बेबाक विचार

मोदीजी, ईश्वर के लिए अब भी समझिए!

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मोदीजी, ईश्वर के लिए अब भी समझिए!
समझिए मोदीजी, समझिए! हां, गांठ बांधें कि हम महामारी में जी रहे हैं। मैं क्योंकि दुनिया की खबर रखता हूं तो जनवरी-फरवरी में जान लिया था कि कोरोना वायरस महामारी है और वह हवाई जहाजों से फैल गई है तो आगे और फैलने से रूक नहीं सकती। करोड़ों लोग बीमार होंगे और लोग वैसे ही मरेंगे जैसे प्लेग, चेचक, स्पेनिश फ्लू आदि में मरे थे। मैंने महामारी के भारत अनुभव को पढ़ कर जाना था कि सौ साल पहले ही भारत देश की सात प्रतिशत आबादी को महामारी मार गई थी। तब चीन से चला स्पेनिश फ्लू इटली के सिसली से यूरोप में घुसा और वहां बेइंतहा लोग मरे। फिर मुंबई के रास्ते महामारी भारत आई और चौतरफा फैली व तीन साल मौतें ही मौतें। हां, मोदीजी, तीन साल मौतें ही मौतें! महामारी की प्रकृति में यूरोपीय देशों की शुरू हुई मेडिकल लड़ाई को देख कर मैंने मार्च-अप्रैल में लगातार लिखा कि इस वायरस को भारत हल्के में न ले। युद्ध स्तर पर तैयारी करे और सौ जूते और सौ प्याज खाने की गलती कतई न करे। मतलब कभी लॉक़डाउन तो कभी अनलॉक! मगर मोदीजी, आप और आपके पीएमओ, आपके सलाहकारों ने महामारी को ऐसे लिया मानो कोरोना जुमलेबाजी से भाग जाएगा। आपने जादू-मंतर किया और वायरस छू मंतर। आपने समझा नहीं, न हिंदुओं ने समझा कि 1918और सन 2020 का फर्क क्या है? देश की बुद्धि ने समझा नहीं कि 1918में इंसान को मालूम नहीं था वह तरीका, जिससे समय रहते जाना जाए कि वायरस किस इंसान में घुसा है। कौन संक्रमित है और कौन नहीं? 1915में टेस्ट करने की मेडिकल व्यवस्था नहीं थी। लेकिन 21वीं सदी में आज है तो ज्योंहि महामारी शुरू हुई तो चीन, दक्षिण कोरिया, ताईवान, सिंगापुर, इटली, स्पेन, जर्मनी व लगभग पूरे यूरोप, अमेरिका सबने मोर्चा कसा कि नागरिकों आओ, टेस्ट कराओ, वायरस को पकड़ने दो, हम टेस्ट से उसे फैलने नहीं देंगे। लेकिन मोदीजी आपने जनता को टेस्ट कराने का आह्वान नहीं किया, बल्कि ताली-थाली बजाने का आह्वान किया! भला क्यों? यह किसकी बुद्धि थी, किसका ज्ञान था जो जर्मनी जैसे देशों की तरह लेटेस्ट, एक साथ हजारों सैंपल के नतीजे निकाल सकने में समर्थ लैब मशीनरी विदेश से आयात नहीं की, उसके बजाय उलटे जुगाड़ की तरह लैब्स बनाईं, आधे-अधूरे ट्रेंड लैब तकनीशियनों के बूते ऐसी टेस्टिंग करवाई, जिसमें आधे-अधूरे नतीजे, कभी मिस, फेल, कभी पॉजिटिव, कभी निगेटिव नतीजे आए। और पहले लॉकडाउन में ही कुछ हजार कचरा टेस्टों पर ही घोषणा होने लगी कि हमने वायरस को हरा दिया, उसे भगा दिया। कर्व फ्लैट हो गया और मई तक तो वायरस भारत से छू मंतर गायब! मोदीजी सत्य पहले दिन से दो टूक था, है और रहेगा कि वायरस करोड़ों लोगों को बीमार बना बेइंतहा लोगों को मारेगा यदि बिना टेस्टिंग, अधकचरे जुगाड़ों से भगवान भरोसे रहे। पूछ सकते हैं तब क्या करें? तो पहले दिन से जवाब भी वहीं था, है और रहेगा और जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले दिन से चिल्ला चिल्ला कर बता रहा है कि टेस्ट करो, टेस्ट करो, टेस्ट करो! सवाल कि टेस्ट क्यों? इसलिए कि पिछले सौ सालों में इंसान ने टेस्ट का वह मेडिकल हथियार, तरीका खोजा-बनाया है, जिससे जाना जाता है कि कौन सा शरीर बीमारी से ग्रस्त है और कौन सा नहीं? टेस्ट करके वायरस संक्रमित को अलग करके उसको बचाने की कोशिश होती है तो उसके शरीर से महामारी को फैलने से भी रोका जाता है। यहीं वायरस की वैक्सीन और उसके इलाज बनने से पहले कामहामारी