगे टिकट एआईसीसी से लेनी है और बहुसंख्यक विधायक पायलट को लेकर नफरत पाले हुए। राहुल-प्रियंका-वेणुगोपाल-माकन ने इतना भी ध्यान नहीं रखा कि पहले भी गहलोत बनाम पायलट की असली विधायक ताकत दुनिया ने देखी हुई हैं। पायलट की मैजोरिटी नहीं थी। इसलिए मेरा मानना है कि यदि पायलट को सीएम बनवाना भी था तो सोनिया गांधी दोनों को बुलाकर उनको सामने बैठा कर बात करती। बात करके, गहलोत के आगे पायलट से माफी मंगवा कर और निज आग्रह से गहलोत को कहती कि अध्यक्ष बनने के बाद आप विधायकों में रजामंदी बनवा कर उन्हें मुख्यमंत्री बनने दें। यदि यह एप्रोच होती तो मेरा मानना है कि सहज सत्ता ट्रांसफर संभव था। मगर ठीक उलटा हुआ। सचिन पायलट ने राहुल व प्रियंका पर डोरे डाल कर मानो यह मैसेज बनाया कि गहलोत को पार्टी अध्यक्ष ही इसलिए बना रहे हैं ताकि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का रास्ता साफ हो। एक व्यक्ति दो पद पर नहीं रह सकता है तो इसके अर्थ में राहुल-प्रियंका ने आंख मूंद तय करके कहां जाओ, सचिन पायलट, राजस्थान के मुख्यमंत्री बनो। घटनाक्रम साफ बतलाता है कि राहुल के साथ सचिन पायलट ने यात्रा की। राहुल ने एक व्यक्ति, एक पद का वाक्य बोला। सचिन पायलट दिल्ली पहुंचे। जानकार विधायकों के अनुसार उन्होंने अपने खास छह विधायकों को अजय माकन से मिलवाया। प्रियंका और सोनिया से आशीर्वाद लिया। जयपुर पहुंचे और चल रही विधानसभा में जा कर पायलट ने विधायकों से जनसंपर्क किया। उन्हें बताया कि राहुलजी ने कह दिया है- एक व्यक्ति, एक पद। कहते हैं कि विधायकों और अपने ग्रुप को मोबिलाइज करते हुए पायलट ने मंत्री पद भी बांट दिए। मतलब मेरा फलां गृह मंत्री होगा आदि, आदि। इसी की वजह से मोटा मोटी कांग्रेस विधायकों में विधानसभा भवन में पायलट की मेल मुलाकात से ही खटका बन गया  था कि पायलट सीएम बन कर आ रहे हैं। अब क्या होगा? वह तो हमारी सुनेगा नहीं! मेरा मानना है कि अशोक गहलोत ने विधायकों की बैठक करके उनसे विदाई लेने व दिल्ली में नामांकन पत्र भरने के समय उन्हें उस वक्त मौजूद रहने की बात कह कर गलती की। इससे पायलट ग्रुप का जोश बना। सोचा अब चूकना नहीं चाहिए। मीडिया में हल्ला बना दिया गया कि पायलट होंगे अगले सीएम। विधायकों की उस विदाई बैठक में गहलोत ने साफ कहा था कि फलां तारीख को नामांकन भरेंगे, सब उसमें आए। कल वे तानोट देवी में दर्शन के लिए जाएंगे। एक दिन नासिक भी जाएंगे। मतलब गहलोत को होनी का रत्ती बर अनुमान नहीं था। तभी अचानक रात में जब केसी वेणुगोपाल ने पर्यवेक्षकों के जयपुर पहुंचने व विधायक दल की बैठक बुलाने की सूचना दी तो गहलोत सहित उनके विधायक सन्न। भला फटाफट यह कैसे? मोटा मोटी वह पायलट को सीएम बनाने के लिए दिल्ली हाईकमान की कू याकि तख्त को पलटवाना था।  केसी वेणुगोपाल ने अपनी टूटी-फूटी हिंदी में आदेश दिया एक लाईन का प्रस्ताव पास करके भिजवाओ! सोचें, कल्पना करें कि जिस नेता को सोनिया गांधी ने अध्यक्ष बनाने जैसा मान-सम्मान दिया उसके साथ एआईसीसी के पट्ठों का कैसा औचक व्यवहार। राजस्थान की राजनीति (कांग्रेस, भाजपा या छोटी पार्टियों सभी में) भले लोगों की भली राजनीति है। उत्तर भारत के बाकी प्रदेशों जैसी लठैत राजनीति नहीं होती। तभी गहलोत पर क्या गुजरी होगी, इसका अनुमान लगा सकते हैं। बावजूद इसके वे पहले से निर्धारित प्रोग्राम अनुसार जयपुर से सुबह तनोट मंदिर में दर्शन के लिए निकल गए। गहलोत की खुद्दारी इस नाते झलकी है कि वे अपने तय प्रोग्राम अनुसार जैसलमेर गए। मतलब दिल्ली के पर्यवेक्षकों को जो करना हो करें। और उनकी तरफ से जयपुर में शांति धारीवाल ने मोर्चा संभाला। धारीवाल कोई गहलोत की कठपुतली नहीं हैं। वे खांटी कांग्रेसी हैं और नवलकिशोर शर्मा के साथ रहते हुए गहलोत के विरोध में भी बेधड़क रहे हैं। बुढ़ापे के बावजूद उनमें दम है। और धारीवाल ने दो टूक स्टैंड ले मारा कि मैं गद्दार को नेता नहीं मान सकता। ऐसा क्यों?  