बेबाक विचार

खडगे, दिग्विजयसिंह और गहलोत की त्रिमूर्ती

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खडगे, दिग्विजयसिंह और गहलोत की त्रिमूर्ती
गुजरा सप्ताह कांग्रेस को खंगालने वाला था। पूरे देश में पार्टी की चर्चा हुई। राजस्थान में अशोक गहलोत और कांग्रेसी विधायकों ने जो किया तो उससे कुल मिलाकर देश में गहलोत की इमेज बनी। यह चर्चा कतई नहीं हुई कि हाईकमान के खिलाफ उनकी गद्दारी थी। उलटे आलाकमान, एआईसीसी पदाधिकारियों और सचिव पायलट को ले कर यह विमर्श बना कि इन लोगों ने कैसे उस नेता को तब बदलना चाहा जब वह आम राय में पार्टी अध्यक्ष के पद का नामांकन भरने वाला था। ऐसे ही दिग्विजयसिंह की दावेदारी से उनका प्रोफाइल बढा। फिर अचानक मल्लिकार्जुन खडगे की उम्मीदवारी निकल कर आई तो इसका कर्नाटक और दक्षिण में बहुत मतलब है। सोचने वाली बात क्या इस तरह कभी भाजपा में अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ? बहरहाल पते की बात है कि राहुल गांधी के इस्तीफा देने के कोई तीन साल बाद पार्टी को एक निर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष मिलेगा! इतना वक्त लगा कांग्रेस को फैसला करने में। यह काम राहुल गांधी तभी करवा सकते थे जब उन्होने इस्तीफा दिया। उनके इस्तीफे के बाद मैंने गपशप कालम में 9 जुलाई 2019 को इस शीर्षक से गपशप लिखी थी कि - हां, नसीब में राहुल भी हैं! उसमें लिखी इन लाइनों पर गौर करें- मैंने राहुल गांधी के इस्तीफे के पहले दिन ही लिखा था कि उन्होंने इस्तीफा दिया है तो उन्हें पता भी है कि वे चाहते क्या हैं? दो महीने बाद आज राहुल को खुद मां और बहन के साथ बैठ कर विचारना चाहिए कि उन्होंने इस्तीफा जब दिया था तो क्या वह सब सोचा था जो उनके इस्तीफे के बाद कांग्रेस में हुआ है? कांग्रेस में आज जैसी भगदड़, अनिश्तितता, किंकर्तव्यविमूढ़ता है क्या उस सब का राहुल गांधी को अनुमान था?...हां, कांग्रेस के एक भी नेता में, कार्यसमिति या किसी भी कांग्रेसी थिंक टैंक, व्यवस्था में इनती भी समझ नहीं है कि संकट बनने पर उससे कैसे बाहर निकलें? कांग्रेस में न अंदरूनी राजनीति है और न बाहरी राजनीति का माद्दा और विजन! सोचें, इतनी बड़ी और पुरानी पार्टी और इतने चेहरे मगर बिना राजनीति के! नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने 2012 से ले कर अब तक के सात सालों में प्रमाणित किया है कि वे राजनीति के ग्रैंडमास्टर हैं। राजनीति की धूर्तताओं में सब कुछ साधने में समर्थ हैं। साम-दाम-दंड-भेद के सभी नुस्खों के धुरंधर हैं, जबकि इन सात वर्षों में सोनिया गांधी, राहुल गांधी से ले कर डॉ. मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम, अहमद पटेल आदि कार्यसमिति के तमाम सदस्यों ने बार-बार लगातार प्रमाणित किया है कि उन्हें पता ही नहीं है कि यदि शतरंज के खेल में सामने घाघ खिलाड़ी आ गया तो ये उसके आगे कैसे खेलें? क्या गेमप्लान हो? कौन हो कप्तान और कैसे टीम को रखें संगठित? इसके बाद गपशप के दूसरे आइटम का शीर्षक था-  आज कर्नाटक और आगे... इसमें मेरा खुलासा था – “गजब बात जो कर्नाटक में सरकार का संकट और राहुल गांधी अमेरिका में! कर्नाटक की राजनीतिक समस्या को सुलझाने के लिए न राहुल गांधी सक्रिय दिखे और न उनके नंबर एक महासचिव और कर्नाटक प्रभारी वेणुगोपाल सक्रिय दिखलाई दिए।“… “…ऐसा ही संकट आगे मध्यप्रदेश, राजस्थान की सरकारों पर भी आना है। मोदी-शाह इन सरकारों को पांच साल कतई नहीं चलने देंगे। लेकिन इसकी न एआईसीसी में फिक्र है और न प्रदेश मुख्यमंत्री चिंता में हैं और न प्रभारी महासचिवों का कोई रोडमैप है। हकीकत में इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के लोगों और विधायकों में वैसा ही मूड बनने लगा है, जैसा कर्नाटक में धीरे-धीरे बना। हां, कर्नाटक में भी कांग्रेस नेता सिद्धरमैया आदि की राजनीति ने बगावत बनाई और सरकार बिखरी।….. जो हो, राहुल गांधी, उनकी टीम और एआईसीसी के पदाधिकारियों का कर्नाटक सहित तमाम प्रदेशों में कांग्रेस विधायकों, सांसदों (महाराष्ट्र से ले कर पंजाब, तेलंगाना, आंध्र सब तरफ) को  नहीं संभाल सकना मोदी-शाह के लिए कांग्रेस को खत्म करने का भारी मौका है। और ये मौका नहीं चूकेंगे। …. तभी लाख टके का सवाल है कि कांग्रेस का आगे क्या होगा? अगले अध्यक्ष का फैसला कब होगा? सोचे, कोई तीन साल पहले बिना अध्यक्ष की कांग्रेस पर लिखी मेरी लाईनों के क्या सत्य-सत्य निकले? मध्यप्रदेश में सरकार गई। सचिन पायलन ने भाजपा के साथ मिलकर राजस्थान में कांग्रेस सरकार गिराने का हर संभव काम किया। असंख्य कांग्रेस नेता मोदि-शाह की मंडी में बिके और कांग्रेस मुक्त भारत के मिशन में क्या कुछ नहीं हुआ? उस नेता पुराने, खांटी नेताओं के चेहरों के आगे आने से यदि कांग्रेस ने अक्टूबर बाद कायदे से राजनीति की? दिग्विजयसिंह व अशोक गहलोत को नेता विपक्ष व कार्यकारी अध्यक्ष बना कर यदि उत्तर-दक्षिण के फार्मूलों में रणनीति बनाई तो कांग्रेस उत्तर भारत में भी चुनाव लड सकने वाली ताकत बना सकेगी।
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