बेबाक विचार

डाक्टरों के अनुभव और ड्रिंक!

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डाक्टरों के अनुभव और ड्रिंक!
एक बार जब मैं डिस्पेंसरी में खुद को दिखाने गया तो पत्नी ने मुझे देखने वाले डाक्टर से कहा कि डाक्टर साहब इन्हें समझाइए यह तो लगभग रोज ही पीते हैं। वे भी गजब के थे। उन्होंने कहा कि आप चिंता न करें मैं तो अपने मरीज को सामने बैठ कर पिलाता हूं व उसका पैग भी खुद तैयार करता हूं।... मेरा आपरेशन करने वाले एम्स के प्रमुख डा. वेणुगोपाल से पूछा कि क्या वाल्व बदलने के बाद मैं पी सकता हूं तो उन्होंने कहा कि यह अब दो पैग स्काच पी सकते हैं। हमारे चेहरो पर मुस्कान लौट आई।   कुछ साल पहले जब सरकार द्वारा सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों के रिटायर होने की उम्र बढ़ा देने की खबर पढ़ी तो सच कहता हूं कि मुझे सिद्धांतः अच्छा नहीं लगा। इसकी वजह यह है कि एक तरफ हमारे देश में बड़ी तादाद में पढ़ाई पूरी करने के बाद डाक्टर बेकार हैं वहीं दूसरी ओर सरकार रिटायर हो चुके डाक्टरों का कार्यकाल बढ़ा रही है। पर अब मेरी सोच बदलने लगी है। कनाडा जाने पर पता चला कि वहां डाक्टरों की ही नहीं किसी भी कर्मचारी के रिटायर होने की कोई उम्र नहीं होती है। जब तक लोगों का तन मन उन्हें काम करते रहने की इजाजत देता है वे लोग काम करते रहते है। अपनी इच्छा का हालत के अनुसार सरकारी या निजी नौकरी से अवकाश ग्रहण करते हैं। कनाडा जैसे देश में पहले से डाक्टरों का बहुत अभाव है। कई डाक्टर अपनी निजी प्रैक्टिस करने के अलावा सरकारी अस्पतालों में पार्ट टाइम नौकरी भी करते हैं। वहां पढ़ता था कि योग्य सर्जन या बेहोश होने की दवा देने वाले अनेस्थीसिया डाक्टरों के अभाव के कारण बड़ी तादाद में वर्षों से सैकड़ों लोगों का इलाज नहीं हो पा रहा है। पर कुछ समय पहले हुए अनुभवों के बाद यह धारणा बदल गई है। कुछ समय पहले अचानक घर में चोट से खून निकलने लगा। एक बार बीपी काफी बढ़ गया तब अपने ब्लाक में ही ऊपर रहने वाले वयोवृद्ध डाक्टर खन्ना से संपर्क किया। वे 82 साल की आयु के होने के बावजूद सक्रिय व मिलनसार है। उन्होंने मेरे घर आकर मेरा इलाज किया व मुझे परेशान न होने की सलाह दी। उनके आने से मुझे काफी सहारा व सांत्वना मिली।उनका अनुभव मेरे बहुत काम आया। अब मुझे लगता है कि जब नए डाक्टर की भरती नहीं की जा रही हो तब रिटायर हो चुके डाक्टरों के अनुभव का लाभ उठाने में कुछ भी गलत नहीं। कम से कम कोई तो मरीजों को देखने के लिए उपलब्ध है। कनाडा में तो मुझे एक भी डाक्टर निजी प्रैक्टिस करते हुए नजर तक नहीं आया। सिर्फ अपवादवस आंखों व दातों के डाक्टरों के ही क्लीनिक नजर आए। हमारे मित्र डाक्टर नीरज ने बताया कि भारत से एमबीबीएस कर चुके डाक्टर को यहां आने पर कड़ी परीक्षा देनी पड़ती है जिसे पास कर पाना बहुत मुश्किल होता है। इस दृष्टि से हमारा देश तो बीमार लोगों के लिए स्वर्ग है। हाल में फिजियोथेरेपी करवाने के बाद मुझे उसकी अहमियत का अहसास हुआ। शायद यही कारण है कि जब देश में फोन का कनेक्शन हासिल करेन के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पड़ती थी। तब भी सरकार ने डाक्टरों व नर्सो के बिना लंबे इंतजार किए हुए दो नये फोन लगवाने की व्यवस्था की हुई थी। आज तो मिनटों में फोन का कनेक्शन मिल जाता है। मैं डाक्टरों का बहुत सम्मान करता हूं व उनकी योग्यता व अनुभव का बहुत लाभ भी उठा रहा हूं। इसके बावजूद मुझे लगता है कि डाक्टर जितनी मेहनत करते हैं उन्हें उसका जीवन में उतना लाभ नहीं