बेबाक विचार

ठहरे वक्त में छोटी बातों का जीवन संगीत

Share
ठहरे वक्त में छोटी बातों का जीवन संगीत
पिछले 28 दिनों में हमारे घर में अमेरिकी चैनल‘सीएनएन’ के राग से सुबह शुरू होती है! मैं सुबह उठते ही मुश्किल भरे दिन की शुरुआत के साथ कॉफी तैयार करती हूं, तो टीवी स्क्रीन पर डॉन लेमन डोनाल्ड ट्रंप के झूठ, उनके निकम्मेपनकी पोल खोलते, ढ़ोल बजातेदिखते हैं और मुझे लगता है यह उन लोगों का मामला। हमें क्या?मुझे डॉन लेमन को खाझते देख लगता है बेमतलब है, जबकि मेरे पापा कहते हैं कि आज के वक्त सुबह के साथ यह देखना और जानना जरूरी है कि अमेरिका का दिन कैसे खत्म हो रहा है। अमेरिका में क्या और कैसे कुछ आज हुआ, यह जाने रहना जरूरी है। मुझे लगता है वे इसे थैरेपेटिक याकि रोग और उसके इलाज के नजरिए से देखते होंगे, लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं करना चाहते। स्पष्ट है अमेरिका हमारे घर में हाल फिलहाल गौरतलब है। दुनिया से ही वक्त पर सोच विचार शुरू होता है। क्या करें बदलती दुनिया के ‘नए’ वक्त में जीना भी नए अंदाज में ढलना है। कोई सुबह नौ बजे घर में मौन बनता है। दिनचर्या शुरू होती है, सब अपनी-अपनी जगह पर होते हैं। पापा अपनी कुर्सी-मेज पर, आशीष अपनी पसंदीदा लाउंज कुर्सी पर और मैं सोफे और आशीष की कुर्सी के बीच। अक्सर यह वह समय होता है जब काम वाली आया करती थी और काम शुरू हुआ करता था। लेकिन अब ‘नया’ वक्त है। न कोई काम वाली और न बाहर चहल-पहल। कभी किसी दिन जरूर कानों में कालोनी में ब्रेड बेचने वाले की  ‘टन-टन’ सुनाई पड़ती है जो घर-घर जाकर घंटी बजाता है। पहले मैं इस घंटी को सुन कर परेशान हो जाती थी। सुबह-सुबह की और भी आवाजें और घंटियां कानों को चुभती थीं। कामवालियों की बड़बड़ाहट, सड़क पर झाड़ू लगने का शोर, सब कहीं न कहीं परेशान करते थे। लेकिन इन दिनों ब्रेड वाले की ‘टन-टन’ उम्मीद लिए होती है, उस आवाज से लगता है सब कुछ उतना ’नया’ और असाधारण भी नहीं है! पुराना वक्त लौटेगा। तभी दिमाग में मम्मी का वाक्य टनटनाने लगता है- ‘मेरे पेड़-पौधे सूखने नहीं चाहिए। मैं आलस्य छोड़ उठती हूं पेड़-पौधों को पानी देने के लिए। इसमें करीब घंटा भर लग जाता है। हमारे घर के पेड-पौधो के परिसर में ‘अंगकोर वाट’ भी है, जिसपर कभी ध्यान ही नहीं गया,कभी तारीफ ही नहीं हुई लेकिन अब ठहरे वक्त के नए दौर में ऐसी छोटी-छोटी बातें ही तो हैं जिन्हे देख, सुनअच्छा फील होता है, प्रशंसा निकल आती है। फुरसत का दिल-दिमाग सामान्य बातों में बहुत कुछ खोज लिया करता है। साफ-सफाई, पोंछे, नहाने-धोने, खाना बनाने जैसे कामों में आधा दिन निकल जाता है। और घर की घंटी एक भी बार नहीं बजती। कोई आता ही नहीं। घर के बाहर सफाई करने वाले, प्रेस वाली,काम वालियों और आरडब्लूए के लोगों की आवाजें पूरी तरह खत्म है। कॉलोनी में बाहर से लोगों के आने पर पूरी तरह से पाबंदी है। सो यदि कुछ है, भारत के सन्नाटे में, जीवन के ठहराव और मौन में यदि कुछ सुनने को है तो वह मोरों की आवाज हैगौरैया और मैना का चहकना है। घर के साथ क्योंकि पार्क है और उससे पार खाली पड़ा डिफेंस का जंगल इलाका तो सुबह-शाम और रात में जीवन यदि बेफिक्री, बुलंदी से यदि कोई जीता हुआ लगता है तो वे पक्षीहै, जंगली सियार है। लगता है सेमी-फाइनल पास है।आकाश में शाम को चिड़ियों का कतारबद्ध आना-जाना बहुत दिखलाई देने लगा है। हमारे ‘अंगरकोट’ में ही छोटी-छोटी चिड़ियाओं,गिलहरियों का फुदकना बढ गया है। मेरे पापा की हर शाम शिकायत होती है ‘हमें नया संगीत डाउनलोड करना चाहिए’। वे रोज मुझे याद दिलाते हैं कि “हमें इस वक्त” का उपयोग करना चाहिए। मैं भी उन्हे उसी इशारे से जवाब दे देती हूं। वे भी रोजाना अपने कानों पर हेडफोन लगा कर पुरानी प्लेलिस्ट में कुमार गंर्धव, मल्लिकार्जुन मंसूर, जसराज या नए-पुराने फिल्म गानो को सुनते हुए 45 मिनट घर के गलियारे में उत्साह और जोशके साथ घूमते हैं. लेफ्ट राइट, राइट लेफ्ट!