बेबाक विचार

ऐसा कैसे हो सकता है?

ByNI Editorial,
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ऐसा कैसे हो सकता है?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पताल केवल दिल्ली के लोगों का इलाज करेंगे। केजरीवाल के मुताबिक दिल्ली में केंद्र सरकार के अस्पतालों के लिए इस तरह का कोई प्रतिबंध नहीं होगा। साथ ही अगर दूसरे राज्यों के लोग कुछ खास ऑपरेशनों के लिए दिल्ली आते हैं, तो उन्हें निजी अस्पतालों में उपचार कराना होगा। मुख्यमंत्री की इस घोषणा से एक दिन पहले दिल्ली सरकार की तरफ से गठित एक पांच सदस्यीय समिति ने सिफारिश की थी कि कोविड-19 संकट के मद्देनजर शहर के स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल केवल दिल्ली वालों के उपचार के लिए सीमित कर दिया जाए। अगर यह प्रस्ताव (और उसके आधार पर हुआ फैसला) बेहद समस्याग्रस्त है। क्या भारत के अंदर इलाज की ऐसी सीमाएं खींची जा सकती हैं? इसकी संवैधानिक स्थिति पर तो हमें कोर्ट की व्यवस्था का इंतजार करना होगा (खबर है कि इस फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी जा रही है), लेकिन मानवीय और एक राष्ट्रीय नजरिए से सोचें तो ये फैसला अत्यंत आपत्तिजनक लगता है। दिल्ली का सारा कारोबार रोज यहां दिल्ली के बाहर से आने वाले हजारों लोगों से चलता है। उनके योगदान से यहां की आर्थिकी बनती है। यानी दिल्ली सरकार को जो टैक्स मिलता है, इसमें उनका भी हिस्सा है। फिर गाजियाबाद, नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद आदि जैसे शहरों को मोटे तौर पर दिल्ली के सबर्ब (उपनगर) के रूप में देखा जाता है। उन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा समझा जाता है। उन्हें दिल्ली के अस्पतालों में इलाज कराने से रोकने के पीछे कैसी संकुचित सोच है, यह सवाल जरूर पूछा जाएगा। वैसे भी अपने देश में किसी को कहीं आने-जाने और वहां रोजगार या कारोबार करने का संवैधानिक अधिकार है। अगर यह अधिकार है, तो इलाज कराने का अधिकार स्वतः उन्हें मिल जाता है। क्या केजरीवाल और उनकी सरकार की बनाई कमेटी इन बातों से नावाकिफ हैं? केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के 90 प्रतिशत से अधिक लोग चाहते हैं कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान दिल्ली के अस्पताल केवल राष्ट्रीय राजधानी से ताल्लुक रखने वाले मरीजों का उपचार करें। यह नहीं मालूम कि ये राय केजरीवाल को कैसे हासिल हुई, लेकिन अगर यह सच हो तब भी न्याय एवं प्राकृतिक न्याय-आधारित कानून की कसौटी पर बिना कसे बहुमत की किसी ऐसी राय का अनुपालन सरकारें नहीं कर सकतीं।
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