Shame and Condolence : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दिवंगत नेता डीपी त्रिपाठी ने एक बार कहा था कि नेता होने के लिए दो अनिवार्य गुणों की जरूरत है- अकल्पनीय चापलूसी और असीमित बेशर्मी! पहला गुण नेता होने की निजी जरूरत है, लेकिन दूसरा सामूहिक है। पार्टियां हों या सरकारें बेशर्मी उनका अनिवार्य गुण है। चाहे कुछ भी हो जाए उनको शर्म नहीं आती। सोचें, भारत के अलग अलग राज्यों की उच्च अदालतों ने और देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और संवैधानिक संस्थाओं के लिए क्या-क्या नहीं कहा, लेकिन कहीं रत्ती भर भी ऐसा महसूस हुआ कि इससे सरकार को, उसके मुखिया को या सरकार में शामिल किसी भी व्यक्ति को कोई शर्म महसूस हुई है? दुनिया भर की मीडिया ने भारत की केंद्र सरकार के लिए क्या-क्या कहा पर क्या ऐसा लग रहा है कि इससे सरकार की सेहत पर कोई फर्क पड़ा है? सरकार उसी मोटी चमड़ी के साथ सारी बातों को एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल रही है।
Shame and Condolence : ऐसा लग रहा है कि सरकार की आंख का पानी पूरी तरह से सूख चुका है। तभी न तो कोई शर्म दिख रही है और न संवेदना। पिछले एक महीने में प्रधानमंत्री ने कई चुनावी सभाएं कीं, देश को भी एक बार संबोधित किया, एक बार रेडियो पर मन की बात की, एक बार मंत्रिपरिषद की बैठक की, एक बार कैबिनेट की बैठक भी की और इसके अलावा भी कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बोले और सैकड़ों ट्विट किए परंतु एक बार भी उन्होंने ऑक्सीजन की कमी से तड़प-तड़प कर मर गए मां भारती की सैकड़ों संतानों के लिए कुछ नहीं कहा। उनके मुंह से एक शब्द संवेदना का नहीं निकला। भारत की सरकार और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के किसी नेता ने हर दिन होने वाली हजारों मौतों पर आह नहीं भरी है। एक तरफ बेशर्मी की पराकाष्ठा है तो दूसरी तरफ संवेदनहीनता का चरम है!
Shame and Condolence : आचार्य चाणक्य और उनके दो हजार साल बाद जन्मे मैकियावेली दोनों ने लिखा है कि राजा को उदार और दयालु होना चाहिए। उसे किसी हाल में क्रूर और निरंकुश नहीं दिखना चाहिए। प्रजा की नजर में उसका प्रमुख गुण उसकी दयालुता और उदारता है। लेकिन बात बात में चाणक्य का जिक्र करने वाली पार्टी और सरकार के किसी नेता ने सदी की सबसे बड़ी महामारी में न तो उदारता दिखाई है और न दयालुता। लोग सड़कों पर मर रहे हैं, अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं, साइकिल, ऑटोरिक्शा और कंधे पर उठा कर शवों को श्मशान में पहुंचाया जा रहा है, देश के लगभग हर श्मशान में चिता की राख ठंडी होने से पहले उस पर दूसरी चिता सजाई जा रही है, पूरा देश महाश्मशान बना हुआ है और फिर भी सरकार के मुखिया के श्रीमुख से संवेदना का एक शब्द नहीं निकला है।
Shame and Condolence : देश ने एक बार प्रधानमंत्री का माइक्रो बायोलॉजिस्ट वाला रूप देखा था, जब वे वैक्सीन बनाने वाली तीन कंपनियों के लैब्स का मुआयना करने गए थे। उसके बाद क्या हुआ? दो कंपनियों की वैक्सीन तो आ गई पर तीसरी कंपनी, जो प्रधानमंत्री के अपने गृह प्रदेश में है, उसकी वैक्सीन का क्या हुआ? देश की एक दर्जन और कंपनियों में वैक्सीन पर शोध चल रहा है। पर प्रधानमंत्री ने वैक्सीन की उत्पादन क्षमता बढ़ाने और देश के हर नागरिक के लिए समय से वैक्सीन का इंतजाम करने के उपाय नहीं किए। प्रधानमंत्री एक बार किसी अस्पताल का हाल जानने नहीं निकले। किसी वैक्सीनेशन सेंटर पर जाकर स्थिति का जायजा नहीं लिया। पश्चिम बंगाल के आठ चरण के चुनाव में उन्होंने हर बार ट्विट करके लोगों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोट डालने की अपील की। लेकिन वैक्सीनेशन के लिए लोगों को प्रेरित करने वाला ट्विट शायद एक बार किया है। उसके लिए ट्विट नहीं कर सकते हैं क्योंकि वैक्सीन ही नहीं है!
