बेबाक विचार

आएगा तो मोदी ही! सोचे क्यों ?

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आएगा तो मोदी ही! सोचे क्यों ?
आंखे छलछला गई! समझ नहीं आया बीबीसी, सीएनएन की कवरेज पर भी भावाविह्ल होना! अच्छा लगा जो बाईडेन ने सीरम के लिए रोबोटिक्स निर्यात मंजूर किया। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी सभी का मदद के लिए आगे आना! जिस देश ने तेरह महिने शेखचिल्लीपने में वायरस का सत्य नहीं माना, विश्वगुरू के झूठ में जीया वह देश दुनिया के सभ्य देशों की कृपा पा गया इसके लिए ईश्वर को जीतना धन्यवाद करेंगे कम होगा।   ऐसा कैसे हुआ? इसलिए क्योंकि वैश्विक मीडिया संस्थानों ने (न्यूयार्क टाईम्स, द इकॉनोमिस्ट, सीनएन, फ्रेंच टीवी सभी) भारत की दिल दहलाने वाली हककीत लगातार दुनिया के आगे रख रहे है। इससे जहां भारत भले दुनिया का छह महिने अछूत देश रहे, बीमार, बरबाद और श्मशान में तब्दील, भिखारी देश बना रहे लेकिन पृथ्वी के लोग भारत पर दया किए रहेंगे। भारत सरकार, नरेंद्र मोदी और उनके प्रधानमंत्री दफ्तर ने दिन-रात एक करके टिवटर, फेसबुक से भारत का सत्य, श्मशानों का सत्य बतलाते टिवट और पोस्ट चाहे जितने डिलिट करवाएं और  हालात कंट्रोल में बताने, सकारात्मक खबरे चलवाने को दुनिया को झूठ परोसा लेकिन दुनिया ने समझा, जो बाइदेन ने समझा कि भारत की मदद वक्त का तकाजा है। सोचे, भारत सरकार टिवटर, फेसबुक से आलोचना, असलियत मिटवाती हुई तो दूसरी तरह दुनिया भारत को मदद पहुंचाती हुई! इसलिए कि भारत का ऑक्सीजन संकट, श्मशान रूप सर्वत्र चर्चा में है। तेरह महिनों में दुनिया की किसी राजधानी में जीवन बचाने की बेसिक चीज आक्सीजन की वैसी कमी नहीं है जैसी दिल्ली में हुई तो दुनिया के लिए अनुमान लागाना मुश्किल नहीं है कि 138 करोड लोग किस दशा में पहुंच गए है। उन्होने जान लिया भारत सत्य! पृथ्वी का नंबर एक बीमार, नंबर एक श्मशान, नंबर एक भिखारी वाली दशा में है भारत। कैसे बनी यह दशा? सवाल पर विचार से पहले सोचना होगा कि क्या भारत बीमार है? हां, यह विचारना तब संभव हो जब बुद्धी हो। और यदि वह होती तो शेखचिल्ली नस्ल क्या तेरह महिने महामारी को महामारी नहीं मानती? क्या राजा और प्रजा ताली-थाली बजाकर वायरस पर विजय के झूठ में जीते? ईश्वर ने यदि आपको तनिक भी बुद्धी दी है तो सोचे कि 24 मार्च 2020 को तालाबंदी के नरेंद्र मोदी के भाषण के वक्त से आज तक दुनिया के बाकि देशों की तुलना में भारत में वायरस पर क्या सोचा गया? क्या रीति-नीति बनी? नरेंद्र मोदी की ऊंगली के सुदर्शन चक्र में हिंदू किस भक्ति भाव डुबे रहे? अमेरिका, ब्राजिल, जैसे देशों में भी ट्रंप, बोलोसानरों जैसे मूर्ख राष्ट्रपतियों से अलग लोग, संस्थाएं, सिविल सोसायटी सब सोचते हुए थे जबकि भारत सौ फिसद नरेंद्र मोदी के चरणों में बुद्धी का समर्पण किए हुए था। मानों वायरस मोदी के लिए मोदी के खातिर, मोदी को मौका देने के लिये था। सो वायरस का सत्य नहीं बल्कि मोदी का कहा बह्ण वाक्य! मतलब  भारत में लोग महामारी पर सोचते हुए नहीं थे बल्कि नरेंद्र मोदी की चिंता करते हुए थे और है। अभी-अभी हिंदू -लंगूर बुद्धी के एक प्रतिनिधी अनुपम खेर से यह ज्ञान सुनने को मिला- घबराइए मत आएगा तो मोदी ही! सोचे यह सवाल कहां है कि मोदी आएगा या नहीं? सवाल था, है और होना चाहिए कि वायरस जाएगा या नहीं? जब देश श्मशान में तब्दील है, जब भारत दुनिया का नंबर एक बीमार-बरबाद-भिखारी देश हो चुका है तब के सूतक काल में भी अनुमप खेर सिर्फ नरेंद्र मोदी