वैसे यह सच है कि चीन की कुछ नीतियां ही युवान के अंतरराष्ट्रीयकरण की राह में बाधक हैं। मसलन, पूंजी नियंत्रण एक ऐसी नीति है, जिसके रहते युवान के लिए डॉलर की जगह ले पाना मुश्किल बना रहेगा।
दुनिया की वित्तीय व्यवस्था में आमूल परिवर्तन के संकेत मिल रहे हैं। अब यह पश्चिमी विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं कि जिस तरह से चीन की मुद्रा युवान में अंतरराष्ट्रीय भुगतानों की संख्या बढ़ रही है, उससे अमेरिकी डॉलर के समानांतर एक नई भुगतान व्यवस्था की नींव तैयार हो रही है। दरअसल, पश्चिमी मीडिया में इस बदलाव की चर्चा भरी पड़ी है। इस परिघटना को डि-डॉलराइजेशन के नाम से जाना जा रहा है। दरअसल, आंकड़ों के मुताबिक मार्च में पहली बार ऐसा हुआ कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले युवान में ज्यादा भुगतान किया गया। हालांकि अमेरिकी डॉलर अब भी दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक भुगतानों की प्रमुख मुद्रा है, लेकिन पश्चिम एशिया से लेकर रूस और लैटिन अमेरिका तक ऐसे देशों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार में भुगतान युवान में कर रहे हैं। पश्चिमी विश्लेषकों के मुताबिक ऐसी संभावना फिलहाल कम ही दिखती है कि पूरी दुनिया में आपसी भुगतान युवान में होने लगे। लेकिन यह सच है कि एक नया व्यापारिक ढांचा खड़ा हो रहा है।
खास तौर पर रूस को पश्चिमी भुगतान व्यवस्था से बाहर किए जाने के कदम ने इस व्यवस्था को मजबूती दी है, क्योंकि रूस के साथ व्यापार करने वाले देश अब वैकल्पिक व्यवस्थाएं तलाश रहे हैं। विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि चीन, रूस और ब्राजील दुनिया के सबसे बड़े कमोडिटी निर्यातक और आयातक हैं। वे अब अंतरराष्ट्रीय लेन-देने के लिए युवान का इस्तेमाल करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। उनका सहयोग अन्य देशों को भी युवान की ओर आकर्षित कर सकता है। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में युवान का हिस्सा मात्र 2.2 प्रतिशत है। लेकिन उसका हिस्सा धीरे-धीरे बढ़ रहा है। अभी तक दुनिया के व्यापारिक लेन-देन पर अमेरिकी डॉलर, यूरो, स्टर्लिंग और येन का कब्जा रहा है। यह पहला मौका है, जब इसमें एक महत्त्वपूर्ण बदलाव आता दिख रहा है। वैसे यह सच है कि चीन की कुछ नीतियां ही युवान के अंतरराष्ट्रीयकरण की राह में बाधक हैं। मसलन, पूंजी नियंत्रण एक ऐसी नीति है, जिसके रहते युवान के लिए डॉलर की जगह ले पाना मुश्किल बना रहेगा।