मिलता है। आमतौर पर बारहवीं पास करते ही डाक्टर पीएमटी की तैयारियां शुरु कर देते हैं। पहले उसे पास करने में कई साल लग जाते हैं। फिर पांच साल का कोर्स करने के दौरान अपने वरिष्ठ शिक्षकों द्वारा एकाध साल फेल कर देना बहुत सामान्य बात मानी जाती है। फिर पढ़ाई पूरी करने के बाद एमडी करने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उन्हें दाखिला बहुत मुश्किल से मिलता है। वे पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की समस्या आती है। अपनी प्रैक्टिस शुरु करना हरेक के बस की बात नहीं होती है। निजी अस्पताल में वेतन कम मिलता है व शोषण अलग से होता है। जब उनके मुकाबले महज 3-4 साल का डिप्लोमाधाी इंजीनियर कहीं बेहतर हालात में रहते हैं। जब कि डाक्टरों की सारी जवानी पढ़ाई में निकल जाती है। याद है ना जब हमारे कोविड काल के दौरान किसी मरीज के न रहने पर उसके रिश्तेदारों द्वारा डाॅक्टरों की मारपीट की खबरें पढ़ते थे। वो अलग है। डाक्टरों के साथ मेरे अनुभव बहुत गजब के रहे। जब नौकरी करता था तो अक्सर मुझे डाक्टर की प्रेस कान्फ्रेंस में भी जाना पड़ता था। शायद ही कोई ऐसे प्रेस कान्फ्रेस होती होगी जिसमें शराब न पिलायी जाती हो। इस तरह की प्रेस कान्फ्रेंस में संकेत देने के लिए निमंत्रण में कई बार यह लिखा जाता था कि प्रेस कान्फ्रेंस ‘काकटेल हाल’ में होगी। इससे यह इशारा मिल जाता था कि काकटेल हाल में पीने पिलाने का प्रबंध जरुर होगा। तब तो पीने और खाने दोनों का ही शौक था। इसे मेरी पत्नी पसंद नहीं करती थी। एक बार जब मैं डिस्पेंसरी में खुद को दिखाने गया तो पत्नी ने मुझे देखने वाले डाक्टर से कहा कि डाक्टर साहब इन्हें समझाइए यह तो लगभग रोज ही पीते हैं। वे भी गजब के थे। उन्होंने कहा कि आप चिंता न करें मैं तो अपने मरीज को सामने बैठ कर पिलाता हूं व उसका पैग भी खुद तैयार करता हूं। जब मेरा दिल का आपरेशन होना था व मैं डाक्टर को दिखाने गया तो उन्होंने कहा कि इसे तुरंत करना पड़ेगा। तुमने दवा पीली। मैंने कहां नहीं इस पर उन्होंने वजह पूछी तो मैंने कहा कि मेरा इलाज करने वाले डाॅक्र साहब ने कहा था कि जिस दिन पीनी हो उस दिन तुम खून पतला करने वाली दवा एसीट्राम मत लेना क्योंकि मैं ने पीली थी इसलिए यह दवा नहीं ली थी। डाॅक्र साहब ने खून की जांच करवाई व उसे सही पाए जाने पर अगले ही दिन दिल का आपरेशन करने का फैसला लेते हुए मुझे अस्पताल में दाखिल कर दिया। जब अस्पताल से घर गया तो डाक्टर को दिखाने जाना पड़ा। मेरे साथ मेरे बड़े भाई भी गए। वो मेरी आदतों से परिचित थे। उन्होंने मेरा आपरेशन करने वाले एम्स के प्रमुख डा. वेणुगोपाल से पूछा कि क्या वाल्व बदलने के बाद मैं पी सकता हूं तो उन्होंने कहा कि यह अब दो पैग स्काच पी सकते हैं। हमारे चेहरो पर मुस्कान लौट आई। यह पहला अवसर था कनाडा आते जाते समय मैंने खाने के पहले उपहार में मिलने वाली वाइन को छुआ तक नहीं। क्योंकि करीब दो साल पहले सब खाना पीना छोड़ देने के कारण मुझे इसके सेवन से डर लगने लगा है कहीं तबियत न खराब हो जाए। वहां भी एकदम सूफी बनकर रहा व बेटे के दोस्तों के पास जाने पर उनके अभिभावकों द्वारा बार बार कहे जाने के बाद भी कुछ नहीं लिया। हालांकि शराब पीने व शाकाहारी बनकर वह भी विदेश में रहना एक व्रत के समान है। अब तो मेरे दोस्त डाॅक्टर भी शाकाहारी हो गए हैं। मैं तो हमेशा अपने डाक्टरों की स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं ताकि मैं खुद स्वस्थ रह सकूं।
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