बेबाक विचार

सब ‘स्वाहा’

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सब ‘स्वाहा’
यों वक्त कभी मरता नहीं इसलिए ‘सब स्वाहा’ नहीं होता। राजे-रजवाड़े थे, दिल्ली में नादिर शाह ने कत्लेआम किया या अंग्रेजों के वक्त महामारी आई और पांच करोड़, दो करोड़ लोगों के मरने जैसे आंकड़े हुए, तब भी जीवन चलता हुआ था। इसलिए आप सोच सकते हैं‘सब स्वाहा’ कहां? मतलब मैं गलत हूं। ठीक है। बावजूद इसके मैं जो देख,बूझ रहा हूं वह सब ‘स्वाहा’ जैसी त्रासदी इसलिए है क्योंकि हम 21वीं सदी में रह रहे हैं। भारत में जो हो रहा है वह दुनिया में कहीं नहीं हो रहा है और जैसे भारत ने वायरस के आगे अपने को रामभरोसे छोड़ दिया है वैसे दुनिया ने इस नजरिए में भारत को रामभरोसे छोड़ डाला है कि वहां तो ऐसा होना ही है। दुनिया ब्राजील, अफ्रीकी देशों की ज्यादा चिंता करती लगती है न कि भारत की। तभी महामारी को परास्त करने के अपने महायज्ञ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बतौर राष्ट्र पुरोहित शब्दों का मंत्रोच्चारण कर रहे हैं और जनता भक्तिभाव, श्रद्धापूर्वक आहुति अर्पित कर यह बोलते-बोलते दम तोड़ रही है की स्वाहा! यहीं है सन् 2020 का भारत। दुनिया के बाकी देशों में भी कोरोना वायरस से मुक्ति का यज्ञ हुआ, या चल रहा है लेकिन वहां उससे वायरस सचमुच बंधा। लेकिन भारत दुनिया का अकेला-बिरला देश है, जहां लॉकडाउन में सबकुछ स्वाहा कर देने के अनवरत यज्ञ के बावजूद वायरस फलता-फूलता जा रहा है। जाहिर है स्पेन, इटली, अमेरिका, ब्रिटेन में लॉकडाउन हुआ, वायरस को हराने का महायज्ञ हुआ तो तैयारियों के साथ व आगा-पीछा सोचकर। वहां लोगों की रोजी-रोटी की चिंता में हर सप्ताह बेरोजगारी भत्ता, रखरखाव भत्ताबांटने का पुख्ता बंदोबस्त था। वायरस के शमन वाले देवता को आह्वान टेस्टिंग के पुख्ता बंदोबस्तों से हुआ। इलाज का बेहतरीन, उम्दा चिकित्सा प्रबंधन हुआ। यज्ञ के समापन की घड़ी आई, आर्थिकी को खोलने के रोडमैप मेंड्यूटी पर जाने, फैक्टरी चालू करने की सोची गई तो उससे पहले टेस्टिंग का वह घना घेराबनवाया गया, जिससे सब घेरे में रहें और वायरस सिर नहीं उठा पाए। जबकि भारत में आप क्या देख रहे हैं? कैसा है यज्ञ! क्या 72 साल की सारी कमाई को स्वाहा करा देने वाला नहीं? हां, रोजगार-स्वाहा! मजदूर-स्वाहा! गरीब-लाचार-बेबसलोग- स्वाहा!