Shame and Condolence : मैकियावेली ने यह भी लिखा है कि लोगों की नजर में राजा को कंजूस नहीं दिखना चाहिए। भारत का राजा न सिर्फ कंजूस दिख रहा है, बल्कि खून चूसने वाले महाजन की तरह दिख रहा है। भारत के राजा ने वैक्सीन के ऊपर पांच फीसदी जीएसटी लगाया हुआ है। सरकार वैक्सीन की कीमत के ऊपर करोड़ों रुपए टैक्स के तौर पर वसूल रही है। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और ब्राजील से लेकर जापान और यूरोपीय संघ के सभी देशों में वैक्सीन मुफ्त में लगाई जा रही है। सरकारों ने करदाताओं के पैसे से ही वैक्सीन खरीदी है पर वह इस महामारी के समय वैक्सीन के लिए उनसे अलग से पैसे नहीं वसूल रही है। सभ्य दुनिया में भारत इकलौता देश है, जहां के नागरिक वैक्सीन के लिए कीमत चुका रहे हैं और ऊपर से जीएसटी भी भर रहे हैं। सोचें, इस जुल्म के बारे में! सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी कर रही है, जिसकी वजह से जरूरत की तमाम चीजें महंगी हो रही हैं। उससे राहत देने की बजाय सरकार वैक्सीन पर कीमत और टैक्स दोनों वसूल रही है। कह सकते हैं कि सरकारी अस्पतालों में फ्री वैक्सीन लग रही है या राज्य सरकारें फ्री वैक्सीन लगवाएंगी लेकिन अभी तक करोड़ों लोगों ने ढाई सौ रुपए चुका कर जो वैक्सीन लगवाई है उसका क्या? या जो लोग निजी अस्पतालों में महंगी कीमत पर वैक्सीन लगवाएंगे उसका क्या?
Shame and Condolence : बहरहाल, भारत की एक अदालत ने कोरोना फैलाने के लिए देश की संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग को हत्यारा कहा। एक अदालत ने लोगों की मौतों को नरसंहार कहा। एक अदालत ने कहा कि सरकार को इंसानी जिंदगी की परवाह नहीं है। एक दूसरी अदालत ने कहा कि सरकार लोगों को मरने देना चाहती है। एक तीसरी अदालत ने कहा कि सरकार शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन गाड़े हुए है। एक अदालत ने सरकार के पूरे सिस्टम को नाकाम बताया और अब देश की सर्वोच्च अदालत ने ऑक्सीजन और दवाओं की आपूर्ति पर निगरानी के लिए 12 सदस्यों की एक टास्क फोर्स बना दी है। इस टास्क फोर्स का संयोजन देश के कैबिनेट सचिव करेंगे। सोचें, देश के कैबिनेट सचिव अब सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश पर काम करेंगे। यह किसी भी संप्रभु सरकार के लिए शर्म की बात होनी चाहिए। लेकिन शर्म बची हो तब तो आए!
Shame and Condolence : अब तक दुनिया के अखबार और पत्रिकाएं जैसे ‘द वाशिंगटन पोस्ट’, ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’, ‘लंदन टाइम्स’, ‘ऑस्ट्रेलियन फाइनेंशियल रिव्यू’, ‘टाइम’ मैगजीन आदि भारत की केंद्र सरकार की विफलता पर लिख रहे थे। इन अखबारों और पत्रिकाओं ने ऐसा कुछ लिखा, जिसे पढ़ कर एक भारतीय के नाते सिर शर्म से झुक जाए। एक अखबार ने लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी के सामने देश के नागरिकों और अपनी छवि में से किसी एक को बचाना था तो उन्होंने अपनी छवि बचाने का फैसला किया। एक अखबार ने उनको ‘मरणासन्न हाथी पर मौत की सवारी’ कहा। एक दूसरे अखबार ने भारत में कोरोना महामारी के लिए उनकी गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहराया। लेकिन अब ‘लैंसेट’ जैसी वैज्ञानिक पत्रिका ने, जिसका राजनीतिक रिपोर्टिंग से कोई लेना-देना नहीं है, उसने लिखा कि भारत के प्रधानमंत्री ने जो गलतियां की हैं, उसके लिए उन्हें माफ नहीं किया जा सकता। दुनिया के बड़े अखबारों और पत्रिकाओं में छप रही खबरों और रिपोर्ट्स का तो भारत सरकार अपने दूतावासों और उच्चायोगों से खंडन करा रही थी लेकिन अब ‘लैंसेट’ की रिपोर्ट का क्या करेगी? क्या इससे भी सरकार को शर्म नहीं आएगी? या उसकी संवेदना नहीं जागेगी?
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