बेबाक विचार

भीड़ कैसे घरों में बंद हो?

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भीड़ कैसे घरों में बंद हो?
क्या सवा सौ करोड़ लोगों की भीड़ में भारत के लोग कुछ दिन घरों में बंद रह सकते हंै? कैसे घर में बंद रहा जाए? सोचे, आप कितने दिन क्षेत्र सन्यास में रह सकते हंै? मतलब घर में बंद रह सकते हंै?  इटली में छह करोड़ लोग आठ दिन से घरों में बंद हंै। तभी सोचने वाली बात है कि देश, प्रांत, शहर में तालाबंदी हो और अपने-अपने घर में कई दिनों, कई महीनों बंद रहना पड़े तो वक्त कैसे कटेगा?  आधुनिक वक्त में तालाबंदी याकि लॉकडाउन से वायरस से लड़ने की कल्पना क्या पहले कभी हुई? मगर आज पूरी दुनिया इसी तरीके को कोरोना वायरस से लड़ने का कारगर तरीका मानती है। उस नाते दुनिया मध्यकाल याकि 19वीं-20वी सदी के विज्ञान-चिकित्सा काल से पूर्व के वक्त में लौट रही है। पहले महायुद्ध से पहले स्पेनिश फ्लू की महामारी याकि 1915-20 के कालखंड जैसी महामारी के वक्त में दुनिया का आज पहुंचना प्रमाण है कि इंसान कितनी ही प्रगति कर ले प्रकृति की मनमर्जी पर, अनहोनी पर कंट्रोल संभव नहीं है। 10 फरवरी को कोरोना पर मेरे लिखे कॉलम (सोचंे, वायरस से थर्राई दुनिया पर) में मैंने लिखा था-‘प्रकृति और मानव में यह होड़ अंतहीन है कि तुम डाल, डाल तो मैं पात, पात! किसने सोचा था कि प्लेग, चेचक, टीबी जैसी बीमारियों पर इंसान काबू पाएगा तो कैंसर, सार्स, इबोला या कोरोना वायरस जैसे नए रोग आ खड़े होंगे? इंसान और उसका विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र यदि सूक्ष्मतम, बारीक, सर्जरी, नैनो तौर-तरीकों में प्रवीण हुआ है तो प्रकृति उससे भी अधिक सूक्ष्म, अणु माफिक वायरस से कहर बरपा रही है। इंसान जहां प्रकृति पर कहर बरपा रहा है तो प्रकृति भी इंसान पर कहर बरपाने में पीछे नहीं है। सचमुच कोरोना वायरस प्रकृति का कहर है जिसने इंसान की लाचारी, उसकी सीमा को जाहिर किया है। यह लाचारी इंसान को, इंसानों के अलग-अलग देशों में छूआछूत बनवा रही है। कल तक भूमंडलीकरण में देशों की सीमाएं टूट रही थी, दुनिया गांव में बदल गई थी लेकिन कोरोना ने देशो को अपनी सीमाएं बंद करने को मजबूर किया है। और फिर देश विशेष के भीतर भी लोगो को घरों में बंद किया जा रहा है। मतलब जैसे मध्यकाल में महामारी से लड़ा जाता था वहीं तरीका फिर अनिवार्यता है। कोरोना से जो हुआ है, जो हो रहा है उसका पहला धुव्र सत्य है कि झूठ मानवता के लिए अभिशाप है। हां, कोरोना वायरस झूठ की वजह से वैश्विक महामारी बना है। चीन देश का, उसकी व्यवस्था का झूठ और झूठा व्यवहार, उसका एक झूठ मौजूदा वैश्विक तबाही की वजह है। हकीकत है कि चीन ने दिसंबर-जनवरी के महीने-डेढ़ महीने कोरोना वायरस को छुपाया। दुनिया से हकीकत छुपाई। तभी सोचंे, एक झूठ मानवता के लिए कितना भारी पड़ा है?  यदि दिसंबर में वुहान के मछली बाजार में पैदा वायरस के पहले मरीज की खबर के साथ चीन विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचना दे देता, दुनिया को तुरंत एलर्ट कर देता तो वायरस का फैलना तुरंत रोका जा सकता था। मगर चीन ने सत्य दबाया। नतीजतन खुद बरबाद हुआ और दुनिया को भी महामारी में धकेल दिया। चीन, चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग और कम्युनिस्ट सरकार ने अपने चरित्र के माफिक एक-डेढ महीने सत्य को दबाए रखा।  