New variant address : भारत की सबसे बड़ी समस्या वायरस के नए वैरिएंट्स हैं, जिनके बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं है। दुनिया भर में कोरोना वायरस के साढ़े चार हजार से ज्यादा वैरिएंट्स मिल चुके हैं। यानी इतनी बार यह वायरस अपना रूप बदल चुका है। इसके अलावा कई वैरिएंट्स तो ऐसे हैं, जिनमें दो या तीन स्ट्रेन मौजूद हैं, जिन्हें डबल या ट्रिपल म्यूटेंट वैरिएंट्स कहा जा रहा है। अब भारत और दुनिया के वैज्ञानिक भी पक्के तौर पर बताने लगे हैं कि भारत में इतनी तेजी से केसेज बढ़ने के पीछे भारत का ही अपना वैरिएंट है। बी.1.617 वैरिएंट बहुत तेजी से लोगों को संक्रमित कर रहा है। भारत की सबसे बड़ी चुनौती इसे और दूसरे वैरिएंट्स को ट्रैक करने की है। इसके लिए तत्काल भारत सरकार को आरएंडडी यानी रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर खर्च बढ़ाना चाहिए। बड़ी रकम इसके लिए आवंटित करना चाहिए और अलग लैब्स की स्थापना करनी चाहिए ताकि वैक्सीन के तमाम वैरिएंट्स का रियल टाइम में अध्ययन किया जा सके।
New variant address : वैज्ञानिकों की इस पर एक राय है कि यह वैरिएंट बहुत संक्रामक है और पिछले महीने यानी अप्रैल में भारत में जो 85 लाख के करीब केसेज आए हैं उनके पीछे यह वैरिएंट है। चूंकि इसे ट्रैक नहीं किया जा सका है इसलिए यह तेजी से फैल रहा है। भारत के साथ समस्या यह है कि यहां वायरस के नए वैरिएंट्स की जीनोम सिक्वेंसिंग उस तेजी से नहीं हो पा रही है, जिस तेजी से होनी चाहिए। दुनिया के ज्यादातर सभ्य देशों में जितने केसेज आ रहे हैं उनमें से कम से कम पांच फीसदी केसेज में मिलने वाले वायरस स्ट्रेन की जीनोम सिक्वेंसिंग हो रही है। भारत एक फीसदी वायरस की जीनोम सिक्वेंसिंग हो रही है।
New variant address : अगर समय रहते इसकी पहचान नहीं होती है तो उसके कई खतरे हो सकते हैं। एक खतरा तो यह है कि केसेज तेजी से बढ़ते रहेंगे। लेकिन उससे ज्यादा बड़ा खतरा यह है कि वैक्सीन बेअसर हो सकती है। अमेरिका की हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के पूर्व प्रोफेसर और अमेरिकी वैज्ञानिक विलियम हैसिल्टन ने कहा है कि भारतीय वैरिएंट की दूसरी और तीसरी पीढ़ी भी फैल रही है, जिसमें से कुछ बहुत खतरनाक हो सकते हैं। उनकी बातों पर ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि हार्वर्ड मेडिकल कॉलेज में उन्होंने ह्यूमन जीनोम पर ही काम किया है। सो, भारत की इस समय नंबर एक चुनौती वायरस के वैरिएंट्स को ट्रैक करने की है।
New variant address : तमाम नए वैरिएंट्स की पहचान करना इसलिए जरूरी है ताकि यह पता लगाया जा सके कि कौन सा वैरिएंट कितना संक्रामक या घातक है और उस पर वैक्सीन असर कर रही है या नहीं। अगर वैक्सीन किसी वैरिएंट पर असरदार नहीं है तो फिर वैक्सीनेशन की पूरी प्रक्रिया बेकार हो सकती है। दुनिया के विकसित देश जीनोम सिक्वेंसिंग के जरिए वायरस के नए वैरिएंट्स का पता लगा रहे हैं और यह अध्ययन कर रहे हैं कि कौन सी वैक्सीन किस वैरिएंट पर कारगर है। अगर कारगर नहीं है तो उसमें सुधार किया जा रहा है। जैसा कि बिल गेट्स ने कहा था कि दुनिया को दूसरी और तीसरी पीढ़ी की वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी। भारत में जहां अभी पहली पीढ़ी की वैक्सीन की पर्याप्त नहीं हो रही है और अभी दो-तीन फीसदी लोगों को ही दोनों डोज लग पाई है वहां दूसरी पीढ़ी की वैक्सीन के बारे में क्या सोचा जा सकता है!
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