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पाकिस्तानः गरीबी में आटा गीला

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पाकिस्तानः गरीबी में आटा गीला
इमरान खान ने वही किया, जिसकी संभावना इस लेख में परसों व्यक्त की गई थी। उन्होंने विपक्षियों द्वारा लाया हुआ अविश्वास प्रस्ताव रद्द करवा दिया, राष्ट्रीय सभा (संसद) भंग करवा दी और चुनावों की घोषणा करवा दी। अब पाकिस्तान के चुनाव 90 दिन बाद होंगे, ऐसा मानकर चला जा सकता है। इमरान ठीक कहते थे कि उन्होंने बाजी हारी नहीं है। उनके पास एक तुरुप का पत्ता है। अब वह उन्होंने चल दिया है। उनके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिका दायर हो जाएंगी। लेकिन अदालत अब क्या कर सकती है? संसद के उपाध्यक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव को रद्द कर दिया और राष्ट्रपति ने संसद को भंग करके चुनाव की घोषणा कर दी है। ऐसे में यदि फौज उल्टा रास्ता पकड़ ले तो ही इमरान की गाड़ी उलट सकती है। पाकिस्तान की असली मालिक फौज ही है। फौज चाहे तो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद, सरकार और न्यायपालिका सभी को भंग कर सकती है लेकिन फौज इतनी हिम्मत करेगी, इसमें मुझे संदेह है, क्योंकि सेनापति क़मर बाजवा सर्वशक्तिशाली व्यक्ति होते हुए भी मर्यादित बर्ताव करते हैं। उन्होंने कल ही एक समारोह में कहा कि वे कश्मीर की समस्या का हल बातचीत से करना चाहते हैं। pakistan PM imran khan यदि भारत तैयार हो तो वे देरी नहीं करेंगे। इमरान के सवाल पर वे जो चाहते हैं, वह तो हो ही रहा है। अब इमरान कार्यवाहक प्रधानमंत्री भर रह गए हैं। कई मुद्दों पर फैसले लेने के अधिकार से वे वंचित हो गए हैं। उन्होंने पाकिस्तान के नौजवानों के नाम संदेश जारी करके कहा था कि वे लाखों की संख्या में इकट्ठे होकर संसद को घेर लें। विपक्षियों का आरोप है कि वे विरोधी दलों के सांसदों को संसद भवन में घुसने ही नहीं देना चाहते थे। लेकिन इमरान को अब संसद घेरने की जरुरत ही नहीं पड़ी है। उनके एक मंत्री का दावा है कि विपक्ष के लोग इमरान की हत्या करवाना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि पाकिस्तान की जनता अगले चुनाव में दल-बदलुओं और विपक्ष के अनैतिक गठबंधन को हराकर ही दम लेगी। इस तर्क में कुछ दम जरुर है लेकिन पाकिस्तान की जनता मंहगाई और महामारी के कारण इतनी परेशान रही है कि वह इमरान से ऊबने लगी है। Read also रूसी तेल खरीद कर क्या मिलेगा? इमरान की स्पष्टवादिता भी उन्हें मंहगी पड़ सकती है। एक बार मंहगाई के सवाल पर वे इतने चिढ़ गए थे कि उन्होंने कह दिया कि प्रधानमंत्री का काम टमाटर और गाजर के भाव तय करना नहीं है। उन्होंने भारतीय विदेश नीति की दो बार खुले-आम तारीफ करके मुसीबत मोल ले ली है। पाकिस्तान और भारत में नेतागीरी का जलवा चमकाने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ लगातार गोलंदाजी करना बहुत जरुरी होता है। इमरान ने पिछले दो-तीन दिनों में अपनी फौज की तटस्थता का भी जिक्र किया है लेकिन फौज उनके साथ होती तो चुनाव की नौबत ही क्यों आती? पाकिस्तान की यह बदकिस्मती है कि उसकी राजनीति में कभी स्थिरता दिखाई नहीं पड़ती। आज की विषम परिस्थिति में खड़ा हुआ यह राजनीतिक संकट ऐसा है, जिसे ‘गरीबी में आटा गीला’ होना कहा जाता है। pakistan PM imran khan
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