बेबाक विचार

मोदी पर दुनिया की कड़ी नजर!

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मोदी पर दुनिया की कड़ी नजर!
महामारी है वैश्विक! लेकिन विश्व में अकेले भारत बना ‘वैश्विक विपदा’! पूरा विश्व हिंदू श्मशानों की अराजकता, चौबीसों घंटे जलती चिताओं व ऑक्सीजन की कमी से तड़पते-मरते लोगों से दहला हुआ हैं! लोग अमेरिका में मरे, ब्राजील में मरे, इटली में मरे और मर रहे हैं लेकिन दुनिया ने, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नहीं कहा, यह वैश्विक हेडिंग नहीं बनी कि इटली, ब्राजील या अमेरिका ह्यूमैनटेरियन क्राइसिस याकि मानवीय संकट हैं या यह कि दशा ‘हृदय विदारक से भी परे’ है। लेकिन ऐसा भारत के लिए कहां गया। भला क्यों? क्यों दुनिया में चारों तरफ से मदद ले कर भारत के हवाईअड्डों पर हवाईजहाज उतर रहे हैं? क्यों नरेंद्र मोदी, जयशंकर, अजित डोवाल विदेशी नेताओं से बात कर उनके आगे मदद के लिए गिड़गिड़ाते हुए हैं? जो भारत खुद एस्ट्राजेनेका वैक्सीन बनाने की क्षमता लिए हुए है वह अमेरिका से दया-करूणा के हवाले विनती कर रहा है कि वह अपने एस्ट्राजेनेका स्टॉक से भारत को वैक्सीन दे! इस विनती पर अमेरिका व दुनिया के तमाम सभ्य देश इस नाते विचार करते हुए है कि भारत दुनिया का नंबर एक मानवीय संकट है और इससे दुनिया को भी खतरा है तो वैक्सीन, कच्चा माल सब दो भारत को! क्या मैं गलत लिख रहा हूं? महामारी के वैश्विक संकट में भारत का अकेले वैश्विक मानवीय संकट बनना दुनिया में हिंदुओं का वह कलंक है, जो आने वाले महीनों में, (शायद दो-तीन साल लगातार) लाशों के ढेर, राष्ट्र-व्यवस्था-आर्थिकी के खंडहर में बदलने से विकट बनता जाएगा तो भारत को दुनिया की कृपा पर लगातार जिंदा रहना होगा। सवाल है चीन, रूस, पश्चिमी देश भारत के वैश्विक मानवीय संकट का बोझ कितना व कब तक उठाते रहेंगे? 140 करोड़ लोगों का जीवन बीमारी, बरबादी, बेरोजगारी, मूर्खताओं से कैसे मुक्त हो, यह अब विश्व के लिए, अमेरिका आदि के लिए विकट चुनौती है। दिक्कत है जो दुनिया के पास समाधान नहीं है? अपना तर्क रहा है कि दुनिया तो सत्तर सालों से भारत को बनाने, भारत की मदद की कोशिश करती रही है। भारत खुद ही अपने कुएं में, अपने बोझ में ऐसा मरा, दबा, कुंद, मंद, बंद रहा है जो दुनिया के बीज से अनाज में  आत्मनिर्भर हुआ लेकिन किसानों की आत्महत्या होने लगी। संकट किसानी का हो या देशी उद्योगपतियों, कारोबारियों या पढ़े-लिखों की बेरोजगारी का या आम जीवन में जिंदगी जीने का, सब सिस्टम की उस कुंडली के मारे हैं, जिसे ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय अखबार ‘द ऑस्ट्रेलियन’ ने इन वाक्यों में व्यक्त किया है- ‘मोदी के नेतृत्व में भारत में वायरल कयामत' (Modi leads India into viral apocalypse) .....अहंकार, अति-राष्ट्रवाद और अक्षम ब्यूरोक्रेसी के चलते भारत में महासंकट पैदा हुआ है। भीड़ को चाहने वाला प्रधानमंत्री आनंद कर रहा है, जबकि जनता का दम घुट रहा है!’ मतलब संकट हिंदू का! हिंदू राजा का है! 15 अगस्त 1947 में आजादी के बाद पंडित नेहरू ने भी अपने आपको अवतार माना और ऊंगली में सुदर्शन चक्र धारण कर इस गुमान में राज किया कि वे सर्वज्ञ हैं। वे हुकूमत और देश को लूटने का चरित्र लिए बनी हाकिमशाही की सवारी में समर्थवान हैं और तब से ज्यों-ज्यों गंगा-यमुना प्रदूषित होती गई नेहरू का भला-लोकतंत्रवादी राजा रूप सन् 2014 से बतौर नरेंद्र मोदी देशज (लोग नेहरू को अंग्रेज कहते रहे है) हिंदू अवतार में है। मोदी रूप सुदर्शन चक्र के अपने उस्तरे से भारत की सात सालों में ऐसी चीर-फाड़ कर चुके है कि आज 140 करोड़ लोग दुनिया के लिए वैश्विक मानवीय संकट हैं! हां, विश्व यदि ‘मोदी के नेतृत्व में भारत में वायरल कयामत' का सत्य सत्यापित किए हुए है तो ऐसा होना यथा राजा तथा प्रजा की बदौलत है। नरेंद्र मोदी दुनिया में हिंदुओं के पर्याय हैं और उनसे अमेरिका, ब्रिटेन याकि सभ्य दुनिया के लिए चुनौती बनी है कि कुंभ में स्नान करने वाले लाखों हिंदुओं का आनंद उद्घोष और वैसे ही हिंदुओं की सभाओं की भीड़ देख खुशी, आनंद, का अट्टहास लगाने वाले प्रधानमंत्री से यदि पृथ्वी की इतनी बड़ी आबादी वैश्विक मानवीय संकट बनी है तो ऐसी कौम, ऐसे देश का इलाज भला क्या हो! तभी दुनिया के थिंक