बेबाक विचार

कारोबारी घरानों को बैंक खोलने देना डुबना!

Share
कारोबारी घरानों को बैंक खोलने देना डुबना!
बचपन में घर से लेकर स्कूल तक हमें मां-बाप और अध्यापक यह सिखाते आए हैं कि हमें गलतियां करने से बचना चाहिए और अगर कभी कोई कदम गलत हो जाए तो भविष्य में वैसा ही कदम दोबारा उठाने से बचना चाहिए। मगर अब ऐसा लगता है कि हमें यह शिक्षाएं भले ही याद हो मगर हमारे नेता, शासक इन्हें पूरी तरह से भूल गए हैं। उन्होंने अपनी गलतियों से सबक लेना तो दूर रहा वे अपनी गलतियों को इसके विपरीत कहीं ज्यादा बड़े पैमाने पर दोहराने की कोशिश कर रहे हैं। नवीनतम मामला देश के व्यापारिक घरानो को बैंक के क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देने का है। व्यापारिक घरानों ने देश के बैंको को कैसे हजारों करोड़ रुपए का चुना लगाया, यह तथ्य देश के आम आदमी के दिमाग में एकदम ताजा है। ऐसे किस्से कम नहीं कि व्यापारिक घरानो ने अपनी स्थिति का लाभ उठाते हुए पैसा बंटोरा व रातोंरात गायब हो गए। अगर कोई आम इंसान या नेता सरकार की इस सोच पर आश्चर्य जताता तो शायद उसे गंभीरता से नहीं लिया जाए। मगर हाल में देश के सबसे बड़े बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आतंरिक कार्यकारी दल इंटरनल वर्किंग ग्रुप ने बैंक के स्वामित्व को लेकर जो रिपार्ट जारी की है वह बेहद चौकाने व सतर्क करने वाली है। यह परंपरा रही है कि भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर अपने तमाम कार्यकारी दलों के जरिए विभिन्न वित्तीय मामलों में अपने दिशा-निर्देश जारी करता रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में सरकार से आगाह किया है कि उसे वाणिज्यिक समूहो को बैंकिंग के क्षेत्र में आने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। रिपोर्ट कहती है कि हाल में वाणिज्यिक घरानों ने जो कुछ किया है व बैंको को चुना लगाया है। इस हकीकत से क्या हमने कोई सबक लेते हुए भविष्य में उन्हें इस क्षेत्र में न आने देने का कोई सबक लिया है? हाल की घटनाओं पर नजर डाले तो पता चलेगा कि जहां एक ओर दुनिया के विभिन्न देशों के बैंक अक्सर फेल हो जाते हैं वहीं हमारे यहां ऐसा नहीं होने दिया जाता रहा है। इनमें यस बैंक व हाल में लक्ष्मी विलास बैंक को वित्तीय संकट से उभारने के मामले इसके उदाहरण है। भारत सरकार ने अंततः दूसरे अन्य बड़े बैंको के सहारे से इन बैंको को उभार लिया। जहां एक और भारतीय स्टेट बैंक ने यस बैंक में भारी संख्या में उसके शेयर खरीद कर निवेश कर उसे बचाया तो वहीं सरकार ने लक्ष्मी विलास बैंक के डीबीएस बैंक में विलय की शुरुआत की है। बैंक के कर्मचारी संघ व ग्राहक यह पूछ रहे हैं कि सरकार ने किस आधार पर ऐसा करने का फैसला किया है? उनका कहना है कि ऐसा करने के लिए सरकार लक्ष्मी विलास बैंक के शेयरो की कीमत व संख्या शून्य कर देना चाहती है। इससे बैंक के शेयर धारको को बहुत नुकसान होगा। जिस बैंक की 500 शाखाएं देशभर में फैंली है उसे किसी और को सौंपने के पहले राष्ट्रीय स्तर पर निविदाएं आमंत्रित की जानी चाहिए थी जोकि इस मामले में नहीं हो रही है। वहीं