मैं अंदर ताज्जुब करती हू कि इस तरह सीधे जा पीछे मुड घूमते-घूमते सिर नहीं दुखने लगता। उन्हें घूमते देख मेरा तो सिर दुखने लगता है। पहले मुझे आश्चर्य होता था कि बुढ़े, वयस्क लोगों की शाम घर में कैसे गुजरती है। शाम इन लोगों की कैसी होती होगी। अब पता लगा मुझे। लोग केजुअल, बड़े आलस्य में, टालमटूल के साथ शाम बिताते हैं, सोशल मीडिया में टाइम पास किए रहते हैं। या यह भी संभव है कि यही नए दौर की जीवनचर्या बने। एक शाम जब हम सभी सुस्ती में थे, किसी ने घर की घंटी बजाई। सब चौंक गए। पापा बोले-  ‘कौन आया होगा?’ मैंने घड़ी की ओर देखा, शाम के साढ़े छह बजे थे। मैंने दरवाजा खोला। देखा एक लड़का अपनी गेंद लेने आया है। उसकी क्रिकेट गेंद हमारी बालकनी में आ गई थी। मैंने उससे कहा- तुमने हमारी बालकनी में गेंद क्यों फेंकी? उसने सकुचाते हुए कहा- ‘हम अपनी बालकनी में क्रिक्रेट खेल रहे थे।’   मैंने पूछा- पर क्या तुम तीसरी मंजिल पर नहीं रहते। हां, कोविड की वजह से मम्मी हमें खेलने के लिए बाहर नहीं जाने देतीं, इसलिए हम सब अपनी बालकनी में ही क्रिक्रेट खेलते हैं।  वाह! यह है नया वक्त। घरों की बालकनियां क्रिक्रेट का मैदान बनी हैं। घर के भीतर घूमने का ट्रैक बन गया है और सुनाई देने लगा है चिडियाओं का सजीव संगीत! अचानक फोन की घंटी घनघनाई। यह ग्रुप वॉट्सऐप कॉल है। दिन में दूसरी। हम रोजाना तकरीबन घंटाभर इसमें निकाल देते हैं, जिसका एक हिस्सा सिर्फ बार-बार एक ही सवाल जो अलग-अलग बोली और लहजे में होता हैं, पूछने में निकल जाता है-  ‘और भाई क्या चल रहा है’तो जवाब भी कमोबेश एक सा ही - ‘यार निक की पेस्ट्री की क्रैविंग हो रही है’, ‘कोई ठंडी बीयर पिला दो यार’, ‘ अब हम कब मिलेंगे‘, ‘अब कुछ पहले जैसा नहीं होगा‘, और छलक प़डती है उदासीनता, चिंता। सोचने लगते है कब तक ऐसा चलेगा? क्या ऐसा ही चलता रहेगा? वह वक्त क्या लौटेगा जब हाथ, मुंह, आंख. छींक, संक्रमण की चिंता के बगैर दिन गुजरा करता था। बच्चे बाहर खेलते थे, भीड़-शौर और कामवालियों-ड्राईवर-स्टॉफ सबके साथ बिना छूआछूत जीवनचर्या भागती हुई मगर बहुत आसान थी। आने वाले वक्त में कैसा जीवन होने वाला है हमारा? सोचते-सोचते शाम उदास होने लगी। तभी विचार आया खाना क्या खाना है? सभी तो सफाई, बेक्रफास्ट, कपड़े धोने,लंच, चायजैसे घर के रोजाना के काम से थक गए हैं। ऐसे में शाम को खाने का विचार किसी यंत्रणा से कम नहीं है। सोचती हूं, घर में मांएं कैसे ये सब कर लेती हैं। उन्हें मैं सलाम करती हूं। फिर मैं एक सवाल रखती हूं- क्या खाओगे?’ यदि पुराना वक्त होता तो आशीष कहते- डोमिनोज को ऑर्डर कर देते हैं। तब में कहती- क्या बोल रहे हो और आशीष कहता – सत्यानाश हो कोविड का! पापा ने रूटिन दोहराया - सूप और टोस्ट या फिर खिचड़ी खा लेंगे। पर हमने कल ही खिचड़ी खाई थी, तो आज सूप और टोस्ट ले लेंगे। और मैं पास्ता उबालने को रख देती हूं। हड्डियों के लिए यह बहुत ही अच्छा होता है। सब्जियां काट कर जैसे ही मैं सूप तैयार करती हूं,तब तक पापा फिर टीवी पर बीबीसी, सीएनएन, अल जजीरा याकि वैश्विक चैनलों को खंगालना शुरू कर चुके होते है। अंत में नौ बजे का वक्त आया नहीं कि सीएनएन पर अटकते हुए न्यूयार्क के गवर्नर एंड्र्यू कुओमों की प्रेस कांफ्रेस पर पूरी तरह अटक जाना व न्यूयार्क से दुनिया के देशों की तुलना के विचारों में खो जाना। हमारे घर में यह नई चीज है। रात का खाना एंड्र्यू कुओमोंके साथ और सुबह उनके कोविड संक्रमित भाई क्रिस कुओमों की एंकरिंग के प्रोग्राम से शुरू। खाने का काम निपटचुका है, लेकिन मौतों, अनिश्चितता और खौफ के बारे में गर्वनर कुओमों का बोलना जारी है। गुजरे, ठहरे वक्त की नई दुनिया के नए दौर का एक दिन और!
Published

और पढ़ें