सोनिया, प्रियंका, राहुल मानें या न मानें लेकिन यह रियलिटी है कि पिछले चार सालों से गहलोत सरकार सचिन पायलट की बंधक रही है। मेरा मानना है कि इस कार्यकाल में अशोक गहलोत ने राज ही नहीं किया। वे और उनका कैबिनेट या तो पायलट की चिंता में रहे या कोविड की चिंता में। सीएम बनने के लिए पायलट ने राजस्थान में चार सालों में जो किया, गुर्जर समर्थकों के साथ जयपुर में जैसा उत्पात हुआ और फिर भाजपा की साठंगांठ में जो बगावत हुई तो वैसा राजस्थान के राजनीतिक इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ है। कांग्रेस के एक जाट एमएलए ने ठीक कहा कि पायलट यदि अभी सीएम बने हुए होते और तब सोनिया, प्रियंका उन्हे हटाने के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे, अजय माकन या वेणुगोपाल को जयपुर भेजती तो उनके ये पर्यवेक्षक पायलट समर्थकों से बुरी तरह पीट कर दिल्ली लौटते। हां, ऐसी है पायलट को लेकर बहुसंख्यक कांग्रेसी विधायकों की सोच। और मैं सचमुच नहीं मानता था मगर हुआ जो पायलट के परसेप्शन में धारीवाल के यहां सुबह विधायक आने शुरू हुए तो शाम तक 82 विधायकों की संख्या हो गई। सभी ने एक सुर में विधायक दल की बैठक में जाने से इनकार किया। इनका मानना था कि पायलट समर्थकों के साथ मारपीट हो जाएगी। वे जबरदस्ती प्रस्ताव करवाएंगे। इसलिए आपसी मारपीट, एक-दूसरे पर कुर्सी फेंकने जैसी बदनामी हो उसकी बजाय बहिष्कार और इस्तीफे दो। फिर ये विधायक स्पीकर सीपी जोशी के घर भी पहुच गए। कहते हैं स्पीकर ने कहा ऐसे कोई होता है। तो एक-एक करके विधायक ने अलग-अलग इस्तीफा लिख स्पीकर को दिया। वीडियो भी बनाई गई। इस प्रकरण में मुझे अच्छी बात यह लगी जो राजस्थान की गरिमा, खुद्दारी में विधायकों की तरफ से धारीवाल और उनके साथियों ने मिल कर पर्यवेक्षक से दो टूक शब्दों में कहा कि हम खांटी कांग्रेसी हैं। सोनियाजी को मानते हैं। लेकिन इतना तो हो कि पहले हम विधायकों में एक-एक की राय जानें। रायशुमारी हो। हम गद्दार को सीएम नहीं मानेंगे।... और बता देंते है कि यदि पायलट को आपने सीएम बना दिया तो वह दिल्ली आ कर मोदी और अमित शाह से मिलेगा, उन्हें गुलदस्ता देगा लेकिन सोनिया गांधी से नहीं मिलने जाएगा। मौका बना तो बाद में सरकार के साथ बीजेपी में जा मिलेगा! सोचें, कैसा भाव, कैसा रूख! मगर सोनिया गांधी के यहां एकदम उलटा इंप्रेसन बन है। वहां बिल्कुल अलग सोच। एक तरफ राजस्थान के कांग्रेस विधायकों की बगावत और दूसरी तरफ पायलट की जिद्द का भंवर। नतीजतन अशोक गहलोत जहां गांधी परिवार की नजरों में उतरे हुए तो पायलट चढ़े हुए। इसका लबोलुआब अध्यक्ष पद के चुनाव के साहस के राष्ट्रीय मैसेज के किए धरे पर पानी फिरता हुआ। सोनिया-राहुल-प्रियंका के वक्त की गडबड है। तभी अचानक पार्टी भटकने के कगार पर। सचमुच में चन्नी कांग्रेस बनने की और बढ़ती हुई राष्ट्रीय कांग्रेस। सोचें कहीं यह हो तो कैसी मजेदार बात होगी कि सोनिया गांधी यह तय कर दें कि सचिन पायलट को अध्यक्ष बना दिया जाए। वही है लाडला रियल विश्वासपात्री!  हां, कांग्रेस के नौजवानों ने पार्टी को ऐसा ही मसखरा बना डाला है। और यह दुर्भाग्यपूर्ण है। इसलिए क्योंकि मैं बहुदलीय लोकतंत्र में राष्ट्रीय विकल्प की जरूरत मानता हूं।
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