बेबाक विचार

नागरिकताः मोदी थोड़ी हिम्मत करें

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नागरिकताः मोदी थोड़ी हिम्मत करें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज रामलीला मैदान में जो भाषण दिया, यदि वे उसकी भावना पर ठीक से अमल करें तो आज देश में जो उपद्रव हो रहा है वह बंद हो जाएगा। वह होता ही नहीं। आज भी वह बंद हो सकता है, बशर्ते कि वे नागरिकता संशोधन विधेयक को अपने भाषण के अनुरुप बना लें।उन्होंने कहा कि हम देश की किसी भी जाति, मजहब, संप्रदाय और वर्ग के विरुद्ध नहीं हैं। हमने दिल्ली की सैकड़ों कालोनियां वैध कीं, करोड़ों लोगों को गैस कनेक्शन दिए और सार्वजनिक हित के जितने भी काम किए, क्या कभी उससे उसकी जाति या धर्म पूछा ? इसमें शक नहीं कि यह बात ठीक है लेकिन क्या भारत की कोई सरकार जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव करे तो उसका कुर्सी पर टिके रहना असंभव नहीं हो जाएगा? यह जो नागरिकता संशोधन कानून सरकार ने बनाया है, इसका दोष यही है कि इसमें धार्मिक आधार पर स्पष्ट भेदभाव है। यह तो बहुत अच्छा है कि कुछ पड़ौसी मुस्लिम देशों के हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी लोगों को, यदि वे उत्पीड़ित हैं तो उन्हें शरण देने की घोषणा भारत सरकार ने की है।ऐसा करके सरकार ने गांधी, नेहरु, मनमोहनसिंह और अशोक गहलौत की इच्छा को साकार किया है लेकिन इस सूची में से मुसलमानों का नाम निकालकर नरेंद्र मोदी ने घर बैठे मुसीबत मोल ले ली है। इस प्रावधान से भारतीय मुसलमानों का कुछ लेना-देना नहीं है लेकिन इसने गलतफहमी का ऐसा अंबार खड़ा कर दिया है कि उसमें भारत के मुसलमान और हिंदू एक होकर आवाज उठा रहे हैं। सारे देश में हिंसा फैल रही है। पिछले साढ़े पांच साल में मोदी सरकार के विरुद्ध जिसे भी जितना भी गुस्सा है, वह अब इस कानून के बहाने फूटकर बाहर निकल रहा है। देश में फिजूल की हिंसा हो रही है।  मोदी सरकार ने निराश और हताश विपक्ष के हाथ में खुद ही एक हथियार थमा दिया है। इस कानून पर संयुक्तराष्ट्र से जनमत संग्रह कराने की मूर्खतापूर्ण मांग भी की जा रही है। इस मामले को इज्जत का सवाल बनाने और देश में अस्थिरता बढ़ाने की बजाय बेहतर यह होगा कि इस नागरिकता कानून में से या तो मजहबों के नाम ही हटा दें या फिर इसमें इस्लाम का नाम भी जोड़ दें। जो भी उत्पीड़ित है, उसके लिए भारत माता की शरण खुली है। प्रत्येक व्यक्ति को गुण-दोष के आधार पर ही भारत की नागरिकता दी जाए। थोक में नागरिकता देना या न देना, दोनों ही गलत है।
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