टैंक, ज्ञानवान, वैश्विक मीडिया विचार करने लगा है कि नरेंद्र मोदी का क्या हो? वैश्विक मीडिया अब विश्व समुदाय को कह रहा है कि मोदी सरकार बेशर्मी से झूठ बोलती है। सरकार के लगातार झूठ बोलते रहने, अहंकारी, तानाशाही रवैए से महामारी का संकट ‘वायरल के कयामत’ में कन्वर्ट है। और सलाम बाइडेन प्रशासन पर असर रखने वाले ‘वाशिंगटन पोस्ट’ को! यदि अमेरिका से दुनिया है तो नोट रखें कि अमेरिका के समाज-नेतृत्व का दिल-दिमाग ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ और ‘वाशिंगटन पोस्ट’ जैसे अखबार से धड़कता है। इन दोनों समाचार पत्रों ने दो टूक बताया है कि महामारी, मौतों पर मोदी सरकार झूठ बोलती हुई है। उसने अपने झूठ के प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया का ऐसा दुरूपोयग बनाया है कि अमेरिका को, अमेरिकी कंपनियों को इसके खिलाफ खड़ा होना होगा। 27 अप्रैल 2021 को ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के संपादकीय बोर्ड ने बाकायदा अपने संपादकीय से अमेरिका को आह्वान किया है कि वह भारत द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को दबाए जाने के खिलाफ खड़ा हो। उसने लिखा, ... हम वायरस से भारत में हो रही बरबादी की अनदेखी नहीं कर सकते तो भारत सरकार द्वारा सत्य को दबाने की कोशिशों की भी अनदेखी नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से दर्जनों पोस्ट हटवाने के आदेश दिए हैं। इन कंपनियों को ऐसे आदेश नहीं मानने चाहिए। न केवल वे खुद खड़ी हों, बल्कि अमेरिका और उसके साथी देशों को भी खड़ा होना होगा।... भारत ने सौ पोस्ट हटवाने का आदेश इस दावे से किया कि ऐसे पोस्टों से संकट बढ़ सकता है... मगर तटस्थ ऑब्जर्वर के नाते कई पोस्ट जो सत्ता में हैं उनकी आलोचना के हैं। पोस्ट की सामग्री में विपक्ष की आलोचना है, नरेंद्र मोदी से इस्तीफे की मांग है और खौफनाक हालातों का ईमानदार ब्योरा है।... इसलिए भारत सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य के बहाने नागरिकों को बचाने की चिंता में नहीं है, बल्कि अपनी बदनामी से बचने की चिंता में है (but to protect itself from embarrassment)। ... समस्या यह है कि निश्चिततता से कुछ समझा नहीं जा सकता क्योंकि मोदी के शासन में पारदर्शिता बिल्कुल खत्म है, सरकार यह भी नहीं बताएगी कि फलां कानून में उसकी मांग न्यायोचित है।.. वेब पर भारत के कसते शिकंजे से सोशल मीडिया कंपनियां मुश्किल में हैं। लेकिन इन्हें यह विकल्प दो टूक अपनाना चाहिए कि नागरिक अधिकारों को रोकने वाली सरकार की बातें नहीं मानें। राष्ट्रपति बाइडेन और अमेरिका जैसे देशों के सभी नेताओं को वह सब करना चाहिए, जिससे ये कंपनियां सरकार (मोदी) के दबाव का सामना करने की हिम्मत पाएं और बांहें मरोड़ने से सरकार (मोदी) तौबा करे। ..अमेरिका ने सही किया जो विपदा के वक्त भारत को मदद की। लेकिन सूचनाओं की स्वतंत्र आवाजाही को रोकना सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में नहीं, बल्कि उससे उलटे नुकसान हैं। व्हाइट हाउस को अभिव्यक्ति पर रोक के खिलाफ इस कारण से भी बोलना चाहिए क्योंकि भारत तानाशाही की और बढ़ते हुए है, हालांकि वहां तक पहुंचा नहीं है। इंटरनेट को ले कर (मोदी सरकार द्वारा) अपनाया जाने वाला रास्ता उन छोटे देशों को भटका सकता है जो अभी अनिश्चय में हैं कि लोकतंत्र को अपनाएं या न अपनाएं (The White House should speak out against this encroachment on expression for an additional reason: India is teetering toward authoritarianism, but it isn’t there yet. The path it takes regarding the Internet could set the course for countless other, smaller countries that haven’t yet decided where to walk)। इस सबका अर्थ? हिंदू और हिंदू नेतृत्व पर सभ्य विश्व समुदाय की कड़ी नजर। हिंदू श्मशानों की तस्वीरें, वायरल कयामत की भारत खबरें दुनिया में नरेंद्र मोदी सरकार के उस भद्दे-कुरूप शासन का वह कोलाज बना चुकी है जो कुल मिलाकर अहंकार, मूर्खताओं, तानाशाही को व्यक्त करते हुए  है और इनका प्रतिवाद भारत के पास नहीं है। मोदी का राज अब सचंमुच हिंदुओं की लज्जा, शर्म की वैश्विक दास्तां, वैश्विक मानवीय संकट बन चुका है।
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