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बेबाक विचार

रोजगार पर गहरी मार

ByNI Editorial,
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विकल्प यही है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को इस रूप में खड़ा करे, जिससे सर्विस एक्सपोर्ट पर इसकी निर्भरता घटे। साथ ही देश के अंदर रिसर्च एंड डेवलपमेंट के साथ-साथ आधुनिक उद्योग धंधों का जाल भी बिछे।

यह खबर सचमुच परेशान करने वाली है कि अमेरिका में बड़ी टेक कंपनियों में जा रही नौकरियों का सबसे बड़ा शिकार वहां रहने वाले भारतीय हुए हैँ। वैसे, ये बात तार्किक भी है कि इस उद्योग में जिस देश के लोगों की सबसे ज्यादा भागीदारी है, जब संकट आएगा, तो सबसे ज्यादा मार भी उन पर ही पड़ेगी। बहरहाल, एक रिपोर्ट में बताया गया है कि गूगल, फेसबुक आदि जैसी बड़ी टेक कंपनियों ने लगभग दो लाख कर्मचारियों को हटा दिया है, जिनमें 80 हजार से अधिक भारतीय हैँ। ये भारत ऐसे वीजा पर गए थे, जिनके तहत नौकरी ना रहने पर 60 दिन के अंदर उन्हें अमेरिका छोड़ना होगा। जाहिर है, उनमें से ज्यादातर को जल्द ही भारत लौटना होगा। आखिर जिस समय नौकरियां जाने का दौर है और इस वर्ष अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मंदी ग्रस्त होने की आशंका गहराती जा रही है, नई नौकरियां मिलने की गुंजाइश को न्यूनतम ही है। अचानक नौकरी जाने से उनके पूरे पारिवारिक जीवन का ताना-बाना डगमगा जाएगा।

बहरहाल, वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में निहित यह अंतर्निहित जोखिम है। भारत जैसे देश, जिसने मैनुफैक्चरिंग और हाई टेक में अनुसंधान एवं विकास की अनदेखी की है, वहां के कुशल कर्मियों की रोजगार पाने की उम्मीद विकसित देशों से जुड़ी होती है। उन देशों में जो स्थिति पैदा होती है, उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है। इसका विकल्प यही है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को इस रूप में खड़ा करे, जिससे सर्विस एक्सपोर्ट पर इसकी निर्भरता घटे। साथ ही देश के अंदर रिसर्च एंड डेवलपमेंट के साथ-साथ आधुनिक उद्योग धंधों का जाल भी बिछे। यह प्रयास ना करने का परिणाम भारतीय कारोबार की प्रतिस्पर्धा क्षमता में लगातार गिरावट आने के रूप में आया है, जिससे हाल के वर्षों में भारत को बहुपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों से मुंह मोड़ना पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर आपदा को अवसर बनाने का मंत्र देते हैं। तो अब अमेरिका में बनी स्थिति फिर एक ऐसा मौका है, जिसे उनकी सरकार चाहे, तो अवसर बना सकती है। लेकिन अभी तक सरकार को वास्तविक नजरिया रहा है, उसके बीच ऐसा होने की उम्मीद मजबूत नहीं है।

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