जब वायरस ने लोगों की जान लेना शुरू किया तो 23 जनवरी 2020 को वुहान और हुबई तालाबंद हुए। न्यूयार्क टाइम्स के एक विश्लेषण के अनुसार तब से अब तक चीन में 76 करोड़ लोग किसी न किसी तरह से आवासीय लॉकडाउन याकि तालाबंदी में रहे हंै। और अब वहां वायरस कंट्रोल में बताया जा रहा है। चीन ने जो किया वह मानव सभ्यता, आधुनिक सभ्यता की अनहोनी है। इससे इंसान को बाड़े में बंद करने की चीन की ताकत, क्षमता का पता पड़ता है। संदेह नहीं चीन की तानाशाही व्यवस्था से बना तरीका दुनिया के लिए वायरस को कंट्रोल करने का प्रतिमान है। पूरी दुनिया उसे फोलो करती लग रही है। मतलब वैश्विक पैमाने में वायरस से लड़ने का प्रभावी तरीका चीन का मॉडल है। चीन की तानाशाह व्यवस्था ने जिस सख्ती- तानाशाही अंदाज में लोगों को घरों में कैद किया वैसे ही बाकि देशों में और ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों में भी लोगो को घरों में बंद किया जाएं, यह आम सोच है। पर क्या यह संभव है? यों कई देशों ने इमरजेंसी लगा दी है, लोगों की आवाजाही को बंद करते हुए सामाजिक तौर पर अकेले, अलग, घर में रहने को प्रेरित करने का महाअभियान चला हुआ है। पर जनतांत्रिक देशों के मिजाज की अपनी मजबूरी है तो अविकसित और भीड़ भरे देशो का अलग तरह का संकट है। उस नाते सर्वाधिक विकट इलाका दक्षिण एसिया है। ईरान-अफगानिस्तान से लेकर बांग्लादेश, म्यंमार की पूरी पट्टी, भीड, गरीबी और अराजकता के ऐसे अलग-अलग टापू लिए हुए है जिसमें बाड़ेबंदी की कितनी ही कोशिश हो पर लोग अनुशासन में, घरों में बंद नहीं रहने वाले है। ईरान को दक्षिण एसिया के संदर्भ में प्रासंगिक-प्रतिनिधि उदाहरण मान सकते हंै। वहा कैसे वायरस फैला और शुरूआत में कैसी लापरवाही बरती गई और धर्म-अंधविश्वास के चलते कैसे बात बिगड़ी, इसका ब्यौरा है। संकट बेकाबू होने के बावजूद तेहरान की तालाबंदी का ईरानी हुकूमत ने फैसला नहीं लिया। चीन और इटली में जैसे वायरस से लड़ा जा रहा है उससे ईरान का फर्क कई तरह से है। साधनों की कमी, आर्थिक पाबंदियों व सत्य को छुपाने की प्रवृति से ईरान में वायरस को फैलने का खूब मौका मिला है जबकि शुरू से अब तक ईरान जबरदस्ती हालात काबू में होने की हवाबाजी करता रहा है। हिसाब से वायरस जहां भी पहुंचा है और खासकर अराजक भीड़ वाले इलाके में यदि वह पहुंचा है तो हालात काबू में होना तभी कहा जाना चाहिए जब वायरस के संपर्क में आए सभी लोगों को पकड़ नहीं लिया जाए, उन्हे संक्रमणरहित न बना दिया जाए। यह तब संभव है जब संक्रमणरहित आबादी भी पहले पूरी तरह घरों में बंद हो जाए। पूरे शहर, इलाके में आवाजाही पूरी तरह खत्म हो जाए। वुहान के जिस बाजार में वायरस पैदा हुआ और पहला मरीर शिकार हुआ या अस्पताल ने उस मरीज में वायरस बूझा तभी उस बाजार को, अड़ोस-पड़ोस को लोकडाउन कर दिया जाता तो जड़ में महामारी रूक सकती थी। तब पूरे शहर, पूरे वुहान, पूरे प्रांत याकि चीन के कोई 76 करोड़ लोगों को आवासायी लोकडाउन याकि घरों में बंद रखने की जरूरत नहीं पड़ती। चीन ने एक एपिसेंटर से कंट्रोल किया। उसके बाद अमेरिका हो या भारत, इनमें कई जगह से एकसाथ वायरस फूटा है। आज भारत में तय नहीं कर सकते है कि वायरस का महाराष्ट्र एपीसेंटर है या केरल या दिल्ली? वायरस का कुकुरमुत्ते की तरह कई जगह फूटना अधिक खतरनाक है। तभी आगे की अनिश्चितता का फिलहाल अहम सवाल है कि भीड़ को घरों में बंद करने का काम कैसे हो? स्वंयस्फूर्त हो चीन की तरह सख्त जबरदस्ती के साथ।
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