कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन 23 नेताओं की बैठक आखिरकार बुला ही ली, जिन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व और संगठन के बारे में उन्हें एक अप्रिय पत्र लिख भेजा था। यह बैठक उन्होंने हैदराबाद और बिहार के चुनाव में बुरी तरह से मात खाने के बाद बुलाई और उस समय बुलाई जब बंगाल में कांग्रेस का सूंपड़ा साफ होता दिखाई पड़ रहा है। इससे क्या जाहिर होता है ? क्या यह नहीं कि कांग्रेस अब बूढ़ी हो गई है, थक चुकी है और दिग्भ्रमित हो गई है ? जो बैठक हुई, उसमें क्या हुआ ? पांच घंटे चली इस बैठक के बारे में विस्तार से जनता को कुछ पता नहीं। कांग्रेसी कार्यकर्ता भी उससे अनभिज्ञ हैं। कुछ अखबारों में फूटकर जो खबरें बाहर बह आई हैं, उनसे अंदाज लगता है कि कांग्रेस में सगठनात्मक चुनाव होंगे याने उसमें कई दशकों बाद आंतरिक लोकतंत्र का समारंभ होगा। अब तक दुनिया की यह काफी पुरानी और काफी बड़ी पार्टी किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चल रही है।
अब तो उसने मां-बेटा या भाई-बहन पार्टी का रुप धारण कर लिया है। किसी भी निजी कंपनी की तरह इस पार्टी में अध्यक्ष से लेकर लघुतम पदाधिकारी तक नामजद होता रहा है। अब यदि संगठनात्मक चुनाव होंगे तो वे भी प्रांतीय और जिला पार्टी तक सीमित रहेंगे। अध्यक्ष तो फिर भी नामजद ही होगा। इस बैठक में किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि वह दो-टूक शब्दों में अध्यक्ष के चुनाव की बात कहे। अगर अध्यक्ष का चुनाव हो भी जाए तो राहुल और प्रियंका के सामने खड़े होने की हिम्मत किसकी है ? यह बैठक भी खुशामदियों और जी-हुजूरों का अड्डा साबित हुई। कांग्रेस-जैसी महान पार्टी की वर्तमान दुर्दशा का सांगोपांग विश्लेषण इस बैठक में भी नहीं हुआ। कांग्रेस पार्टी में आज भी एक से एक अनुभवी और योग्य नेता हैं तथा उसके सदस्य कमोबेश देश के हर जिले में मौजूद हैं लेकिन यदि उसका शीर्ष नेतृत्व जो अभी है, वही रहा तो मानकर चलिए कि वह अपनी अंतिम सांसें गिन रही है। उसे कोई नहीं बचा सकता। कांग्रेस को आज नेता और नीति, दोनों की सख़्त जरुरत है।
Dr. Vaidik is a well-known Scholar, Political Analyst, Orator and a Columnist on national and international affairs.