डीबीएस एक विदेशी बैंक है जिसने 2019 में 21 नई शाखाएं खोली है व उसकी भारत में कुल 33 शाखाएं हैं। जबकि सरकार उसे 500 शाखाओं वाला लक्ष्मी विलास बैंक इतनी आसानी से सौंपने जा रही है। अन्य विदेशी बैंको की तुलना में वह काफी छोटा है। रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है जो वह यह सुनिश्चित करे कि बैंक के ग्राहको के हित सुरक्षित रहे व उनका पैसा सुरक्षित रहे। जबकि आम आदमी की तुलना में व्यापारिक व औद्योगिक घरानो को पैसे की ज्यादा जरूरत पड़ती है व उन्हें पैसा मिलने में कोई दिक्कत ही नहीं होती है। किंग फिशर के मालिक विजय मालया ने कैसे अपनी कंपनी के नाम की ही कीमत वसूलते हुए करोड़ो रुपए का कर्ज हासिल किया, उससे सब परिचित है। हजारों करोड़ का यह घोटाला कैसे हुआ व उसके सरकारी बैंकों के कर्मचारियेां ने कैसे अंजाम दिया इसके खुलासे अब सामने आ रहे हैं। चंद अफसरों ने अपनी हैसियत का लाभ उठाते हुए फर्जी दस्तावेजो के आधार पर उन्हें मोटी रकम कर्ज में दी व सरकार आंखें मूंदी रही। कार्यकारी दल को सबसे बड़ी आशंका इस बात की है जब ये घराने इतनी आसानी से सारे नियम कानूनो की धज्जियां उड़ाते हुए कर लेते रहे तो जब वे खुद बैंको के मालिक बन जाएंगे तो वे कैसे जनता के पैसे को आसानी से हजम कर उसका भविष्य खतरे में डालेंगे नहीं देंगे? संसार भर के वित्तीय विशेषज्ञो का मानना है कि हालात इतने खराब हो चुके है कि बढि़या से बढि़या प्रणाली के जरिए भी किसी भी वित्तीय व्यवस्था में खराब उधार देने वाली घटनाओं को रोक पाना असंभव है। वैसे भी राजनीतिक दबाव के चलते अक्सर गड़बड़ी हो जाती है। अमेरिका का मामला ही ले लें जहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुद अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा कि उन्होंने वहां के कर ढांचे व व्यवस्था की खामियों का लाभ उठाते हुए महज 750 डालर का टैक्स ही चुकाया है। ऐसे में भारत सरीखे देश में आम व्यापारी व उद्योगपति सरकार को कैसे चुना लगाते हैं इसकी आसानी से कल्पना की जा सकती है। मजेदार बात तो यह है कि आरबीआई के ऐसे ही एक समूह ने 2016 में ठीक इसी तरह की आशंका जताई थी अगर व्यापारिक घरानों को कर्ज मिलने में दिक्कते न आए। अंतः सरकार ने इसमें काफी ढील दी और उनके द्वारा जनता के पैसा का मनचाहा इस्तेमाल करना जारी रही। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर सरकार ने इन घरानो को बैंकिंग के क्षेत्र में आने की छूट दी तो देश की बड़ी आर्थिक व राजनीतिक ताकत कुछ घरानो के हाथों में सीमित ही नहीं कैद होकर रह जाएगी। इस क्षेत्र में वहीं घराने आएंगे जिनके पास न केवल काफी पूंजी है बल्कि जो लोग राजनीतिक रूप से भी काफी मजबूत हैं। इससे हमारे देश की राजनीति के राजनीतिक घरानों के पैसे का इस्तेमाल व हस्तक्षेप काफी बढ़ जाएंगा। अभी हमारे बैंक कम कर्ज दे रहे हैं तब भी उसका पैसा इतने बड़े स्तर पर डूबने की इतनी सारी घटनाएं हो रही है। विशेषज्ञो का मानना है कि इन घरानों को बैंक खोलने की अनुमति देना तो मानों किसी शराबी को शराब के ठेके की जिम्मेदारी सौंपना होगा।
Published

और पढ़ें