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केरल मॉडल पर सवाल

ByNI Editorial,
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केरल मॉडल पर सवाल
कोरोना महामारी से निपटने के लिए केरल की देश- विदेश में तारीफ हुई। लेकिन हाल में संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी से केरल के सामने कोरोना की चुनौती एक बार फिर मुंह खोल कर खड़ी हो गई है। भारत में सबसे पहले कोरोना का मामला केरल में ही सामने आया था। केरल में जनवरी में कोविड-19 के पहले तीन मामले दर्ज किए गए। तब राज्य के स्वास्थ्य मंत्रालय ने पीड़ितों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाया। उन 3,000 से अधिक लोगों को अलग-थलग कर दिया गया, जो रोगियों के संपर्क में आए थे। वे चीन के वुहान शहर से लौटे छात्र थे, जहां महामारी शुरू हुई थी। इसके केरल में कोविड-19 नियंत्रण में आ गया। ऐसे कई दिन आए, जब राज्य में नए मामलों की संख्य़ा शून्य रही। यह भारत के बाकी हिस्सों के विपरीत था, जहां मामले तेजी से बढ़ रहे थे। संक्रमण की कुल संख्या के मामले में भारत अब केवल अमेरिका और ब्राजील से पीछे है। बहरहाल, जब यह साफ हुआ कि केरल वायरस के फैलाव को रोकने में कामयाब रहा है, तो राज्य की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत प्रशंसा हुई। इसका श्रेय राज्य में शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर केंद्रित प्रशासन व्यवस्था को दिया गया। लेकिन अब केरल के सामने अपनी इस क्षमता को दोबारा सिद्ध करने की चुनौती खड़ी है। केरल के अधिकारियों का कहना है कि उनके सूचना अभियानों और रोकथाम के उपायों ने मामले की संख्या को कम रखने में मदद दी है। जानकारों के मुताबिक अभी भी टेस्ट के बाद राज्य में की पॉजिटिव परीक्षण की दर 4.6 फीसदी है, जो भारत के औसत 11.7 प्रतिशत की तुलना में बहुत बेहतर है। ये आंकड़े जरूरी हैं क्योंकि इनसे पता लगता है कि अधिकारी पर्याप्त रूप से परीक्षण कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने टेस्ट के बाद 3-12% की सकारात्मक दर को बेंचमार्क बताया है। केरल में कोरोना से मृत्यु दर लगभग 0.30 प्रतिशत है, जो देश में सबसे कम है। लेकिन अब संक्रमण बढ़ रहा है। अब 10 से 11 दिनों में संक्रमण के मामले दोगुने हो रहे हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 18 से 20 दिन है। गौरतलब है कि भारत में केरल पश्चिम बंगाल और असम सहित उन तीन राज्यों में एक है, जिन्होंने आधिकारिक तौर पर सामुदायिक संक्रमण की घोषणा की है। जाहिर है, चुनौती बढ़ चुकी है। केरल फिर कसौटी पर है।
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