अफसोस सिर्फ यह है कि यह दुर्दशा फिलहाल राष्ट्रीय चर्चा के एजेंडे पर कहीं नजर नहीं आती। इसलिए यह खबर भी ‘बड़ी खबरों’ की बड़ी सुर्खियों के अंदर कहीं दब गई कि 2019 से 2021 के बीच 1.12 लाख दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की।
भारत में ऐसी दुखद खबरें अब असामान्य नहीं हैं। जब जमीन पर आर्थिक हालत बिगड़ती जाएगी, तो लोगों में हताशा गहराना आम बात हो जाए, तो उस पर किसी हैरत की जरूरत नहीं है। अफसोस सिर्फ यह है कि यह दुर्दशा फिलहाल राष्ट्रीय चर्चा के एजेंडे पर कहीं नजर नहीं आती। इसलिए यह खबर भी ‘बड़ी खबरों’ की बड़ी सुर्खियों के अंदर कहीं दब गई। गौरतलब है कि भारत सरकार ने संसद में बताया कि साल 2019 से 2021 के बीच 1।12 लाख दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। कोरोना के समय लॉकडाउन के दौरान 2020 में बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर अपने घरों को लौट गए थे। तब से ऐसी आत्महत्याओं का सिलसिला बना। लेकिन सरकार ने जो आकंड़े दिए हैं, उनमें साल 2019 भी शामिल है, जब महामारी नहीं थी। इससे जाहिर है कि ऐसी घटनाओं के लिए सिर्फ महामारी को जिम्मेदार नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2019 में 32,563, 2020 में 37,666 और 2021 में 42,004 दिहाड़ी मजदूरों की मौत आत्महत्या के कारण हुई। अब एक दूसरे आंकड़े पर गौर कीजिए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के हवाले से सदन में बताया गया कि इस अवधि के दौरान 66,912 गृहिणी, 53,661 स्वरोजगार करने वाले व्यक्ति, 43,420 वेतनभोगी व्यक्ति और 43,385 बेरोजगार व्यक्तियों ने भी आत्महत्या की।
अगर सिर्फ महामारी के दिनों की बात करें, तो लॉकडाउन के कारण सार्वजनिक परिवहन के अधिकांश साधन बंद हो जा गए थे। उस हाल में हजारों प्रवासी श्रमिकों के पास निजी वाहनों पर सवारी करने का विकल्प बचा था। उन्होंने किसी तरह से अपने गांव और कस्बों तक पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर का लंबा सफर तय किया। सफर के दौरान कई प्रवासी श्रमिकों की सड़क हादसों के दौरान मौत भी हुई थी। सरकार ने कहा था कि 8,700 से अधिक लोगट्रेन सेवाओं के ठप होने के बावजूद 2020 में रेलवे पटरियों पर मरे। उनमें से अधिकांश प्रवासी मजदूर थे। इसके पहले कारोबारियों और छात्रों के आत्महत्या करने की घटनाओं में वृद्धि की रिपोर्टें आ चुकी हैँ। लेकिन ना तो इसके कारणों पर गंभीरता से चर्चा हुई है, और ना ही समाधान पर।