का ख्याल लिए है। वे दुनिया को भरोसा दे रहे है मोदी आएगा। अनुपम खेर पूरे देश के उन हिंदुओं के प्रतिनिधी है जिन्हे लोगों के मरने की, देश की बरबादी की चिंता नहीं है बल्कि नरेंद्र मोदी की चिंता है। अनुपम खेर का आज का वाक्य उन्हे मोदी का भारत रत्न बनाने वाला है। नरेंद्र मोदी और उनका प्रधानमंत्री दफ्तर, सोशल मीडिया के लंगूर वायरस की दूसरी लहर के बाद अपनी तह हर संभव इस झूठे प्रचार में जुटे हुए है कि जो सत्य है वह मोदी को फेल करने की साजिस है। ऐसे-ऐसे झूठ फैला रहे है जैसे यह कि  भारत (मोदी) के खिलाफ दुश्मन ने जैविक लड़ाई चलाई है। भारत को अस्थिर, अशांत बनाने की साजिश है। श्मशान के फोटो मत देखों, झूठी खबरें मत बढ़ों, सकारात्मकता लाओं, पोजिटिविटी के साथ जीओं, अच्छे दिन आएगे, खुशियां आएगी। यही तो भारत 13 महिनों से कर रहा था। हिंदुओं ने तेरह महिने मोदी और उनके प्रचार की अच्छी-अच्छी, सकारात्मक बातों को सुन कर गुजारी और दुनिया से कहां वायरस एक झूठ है। हिंदू के दिमाग का मोदी वायरस  यह पोस्ट तक लिखने लगा है कि मौत भी आ जाए तो कोई बात नहीं क्योंकि मोदी के राज में मौत मोक्ष है। तब भला श्मशान की तस्वीरों को ट्विटर से क्यों डीलिट करवाना? मोदी आएगा यह कनफर्म है, मोदी से मोक्ष है यह हिंदू का पुण्य है तो फिर प्रधानमंत्री दफ्तर, सरकार और उनकी सोशल मीडिया टीम मोक्ष से सद्गति प्राप्त हिंदुओं की श्मशान भीड़ के फोटो, पोस्ट आदि को डिलिट करवाते हुए क्यों है? भारत में कितने ही बीमार हो जाए, कितनी मौते हो जाए तो उन्हे छुपाने के झूठे आंकड़े बनाने की जरूरत क्या है? दुनिया के तमाम वैश्विक अखबार, न्यूयार्क टाईम्स से ले कर इकॉनोमिस्ट भारत में अपने रिपोर्टर दौड़ा कर पहले पेज पर लंबी रपटें छाप रहे है, कवर स्टोरी दे रहे है कि भारत में कोविड़ विनाश दुनिया के लिए भी विपदा है तो मोदी सरकार को दुनिया को उलटे  आश्वस्त करना चाहिए कि चिंता न करें हम हिंदू मोक्ष लाभ ले रहे है! बात में व्यंग आ रहा है। असली बात है कि भारत कितना ही बरबाद हो, श्मशान में भले तब्दील हो इस सबका नरेंद्र मोदी की सेहत पर असर नहीं होना है? वायरस नरेंद्र मोदी को नहीं हरा सकता वह 2024 में भी रहेगा और तब नरेंद्र मोदी वायरस को चुनाव में हरा कर बतलाएंगे कौन अजेय? यह अगले दो साल नोट रखने वाली बात है। ऐसे ही दिमाग और विश्वास में उन्होने बंगाल आदि विधानसभा के चुनाव लड़े। नरेंद्र मोदी और भाजपा ने लोगों की जान की परवाह न करके जिस अंदाज में चुनाव लड़ा है वह दुनिया को जतलाने के लिए है वे वायरस के आगे भी अजेय है। दुनिया भले माने कि भारत विनाश के दौर में है लेकिन हिंदुओं के लिए तो वे मोक्षदाता थे, है और रहेंगे। सो भारत के वक्त को ले कर सोचने की जरूरत नहीं है। हिंदू समाज हर तरह से दुनिया के आगे साबित कर दे रहा है (दवाओं की ब्लेकमार्केटिंग, सिस्टम के सभी अफसरों-अंगों-संस्थाओं की लापरवाही, ईलाज की फीस, ऑक्सीजन के त्रासद अनुभव से लेकर हर जरूरी चीज में दाम की मनमानी वसूली) कि नीचता, असंवदेशनशीलता का असली चरित्र मोदी राज में खिला है। हिसाब से भारत और हिंदुओं के साथ जो हो रहा है और अगले दो-तीन साल जो होगा वह ईश्वरीय न्याय में झूठों के साथ निर्मम व्यवस्था की वैश्विक बानगी होगा। क्या ईश्वर को इतनी निष्ठुरता, इतनी निर्ममता हिंदुओं पर बरपानी चाहिए? किन पापों की सजा है हिंदुओं को जो दुनिया जब ठिक हो जाएगी तब भारत की बरबादी का पीक शुरू होगा?
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