पहली नजर में भारत सरकार से आई ये जानकारी राहत देने वाली लगती है कि भारत में लॉकडाउन होने के बाद कोरोना वायरस से पीड़ित नए मरीजों की संख्या दोगुनी होने की रफ्तार काफी गिर गई है। सरकार ने बताया है कि पहले ये दर औसतन हर तीन दिन में दोगुना होने की थी, जो अब 6.2 दिन हो गई है। हालांकि ताजा दर भी ज्यादातर एशियाई देशों से अधिक है, फिर भी इस पर ये सोच कर संतोष किया जा सकता कि अगर संक्रमण का प्रसार धीमा हो रहा है, तो हमारी कोरोना से लड़ाई सही दिशा में आगे बढ़ रही है। क्या इस पर पूरा भरोसा किया जा सकता है? हालांकि भारत में कोरोना वायरस के मामलों की जांच पर्याप्त संख्या में नहीं हो रही है, इस आलोचना को आईसीएमआर और केंद्र सरकार ने सिरे से नकार दिया है। सरकार ने कहा कि जो आंकड़ा सरकार की टेस्टिंग रणनीति की सफलता बयान करता है, वो यह है कि भारत में 24 टेस्ट में से एक कोविड-19 पॉजिटिव निकल कर आ रहा है। इसके मुकाबले जापान में 11.7 टेस्ट में से एक पॉजिटिव है, इटली में 6.7 में से एक, अमेरिका में 5.3 में से एक और ब्रिटेन में 3.4 में से एक टेस्ट पॉजिटिव हो रहा है।
आईसीएमआर ने इससे भी इंकार किया कि भारत की टेस्टिंग क्षमता कम है। कहा कि रोजाना 42,418 सैंपल टेस्ट किए जा सकते हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि भारत में कोविड-19 के मरीजों में से मर जाने वालों की दर 3.3 प्रतिशत है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बताई गई वैश्विक दर 3.4 प्रतिशत के लगभग बराबर ही है। सरकार के अनुसार भारत में कोविड-19 के मरीजों के ठीक होने की दर 12.02 प्रतिशत है। जाहिर है, यहां कोशिश सफलता की एक कहानी बताने की है। मगर अनेक विशेषज्ञ इस नजरिए से सहमत नहीं हैं। उनकी राय है कि सरकार को ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए, जिससे देश में सतर्कता घटे। खासकर उस समय जब ये दावा संदिग्ध है कि भारत में पर्याप्त टेस्ट हो रहे हैं और यह भी कि बताए गए आंकड़े पूरी तरह सही हैं। गौरतलब है कि चीन ने वुहान शहर में मरे लोगों की संख्या अब जाकर डेढ़ गुनी कर दी है, क्योंकि उसके मुताबिक बहुत सारी सूचनाएं बाद में आईं। भारत या अन्य देशों में ऐसा नहीं होगा, यह मानना एक भूल साबित हो सकती है।
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