इटली में एक ऐसी पहल हुई है, जो दुनिया भर में सरकारों की लोकतांत्रिक जवाबदेही तय करने के लिहाज एक मिसाल बन सकती है। इसके तहत इटली के निवासियों के एक समूह ने कोरोना महामारी को ना संभाल पाने के लिए सरकार की जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया शुरू की है। वे इस नाकामी का हर्जाना सरकार से मांग रहे हैं। इस साल फरवरी में उत्तरी इटली के लोम्बार्डी इलाके में कोरोना बेकाबू हो गया था। अब सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इटली की सरकार पर केस दायर करने का एलान किया है। याचिकाकर्ताओं ने नोइ डेनुनसेर्मो नाम का एक फेसबुक ग्रुप बनाया है। इस ग्रुप का आरोप है कि महामारी की शुरुआत से ही प्रशासन नाकाम रहा। इस नाकामी के लिए सरकार से 10 करोड़ यूरो का हर्जाना मांगा गया है। लोम्बार्डी के बेरगामों शहर में सरकार के खिलाफ 300 से ज्यादा शिकायतें दर्ज कराई जा चुकी हैं। शिकायतों में इटली के प्रधानमंत्री जुसेप्पे कोंते, स्वास्थ्य मंत्री रॉबेर्टो स्पेरांजा और लोम्बार्डी के गर्वनर एटिलियो फोनटाना को निशाने पर लिया गया है। इटली में अब तक कोरोना वायरस से 70,000 से ज्यादा लोग मर चुके हैं।
नोइ डेनुनसेर्मो के मुताबिक लोम्बार्डी के अलसानो हॉस्पिटल को कोरोना वायरस का पहला केस आने के बाद बंद किया था। 23 फरवरी को अस्पताल को फिर से खोल दिया गया। शुरुआत में इस अस्पताल से भी कोरोना काफी फैला। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वायरस के फैलने के बावजूद अलसानो और नेमब्रो जैसे शहरों को काफी देर में बंद किया गया। उस दौरान स्थानीय और प्रांतीय स्तर पर महामारी से निपटने की कोई योजना नहीं बनाई गई। इटली की सरकार ने 10 मार्च को देश भर में लॉकडाउन लागू किया। अभियोजक इस बात की जांच कर रहे हैं कि स्थानीय स्तर पर पहले ही लॉकडाउन क्यों लागू नहीं किया गया। प्रांतीय प्रशासन और केंद्र सरकार एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस कार्रवाई को अपनी जिम्मेदारी ना निभाने वालों के लिए क्रिसमस के तोहफे के रूप में देखा जाना चाहिए। उनके मुताबिक अगर सही तैयारी की गई होती तो देश में मृतकों की संख्या कम होती। इटली में करीब साढ़े चार महीने बाद कोरोना की पहली लहर मध्य जुलाई में कमजोर पड़ी थी। अब दूसरी लहर भी जानलेवा साबित हो रही है।