को रोकने का तरीका है। वायरस नहीं फैलेगा यदि टेस्ट, ट्रेसिंग, रिस्पांस का एक व्यवस्थागत-मेडिकल तानाबाना बन जाए। तभी मार्च में ही भारत में, खबर मिलते ही पहले दिन से टेस्टिंग का इंफ्रास्ट्रक्चर बनना शुरू होना था। वैसे ही जैसे जर्मनी, न्यूजीलैंड से लेकर लगभग पूरे यूरोप ने बनाया और उससे कंट्रोल बना अब ये सब देश मजे से सबकुछ ओपन कर रहे हैं। कह सकते हैं हम अमीर नहीं हैं। उतनी टेस्टिंग नहीं करा सकते, जितनी यूरोप, अमेरिका ने की है। हमारी आबादी विशाल है तो टेस्टिंग का उस अनुपात का विशाल इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं बन सकता है। यह महाफालतू और बकवास बात है। अमेरिका-यूरोपीय देशों ने टेस्टिंग की बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ठेका दिया, धड़ाधड़ समय रहते ऑर्डर दिए तो टेस्ट-मेडिकल कंपनियां शहरों में खुद इंफ्रास्ट्रक्चर बना कर करोड़ों टेस्ट कर चुकी हैं। लेकिन भारत की सड़ी नौकरशाही ने, सड़ी मेडिकल एजेंसी आईसीएमआर पर लैब-टेस्ट-ठेके का जिम्मा डाला गया। नतीजतन तीन महीने बाद दुनिया के आगे भारत टेस्टिंग के बॉटम आंकड़े को लेकर नंगा खड़ा है। दुनिया जान गई है कि भारत वायरस का किला बनेगा। आने वाले महीनों में भारत से कोरोना वायरस का निर्यात हुआ करेगा। दुनिया के सभ्य, समझदार देश भारत से आवाजाही रोके रखेंगे। जाहिर है भारत बिना टेस्टिंग के 1918के काल में रह रहा है। अस्पतालों के किस्सों, मरीजों के बिल और अस्पताल से श्मशान घाट- कब्रिस्तान तक भारत में न केवल लूट बन गई है, बल्कि मानवता को, इंसानियत को लजा देने वाली असंवेदनशीलता का जलजला आया हुआ है। संक्रमण इतना फैल चुका है कि जिलों से छह-आठ महीनों बाद मरीज और मौतों के पीक जब बनेंगे तो तब कितने ही टेस्ट बढ़ा लें वह ऊंट के मुंह में जीरे वाली टेस्टिंग होगी। तब नहीं सोचना कि गंगा के किनारे लाशों का वैसा ढेर नहीं लगेगा, जैसा सूर्यकांत निराला ने 1918-19की आंखों देखी को आत्मकथा में लिखा था। मोदीजी, आप डरिए मत। आपको जो इतिहास अपना बनाना था वह लिख गया है। बावजूद इसके अभी भी वक्त है महामारी को भयावह महामारी बनने से रोकने का। अब अपने जीवन का, सड़ी-गली व्यवस्था और सरकार का एक ही मकसद बना लीजिए कि टेस्ट करके सबको नियंत्रित लॉकडाउन में घरों में बंद करना है ताकि लाशों का ढेर कम से कम बने। जान लीजिए आप और आपकी मेडिकल टीम भले कहें कि हमारे यहां तो संक्रमित में से डेढ-दो प्रतिशत ही मर रहे हैं, कितना ही झूठ बोलें लेकिन यदि आधी आबादी संक्रमित हो गई और उसमें दो प्रतिशत मरीज भी मरे तो क्या आंकड़ा बनेगा! हां, मैं डराने वाली बात लिख रहा हूं। मैंने मार्च के पहले सप्ताह में भी बेबाक लिख कर वायरस का भारी खतरा बताया था। लॉकडाउन शुरू होने से पहले ही स्टेडियम, खाली मैदान में अस्पताल, क्वरैंटाइन और पूरी मेडिकल व्यवस्था का टेकओवर करते हुए सेना से सुपरवाइज करवा कर इलाज व मेडिकल लड़ाई के प्रबंध बनाने की विनती की थी। लेकिन हम जैसे कलमघसीटों की चेतावनी को आपकी बुद्धि ने हिकारत से खारिज किया। जो हो लिखना अपना क्योंकि धर्म है तो फिर लिख रहा हूं कि मोदीजी टेस्ट, टेस्ट कराइए, भले उससे करोड़ों संक्रमित निकलें, लेकिन तब सब उससे घर में, भूखे रह कर भी अपने आपको सुरक्षित बनाएंगें। भय, खौफ के बजाय लोग तब हकीकत में अपने गांव, अपने घर में कुनैन की गोलियां खा कर अपने को बचाने की कोशिश करेंगे। लेकिन टेस्ट के बिना तो 1918जैसी भयावहता में जीना है। क्या यहीं चाहेंगे?
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