बेबाक विचार

चुनौती गहरी और दीर्घकालिक

ByNI Editorial,
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चुनौती गहरी और दीर्घकालिक
भारत अभी कोरोना वायरस से आए विनाश को झेल रहा है। महामारी की इस दूसरी लहर का पीक कब आएगा, इस पर अभी अनुमान लगाए जा रहे हैँ। जानकार इसकी अवधि लगातार आगे बढ़ा रहे हैं। इससे कितने लोग काल कवलित होंगे, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया है। संक्रमितों और मृत लोगों जो सरकारी आंकड़े हैं, उन पर अब किसी को भरोसा नहीं है। विदेशी मीडिया अपनी हर रिपोर्ट में सरकारी आंकड़े बताने के साथ ही यह कहना नहीं भूलता कि असल संख्या इससे बहुत ज्यादा है। तो तात्कालिक चुनौती ऐसी है, जैसा कई पीढ़ियों ने नहीं देखा। लेकिन जब कभी इससे राहत मिलेगी, तब जो लोग बच गए वे चैन की सांस ले सकेंगे, ऐसा सोचना ठीक नहीं है। दो नए अध्ययनों से फिर ये संकेत मिला है कि जो लोग कोविड-19 के संक्रमण से पीड़ित होने के बाद ठीक हो जाते हैं, वे कई लंबी अवधि की समस्याओं से ग्रस्त हो सकते हैं। दोनों अध्ययन अमेरिका में हुए। अपने इन निष्कर्षों के आधार पर अध्ययनकर्ताओं ने अमेरिका सरकार को आगाह किया है कि संक्रमण पर काबू पाने और पूरे टीकाकरण के बावजूद हेल्थ केयर सिस्टम पर दबाव बना रहेगा। उन्हें ऐसे लाखों लोगों के इलाज का बोझ झेलन होगा, जो महामारी के दौर में कोविड-19 संक्रमण से पीड़ित हुए हैँ। कुछ समय पहले ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन से ऐसी चेतावनी दी गई थी। ताजा अध्ययनों के मुताबिक जो लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए, लेकिन जिनके अस्पताल में भर्ती होने की नौबत नहीं आई, उनके अगले छह महीनों में किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित होने की आशंका काफी बढ़ी रहती है। ऐसे लोगों की मृत्यु की आशंका उन लोगों की तुलना में 60 फीसदी ज्यादा रहती है, जो वायरस से संक्रमित नहीं हुए। अध्ययकर्ताओं ने पाया है कि ऐसे लोग अलग-अलग अंगों की बीमारियों की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैँ। इनमें मानसिक रोग भी शामिल हैँ। देखा यह है कि जिन लोगों को हलके लक्षणों के साथ कोरोना संक्रमण हुआ, उनके ठीक होने के एक महीने बाद से लेकर छह महीनों के अंदर कम से कम एक बार डॉक्टर के पास जाने की स्थिति जरूर आई। तो अध्ययनकर्ताओं की ये चेतावनी गौरतलब है कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के मामलों में उनके ठीक होने को लंबे समय तक इलाज मुहैया कराने के लिए की जरूरत पड़ सकती है।
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