बेबाक विचार

कोरोना बता रहा नेताओं का चरित्र

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कोरोना बता रहा नेताओं का चरित्र
जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीमार पड़ने की खबर आई तो सच मानिए कि मैं ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि कहीं उन्हें कोरोना ना हो। इसकी वजह यह नहीं थी कि मैं उनका प्रशंसक हूं बल्कि वजह यह थी कि भगवान न करे कि अगर वे कोरोना के मरीज निकले तो दिल्ली के कोरोना मरीजो की दिक्कते ओर बढ़ जाएगी। मुख्यमंत्री होने के बावजूद उनके खून के टेस्ट की रिपोर्ट अगले दिन सार्वजनिक की गई। यदि वे कोरोना पोजिटिव होते तो आम आदमी की टेस्ट की रिर्पाट में आने वाली देरी पर कहते कि जब मुख्यमंत्री होने के बावजूद मेरी रिपोर्ट में इतना समय लग गया तो आम आदमी की रिपोर्ट आने में देरी होना स्वाभाविक है। और अगर वे बीमार पड़ते तो दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के हालात से वाकिफ यह नेता खुद को घर पर ही क्वाइंटीन कर ईलाज करवाता और आम रोगी से यह बात फिर जोर देकर कहता कि राजधानी में बिस्तरो की कमी नहीं है। मगर आम लोगों को अस्पताल में भरती होने की जरूरत नहीं है। और उनकी सेवा में न जाने कितने डाक्टरो की ड्यूटी उनके घर पर ही लगाई जाती। सरकारी अस्पताल में कृत्रिम सांस देने वाले उपकरण जैसे वेंटीलेटर उनके घर पर भेज दिए जाते व आम आदमी की दिक्कते और बढ़ जाती। मुझे दशको पहले की एक घटना याद है। मेरे पिताजी टेलीफोन विभाग के एक आला अधिकारी थे। एक बार वे कार दुर्घटना के कारण घायल हो गए। उन दिनों कूल्हे की हड्डी को जोड़ने के लिए लोहे की छड़ी से बड़ा एक तिकोना ट्रैक्शन लगाते थे। जिसमें हड्डी टूटने वाले पैर से कूल्हे से लेकर पंजे तक बांध दिया जाता था। वे लंबे अरसे तक अस्पताल में रहे व दफ्तर न जाने के कारण उन्होंने अपने प्राइवेट रूम से ही काम करना शुरू कर दिया। उनके लिए अस्पताल में उनकी कंपनी ने ही फोन लगा दिया गया। वे देश भर में कहीं भी मुफ्त में असीमित कॉल कर सकते थे। उन दिनों टेलीफोन व प्राइवेट रूम बहुत बड़ी चीजें होती थी। कुछ दिनों बाद मैंने देखा कि अस्पताल में सीएमओ समेत व तमाम डाक्टर व स्टाफ उनके कमरे में ही जमे रहते थे व उनका हाल पूछने आने के बहाने कानपुर से दूर-दराज स्थित अपने संबंधियों के फोन नंबर लेकर आते और वहां से मुफ्त में फोन करके उनसे लंबी-लंबी बातें करते थे व इससे आम रोगी की अनदेखी होती थी। पिताजी कभी किसी से कुछ नहीं कहते थे क्योंकि फोन सरकारी था। वे किसी को नाराज भी नहीं करना चाहते थे। अब जब कोरोना महामारी के दौरान मैंने नरेंद्र मोदी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक की बातों को सुना तो मुझे लगा कि इस रोग ने हमारे लिए बहुत बड़ा खुलासा यह किया है कि उसकी गरमी ने बिना हमाम के तमाम आला नेताओं को नंगा कर दिया है। काबिल नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन हटाने की जिम्मेदारी राज्यो पर छोड़कर तमाम बुरे हालातों व मौतों के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहरा दिया। कहने को तो वे 2 लाख करोड़ रू की वित्तीय मदद देने की बात कह रहे थे। पर हालात इतने बदत्तर हो गए है कि भूख से पीडि़त लोग आत्महत्या तक करने लगे हैं। लोग मर रहे हैं व भाजपा महाराष्ट्र व राजस्थान में सरकार बनाने के जुगाड़ में लगी है। उन्होंने जो कथित मदद दी उसके बारे में किसी ने लिखा कि कहावत है कि दान ऐसा देना चाहिए कि दाया हाथ दे तो बाएं को भी पता न चले। ठीक उसी तरह से जैसे कि मोदी ने दिया है। उनके द्वारा जनता के आर्थिक उत्थान के लिए दी गई राशि कहां चली गई किसी को कुछ भी पता नहीं है। केंद्र के अस्पताल हो या राज्य के सब जगह लोगों की दुर्दशा हो रही है। पर हमारी केंद्र सरकार सबकुछ नियंत्रण में व ठीक होने के दावे कर रही है। यह नहीं बताती कि भावी हालात से निपटने के लिए सरकारी अस्पताल में क्या इंतजाम किए गए हैं। पहले दिल्ली के बाहर के लोगों का यहां के सरकारी अस्पतालों में ईलाज करने से मना करके व फिर एलजी की बात सिर आंखों पर रखने की बात कहकर केजरीवाल ने भी बहुत बड़ा दांव खेला है। अब वे जुलाई के अंत तक दिल्ली में 5.50 लाख मरीज हाने की बात कह रहे हैं। वे यह नहीं बताते कि यह संख्या किस आधार पर कैसी है। अब जब लोग मरेंगे तो वे कहेंगे कि हमने तो जून में ही केंद्र को चेता दिया था मगर हमें पर्याप्त दूसरे उपकरण नहीं दिए गए। दिल्ली के बाहर के मरीजो को हमारे सिर पर और लाद दिया गया। बताओं हम क्या करते। सच है कि इस बीमारी ने यह साबित कर दिया है कि नेता की खाल तो गैंडे की खाल से भी कहीं ज्यादा मोटी होती है। जिस पर निर्बल या डॉयन का जरा भी असर नहीं होता है।
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