बेबाक विचार

रंगभेद का रोग गहरा

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रंगभेद का रोग गहरा
अमेरिका के रंगभेद की कहानी बहुत पुरानी है। वहां पर यह तब से चली आ रही है जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका अस्तित्व में भी नहीं आया था व उस पर ब्रिटेन का कब्जा था व उपनिवेशवाद के उन दिनों में ये ब्रिटिश अमेरिका के नाम से जाना जाता था व ब्रिटिश सरकार के 13 उपनिवेशो में गुलामी के रुप में कानूनी मान्यता मिली हुई थी। अमेरिका में गुलामी की प्रथा 1865 तक लागू रही। तब तक गुलामों को अन्य वस्तुओं की तरह खरीद- बेचा जा सकता था या उन्हें उपहार में किसी को दिया जा सकता था। पहले विभिन्न देश कुछ समुद्री लुटेरो को अपना प्रतिनिधि बना देते थे जो कि समुद्री मार्ग से जाने वाले उनके जहाजों की रक्षा करते व अन्य देशों के जहाजों को लूट कर उस लूट में खुद को शरण देने वाले राष्ट्र को हिस्सा देकर अपने पैसे को जायज बनाकर उस देश में उसका निवेश कर वहां अपना परिवार पालते व धंधा करते। सबसे पहलेगुलाम ब्रिटिश उपनिवेश पांइट का था जो कि जेम्स टाउन के निकट वर्जीनिया में था। इन अफ्रीकी गुलामों को एक ब्रिटिश जहाज ने पुर्तगाली जहाज पर हमला करके लूटा था। आमतौर पर गुलामों को अफ्रीका से पकड़कर लाया जाता था व उन्हें ईसाई धर्म में बदला जाता व उनका बपिस्ता किया जाता था क्योंकि अंग्रेज खुद भी ईसाई ही थे । जिन गुलामों का सौदा हो जाता था उन्हें नौकरों की तरह रखा जाता था।गुलामों के साथ बहुत अत्याचार किया जाता था। उनके मालिक उनका शोषण करते थे व उनके बच्चे तक संपत्ति के रुप में इस्तेमाल किए जाते थे। उन गुलामों के गले में कुत्तों की तरह पट्टे डाले जाते थे जिन पर उनका नंबर व नाम लिखे होते थे। उनका मालिक उनसे मनचाहा बरताव कर सकता था। हालात इतने खराब थे कि 1672 में किंग चार्ल्स द्वितीय ने रायल अफ्रीकन कंपनी को गुलाम व अन्य समान के खरीद फरोख्त करने का एकाधिकर दे दिया जो कि 1698 तक जारी रहा। वे किस संख्या में काम करते है इसका अनुमान तो इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 1710 में वर्जीनिया के अफ्रीकी लोगों की संख्या 23100 हो गई थी जो कि वहां की कुल जनसंख्या का 42 फीसदी थी। 18 वीं सदी तक स्पेन व पुर्तगाल गुलामों के धंधे के सबसे बड़े सौदागर हो गए। किसी आदमी की हैसियत उसके गुलाामों की संख्या से जानी जाती थी। शुरु में गुलामों को चावल, कपास व तंबाकू की खेती के काम के लिए लाया जाता था।मगर 19 वीं सदी में खूनी सिविल वार में यूनियन की जीत के बाद अमेरिका में गुलामी के दौर को खत्म करने का सिलसिला शुरु हुआ। उस समय 40 लाख गुलामों को मुक्ति दी गई थी। जब अब्राहम लिंकन अमेरिकी राष्ट्रपति बने तो 1862 में सिविल वार समाप्त होने के बाद सरकार ने 13 वां संशोधन पारित किया था। तब अधिकांश रुप से गुलामी प्रथा को समाप्त कर दिया। तब 18.6 लाख काले सैनिक यूनियन सेना में शामिल हो गए व युद्ध के दौरान 38000 सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। हालांकि व्यवहारिक रुप से उनके खिलाफ उत्पीड़न की घटनाएं जारी रही व काम धंधे में उनकी अनदेखी की जाती रही। कुछ अमरीकी गोरों ने अफ्रीकियों से शादी की व उनसे पैदा हुए बच्चों को अमरीकी अफ्रीकन कहा जाने लगा। मगर हाल के घटना ने बता दिया कि आज भी अमेरिका ही नहीं बाकी तथाकथित सभ्य दुनिया में क्या स्थिति है।हाल ही में अमेरिका में काले गोरे (अफ्रीकन अमेरिकन) जार्ज फ्लाइड को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद घुटने से गला दबाकर मार दिए जाने के बाद इस देश व योरोप के तमाम विकसित देशों में जो प्रदर्शन हो रहे हैं उन्होंने साबित कर दिया है कि विश्व के तमाम सभ्य व विकसित देशों में आज भी गोरों द्वारा कालों के साथ किया जाने वाला भेदभाव जारी है। इस हिंसक घटना ने मार्टिन लूथर किंग की याद दिला दी जो कि गोरों द्वारा कालों की अनदेखी किए जाने के कारण उन्हें उनके अधिकार के लिए अपने आंदोलनों के कारण विश्व विख्यात हुए। उन्होंने एक बार कहा था जब शोषित लोगों की आवाज नहीं सुनी जाती है तो हिंसा ही उन लोगों की आवाज बन जाती है। याद दिला दे कि 7 मार्च 1965 को जिम्मी ली जैक्सन को पुलिस द्वारा हत्या किए जाने के बाद उसके साथी नागरिक अधिकर कार्यकर्ताओं ने इसी तरह से सड़कों पर आ कर संघर्ष किया था। आज तमाम दुनिया में जो काले लोग श्वेतों की मनमानी के खिलाफ अपनी नाराजगी दिखा रहे हैं उसकी वजह सरकार द्वारा उनकी अनदेखी करना है। पर्याप्त स्कूल, अस्पताल न होना, रोजगार देने में उनकी अनदेखी करना आदि कई भेदभाव की  बाते है। अमरीकी आंकड़ों के मुताबिक 2019 में वहां की पुलिस ने जो 1000 गोलीकांड किए उनमें 23 फीसदी शिकार काले लोग थे जो कि वहां की कुल जनसंख्या का महज बीसफीसदी है। अमेरिका में गुलामी की प्रथा करीब 250 साल पुरानी है। आज वहां जो हो रहा है वह इस बात का प्रमाण है कि मानसिक तौर पर लोग आज भी उससे मुक्त नहीं हो पाए हैं।
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