आईपीएल को बीच में रोक दिया गया। लेकिन सवाल है कि देश जिस पीड़ा और त्रासदी में है, उसके बीच ये तमाशा आखिर हुआ ही क्यों? ये बड़ी अजीब बात है कि जब दिल्ली में लॉकडाउन लगा है और सिर्फ अति आवश्यक सेवाओं को ही जारी रखने की इजाजत है, तब यहां आईपीएल के मैच कैसे खेले गए? आखिर किस कसौटी पर पैसे और ग्लैमर के इस आयोजन को आवश्यक सेवा कहा जा सकता है? आखिरकार वही हुआ, जिसका डर था। एक के बाद एक खिलाड़ी कोरोना वायरस संक्रमण से पीड़ित होने लगे। चर्चा तो यह है कि शुरुआत में आईपीएल की आयोजक बीसीसीआई ने इसे छिपाने की कोशिश की। लेकिन वो खबर खिलाड़ियों के ह्वाट्सऐप मैसेज के ऑस्ट्रेलिया में लीक होने से जग-जाहिर हो गई। उसके बाद संक्रमित खिलाड़ियों की सूचना सार्वजनिक की गई। तो पहले एक मैच रद्द हुआ। फिर पूरे टूर्नामेंट को फिलहाल रोक दिया गया है, जिसे 30 मई तक चलना था। लेकिन जैसाकि कहा जाता है कि रस्सी भले जल जाए, लेकिन बल नहीं जाता है, तो ऐसी चर्चाएं बीसीसीआई की तरफ से जिंदा रखी गई हैं कि टूर्नामेंट के बाकी मैच सितंबर में कराए जाएंगे। क्या इस समय यह सोचना भी मानवीय कहा जाएगा?
इससे सिर्फ यह जाहिर होता है कि बीसीसीआई को ना तो देश की भावनाओं की चिंता है, और ना ही खिलाड़ियों की सेहत की फिक्र है। गौरतलब है कि कोलकाता नाइटराइडर्स टीम के दो खिलाड़ियों वरुण चक्रवर्ती और संदीप वॉरियर के कोविड-19 से पॉजिटिव पाए जाने के बाद क्रिकेट बोर्ड ने प्रतियोगिता को रोक देने का एलान किया। कहा कि बीसीसीआई खिलाड़ियों, कर्मचारियों और प्रतियोगिता में शामिल अन्य प्रतिभागियों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करना चाहता। लेकिन असलियत यह है कि भारत में जारी कोविड-19 महामारी के प्रकोप के बीच आईपीएल के जारी रहने को लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे थे। पिछले हफ्ते ऑस्ट्रेलिया के दो खिलाड़ी पैट कमिन्स और ऐडम जाम्पा टूर्नामेंट बीच में छोड़कर ही स्वदेश लौट गए। कई और खिलाड़ी लौटने की इच्छा जता रहे थे, लेकिन फ्लाइट उपलब्ध ना होने से भारत में बने रहने को मजबूर थे। बहरहाल, असल सवाल यह है कि जब भारत में कोहराम मचा हुआ है, ऐसे में आईपीएल कराने का ही क्या औचित्य था? क्या अगर इस आयोजन को सत्ता का संरक्षण नहीं होता, तो इसे इतने समय तक चलाना संभव हो पाता? f