पांच राज्यों में संपन्न हुए चुनाव परिणामों के पहले अभी चर्चा ‘एक्जिट पोल’ पर गर्मा गई है। कई संगठनों ने अपने-अपने ढंग से यह जानने की कोशिश की है कि किस पार्टी को किस राज्य में कितनी सीटें मिलेंगी। लगभग सभी संगठन अपने-अपने ढंग से अपने अंदाजी घोड़े दौड़ाते है। वोट डाल कर बाहर आने वाले हर मतदाता से यह पूछना तो असंभव होता है कि उसने वोट किसको दिया है। इसीलिए करोड़ों मतदाताओं के वोटों का अंदाजा कुछ हजार लोगों से पूछकर लगाया जाता है। यहां इस अंदाजे में एक पेंच और भी है। वह यह कि सभी वोटर सच-सच क्यों बताएंगे कि उन्होंने अपना वोट किसको दिया है। Five state assembly election
इसीलिए इन सब ‘एक्जिट पोल’ को मैं अंदाजी घोड़े ही मानकर चलता हूं। इस बार पांच राज्यों में से चार में भाजपा के आने की संभावनाएं बताई जा रही हैं। उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में! पंजाब में आप पार्टी की जलवा दिखाई देगा, ऐसा ये एक्जिट पोल कह रहे हैं। इस तरह की परिणाम-पूर्व घोषणाएं या अनुमान कई बार गलत साबित हो चुके हैं और कई बार वे सही भी निकल आते हैं। अफवाह यह भी है कि पार्टियां ऐसी घोषणाएं योजनाबद्ध ढंग से भी करवाती हैं। जो भी हो, यदि उक्त अंदाज ठीक निकला तो भाजपा को बड़ी राहत मिलेगी, क्योंकि इस पांच राज्यों के चुनाव में भाजपा नेता काफी घबराए हुए से लग रहे थे।
उत्तरप्रदेश की जनसभाओं में सपा के नेता अखिलेश यादव के आगे भाजपा और कांग्रेस के नेता फीके-फीके दिखाई पड़ते रहे। मायावती की तो इस बार सारे प्रचारतंत्र ने लगभग उपेक्षा ही कर डाली। उ.प्र. के चुनाव का महत्व शेष राज्यों के सम्मिलित चुनाव से ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह अगले आम चुनाव का पूर्व-राग उपस्थित करेगा। पंजाब में यदि आप पार्टी की सरकार बन जाती है तो यह भारतीय राजनीति का अजूबा होगा। वह न केवल भाजपा को 2024 के चुनावों में टक्कर देने के लिए कई राज्यों में खम ठोकेगी बल्कि उसके विरुद्ध विपक्षियों का एक अखिल भारतीय गठबंधन भी खड़ा कर सकती है।
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यह तो संतोष का विषय है कि इन पांच राज्यों के चुनाव में हिंसा और धांधली की गंभीर घटनाएं नहीं हुईं लेकिन मतदान का प्रतिशत भी ज्यादा बढ़ा नहीं। भारतीय लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय यह भी है कि इन चुनावों में जातिवाद और सांप्रदायिकता का बोलबाला रहा। लोकहित के असली मुद्दे हाशिए में चले गए। सभी पार्टियों ने वोट कबाड़ने के लिए मतदाताओं को चूसनियां बांटने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सभी दलों के वक्ताओं ने राजनीतिक शील और मर्यादा का उल्लंघन करने में कोई संकोच नहीं किया। लगभग हर पार्टी में ऐसे उम्मीदवारों की संख्या भी काफी रही, जिन पर मुकदमे चल रहे हैं। अगले आम चुनावों की दिशा तय करने में इन पांच राज्यों के चुनाव परिणामों की भूमिका विशेष रहेगी।
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