देश में जन-स्वास्थ्य सुविधाओं पर नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य इनमें सबसे पीछे हैं। इसका असर अब इन राज्यों में दिख रहा है। कोरोना महामारी ने यहां के हाल को बेकाब कर दिया है। उत्तर प्रदेश देश की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है। वहां सुदूर इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली महामारी के इस दौर में सरकार और अधिकारियों के लिए बेहद चुनौती भरा काम बन गई है। उत्तर प्रदेश में अब हर रोज कोरोना संक्रमण के पहले से ज्यादा मामले आने लगे हैं। राजधानी लखऩऊ में अस्पतालों में मरीजों का जो हाल है, उसके बारे में मार्मिक कहानियां मीडिया में रही हैं। बिगड़ती हालत की यह मिसाल है कि राज्य के छह मंत्री कोरोना पॉजिटिव पाए गए। कहा यह जा रहा है कि सचिवालय से लेकर कोई ऐसा विभाग नहीं बचा है, जहां संक्रमण ना पहुंच चुका हो। करीब दो महीने पहले राज्य सरकार ने घोषणा की थी कि अब उसके पास राज्य भर के अलग-अलग अस्पतालों में एक लाख कोविड बेड हैं, जहां कोरोना मरीजों के इलाज की हर संभव सुविधा मौजूद है।
इसके अलावा सरकार ने वेंटिलेटर, डॉक्टरों-नर्सों की संख्या, उनकी सुविधाएं बढ़ाने जैसी तमाम घोषणाएं कीं और उन्हें जमीन पर उतारने की भी कोशिश की। लेकिन खबरों के मुताबिक लखनऊ समेत राज्य भर में जिस तरह से अस्पतालों के बाहर मरीजों की लाइन लगी है। जगह-जगह मरीज इलाज और जांच के लिए भटक रहे हैं। उसे देखते हुए सरकारी दावे पर सवाल खड़े होते हैं, क्योंकि राज्य में अभी कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या महज साठ हजार से कुछ ही ऊपर पहुंची है। जिस रफ्तार से यह बढ़ रही है, वह जारी रही, तो समझा जा सकता है कि कितनी बड़ी मुसीबत में लोग फंस सकते हैं। सरकार न कई स्तरों के अस्पताल बनाने का एलान किया था। मगर उनमें सिर्फ लेवल 3 के अस्पतालों में वेंटिलेटर, आईसीयू और डायलिसिस जैसी व्यवस्थाओं के साथ गंभीर मरीजों के लिए हर तरह की अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। सरकार ने मरीजों की देख-रेख, टेस्टिंग इत्यादि पर निगरानी के लिए नोडल अधिकारी भी नियुक्त किए हैं। जिलों के जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्साधिकारी तो इसके लिए जवाबदेह हैं। लेकिन स्थिति यह है कि राज्य में नोडल अधिकारी समेत कोई अधिकारी ना तो फोन पर उपलब्ध होता है और अगर हो भी गया तो उसके लिए किसी की समस्या के समाधान का रास्ता नहीं होता।
महामारी से परेशान यूपी
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