(तपती गर्मी में सड़कों परपैदल बिलबिलाते लोगों का अनुभव स्वाहा नहीं तो क्या है!) संवेदना-भावना- स्वाहा! छोटे-छोटे कामधंधे-स्वाहा! सरकारी खजाना-स्वाहा! व्यवस्था-स्वाहा! टेस्टिंग-स्वाहा। मेडिकल इलाज-स्वाहा। मीडिया-स्वाहा। विधायिका-स्वाहा। कार्यपालिका-स्वाहा। न्यायपालिका-स्वाहा। राजनीति-स्वाहा। विपक्ष-स्वाहा! बुद्धि-स्वाहा! वैज्ञानिकता-स्वाहा! सत्य-स्वाहा! एनजीओ-स्वाहा! सिविल सोसायटी-स्वाहा। बड़े उद्योग- स्वाहा। मजदूर अधिकार-स्वाहा। आरटीआई-स्वाहा! संघीय व्यवस्था-स्वाहा! विकास दर-स्वाहा! रेंटिग-स्वाहा! मानवाधिकार-स्वाहा! कानून-व्यवस्था-स्वाहा! रेल व्यवस्था-स्वाहा! और सबसे बड़ी बात 138 करोड़ लोगों की जान- रामजी के भरोसे रामजी को अर्पित! बच गए तो राम का नाम और मर गए तो राम नाम सत्य! तभी इतिहास याद करेगा, इतिहास में लिखा होगा कि सन् 2020 में वायरस के खिलाफ भारत में महायज्ञ करवाने वाले महालोकप्रिय पुरोहित श्रीश्री नरेंद्र मोदी ने आजाद भारत की 73 साल की उपलब्धियों की जिस तरह आहुति कराई तो लोग भले बाद में जिंदा रहे हों लेकिन भारत राजे-रजवाड़ों-अंग्रेजों के वक्त से ज्याद बिलबिलाता, कंगला, भटका और बुद्धिहीन देश हुआ, जिसमें जान और जहान के गरिमापूर्ण अस्तित्व की, आजादी की वे सामान्य ज्वालाएं भी नहीं बची थीं, जिनसे देश बनता है। हां, भारत जल्दी उस दशा में पहुंचने वाला है, जब यज्ञ की पूर्णाहुतिके बिना, वायरस के शमन के संकल्प के पूरे हुए बिना सबकुछ स्वाहा हुआ होगा और वायरस का राक्षस अखिल भारतीय पैमाने में गांव-गांव पसरा हुआ होगा। मैंने परसों सुबह तीन खबरदारों से बात की। एक बहुत बड़े कारोबारी से पूछा– क्या हाल है तो ब्रह्म वाक्य सुनने को मिला-सब स्वाहा! फिर उन्होंने जो बताया तो देश की एकआला कंपनी की दशा और उसके ट्रांसपोर्टरों की दुर्दशा जान मैंने भी सोचा यह तो सचमुच-सब स्वाहा! फिर मैंने दिल्ली की खबर रखने वाले दो आला पत्रकारों से बात की तो दोनों ने अलग-अलग अंदाज में आईआटी गेट की सड़क पर एयरलाइंस की कार में सवार एयरलाइंस के पायलट के साथ मोटरसाइकिल सवार नकाबपोशो की लूट का जो विश्लेषण किया तो लगा आम आदमी की सुरक्षा-व्यवस्था जैसी स्वाहा होनी है वह बहुत भयावह परिणाम लिए है। एक ने चेताया घर के बाहर एमसीडी, फोन कंपनी, पुलिस, बैंक या किसी भी आईडी को ले कर कोई दरवाजा खुलवाना चाहे तो नहीं खोलना! सड़क पर चलते हुए फोन पर बात करने की रिस्क न लें और महिलाएं चेन आदि पहन कर नहीं निकलें। मतलब बेरोजगार-भूखे-बेबस से हमेशा चौकन्ना रहें। फिर मैंने प्रदेश में सरकार का वित्त संभाल रहे एक अफसर से बात की तो उनका कहना था-सब स्वाहा, सेलेरी देने के लाले पड़ रहे हैं। मीडिया ताला लगा ले। सेलेरी नहीं दे पाएंगें तो भला विज्ञापन और पेमेंट कहां से होगा। तभी अपना भी सवाल है कि वायरस से बचने के यज्ञ में आहुति आगे कैसे?
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