संयोग से वे मेरे घर के पास ही स्थित कोठी में रहते थे जो कि पंडारा रोड पर थी। वे किसी का अपने घर आना जाना पसंद नहीं करते थे। सुबह जल्दी उठते और नहा धोकर इडली का नाश्ता करके सो जाते और 10 बजे सोकर उठते। तब चुनाव आयोग में उनके स्टाफ के अधिकारी जरूरी फाइले लेकर आए होते। वे घर पर ही दफ्तर का कामकाज निपटाते। मैं उस समय चुनाव आयोग भी कवर करता था व उनकी प्रेस कान्फ्रेंस में भी हिस्सा लेता
हाल में चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जरुरत ऐसे मुख्य चुनाव आयुक्त की है जो पीएम के खिलाफ भी ऐक्शन ले सके। मौखिक टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील से कहा, फर्ज कीजिए किसी पीएम के खिलाफ कुछ आरोप है और मुख्य चुनाव आयुक्त को उन पर ऐक्शन लेना है। मुख्य चुनाव आयुक्त कमजोर है तो एक्शन नहीं ले सकते। क्या इसे सिस्टम को ध्वस्त करने वाला नहीं मानना चाहिए? मुख्य चुनाव आयुक्त के काम में राजनीतिक दखलअंदाजी नहीं होनी चाहिए।
कोर्ट की टिप्पणी थी कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को शामिल किया जाना चाहिए। जिससे आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो। केंद्र में किसी भी पार्टी की सरकार हो, सत्ता में बने रहना चाहती है। नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था में सरकार हां में हां मिलाने वालों की नियुक्ति कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट उस अर्जी पर सुनवाई कर रहा है जिसमें कहा गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कालीजियम जैसा सिस्टम होना चाहिए।
टीएन शेषन का पूरा नाम तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन था। बताते है कि जब राजीव गांधी ने चंद्रशेखर सरकार को सत्ता में रहने के लिए कांग्रेस का समर्थन देने का फैसला किया तो उन्होंने दो शर्ते रखी। पहला उनके मन के व्यक्ति टी एन शेषन को चुनाव आयुक्त बनाया जाए व इंटेलीजेंस ब्यूरो का प्रमुख उनके मन मुताबिक हो। टी एन शेषन चुनाव आयुक्त बनने के बाद छा गए। इसकी वजह उनका अच्छा व अनोखा आचरण दोनो थे। संयोग से वे मेरे घर के पास ही स्थित कोठी में रहते थे जो कि पंडारा रोड पर थी। वे किसी का अपने घर आना जाना पसंद नहीं करते थे। सुबह जल्दी उठते और नहा धोकर इडली का नाश्ता करके सो जाते और 10 बजे सोकर उठते।
तब चुनाव आयोग में उनके स्टाफ के अधिकारी जरूरी फाइले लेकर आए होते। वे घर पर ही दफ्तर का कामकाज निपटाते। मैं उस समय चुनाव आयोग भी कवर करता था व उनकी प्रेस कान्फ्रेंस में भी हिस्सा लेता था। उन्हें कांग्रेस का आदमी माना जाता था इसकी एक वजह राजीव गांधी की हत्या के बाद चुनाव आयोग द्वारा आम चुनाव को रद्द कर देना था। एक बार प्रेस कान्फ्रेंस में एक चुलबुले पत्रकार ने उनसे कहा कि आप मुख्य चुनाव आयुक्त है या कांग्रेस के आदमी है। यह सुनकर वे बौखला गए और उस पत्रकार को तुरंत वहां से निकल जाने को कहा। वे इतने नाराज हो रहे थे कि मुझे लगा कि कहीं वे हैड मास्टर की तरह बाहर से बेंत मंगाकर उसे पीटने न लगें। संयोग से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उस समय टीएन शेषन के तरह तरह के किस्से सुनने में मिलते थे।
इस बीच पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री बन चुके थे व टीएन शेषन उनको जरा भी अहमियत नहीं देते थे। उन्होंने टी एन शेषन के पर काटने के लिए चुनाव आयोग का विस्तार करने के लिए एमएस गिल व जीवीजी कृष्णमूर्ति को चुनाव आयुक्त नियुक्त कर उसे तीन सदस्यीय बना दिया। जीवीजी कृष्णामूर्ति पीवी नरसिंहराव के करीबी थे। फिर तो उनका शेषन के साथ टकराव होने लगा। उनके बीच टकराव इतना ज्यादा बढ़ गया कि जब एक बार जीवीजी कृष्णामूर्ति का इंटरव्यू लेने गया तो उन्होंने चलते समय मुझे एक सुंदर सा पेन भेंट करते हुए कहा कि किसी ने इस पेन का जोड़ा भेंट में दिया था।
मगर वह मद्रासी (शेषन) मेरा एक पेन चुरा कर ले गया और मेरा पेन सेट बेकार हो गया। इससे पहले तो हम उत्तर भारतीय हर दक्षिण भारतीय व्यक्ति को मद्रासी कहकर बुलाते थे। तब मुझे पहली बार अनुभव हुआ कि आंध्रप्रदेश के जीवीजी कृष्ण मूर्ति तमिलनाडू के टीएन शेषन से कितनी नफरत करते थे। असली में इसकी एक खास वजह भी थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव आंध्रप्रदेश से ही थे जबकि टीएन शेषन को दिवंगत राजीव गांधी का करीबी माना जाता था।
टीएन शेषन को 12 दिसंबर 1990 को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था व वे 11 दिसंबर 1996 तक इस पद पर रहे। वे केरल के पलक्क्ड़ जिले में पैदा हुए थे। देश में चुनाव सुधार लाने में उन्होंने गजब का योगदान दिया। उनके चुनाव आयोग के नेतृत्व संभालने के पहले चुनाव आयोग को ज्यादा अहमियत नहीं होती थी। उन्होंने पूरे चुनाव आयोग में आमूल चूल बदलाव किया। तब चुनाव के दौरान मतदाताओं को रिश्वत देने के काम करना, देर रात तक चुनाव प्रचार करना व प्रचार सामग्री से दीवारे गंदी करना बहुत आम
बात थी।
टीएन शेषन ने पूरे देश में चुनाव आयोग का व अपना खुद का रूतबा स्थापित किया। चुनाव आयोग के प्रभावी बनाने के लिए उन्होंने उस समय चली आ रही 150 कुप्रथाओं को समाप्त किया। चुनाव में शराब वितरण से लेकर भाषणों में धर्म के इस्तेमाल पर भी कड़ी रोक लगायी। उनके समय में ही यह सुधार लागू हुआ कि चुनाव के दौरान आयोग के तहत काम करने वाले सभी सरकारी कर्मचारी चुनाव आयोग के ही कर्मचारी माने जाएंगे व उनके खिलाफ आयोग मनचाही कार्रवाई कर सकता था।
उन्होंने मतदाता पहचान पत्र से लेकर आचार चुनाव संहिता तक जारी करवा कर चुनाव खर्च की सीमाएं तय की। उनका सरकार के साथ अनेक बार टकराव भी हुआ। इस कारण 1993 में तत्कालीन पीवी नरसिंहराव सरकार ने एक अध्यादेश लाकर चुनाव आयोग में दो और आयुक्त जीवीजी कृष्णमूर्ति व एमएस गिल को नियुक्त कर दिया। टीएन शेषन ने सरकार के इस कदम को अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप मानते हुए उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उनकी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया। मैं आयोग की खबरे लेने के लिए एमएस गिल व कृष्णामूर्ति के पास जाया करता था। यह बात उन्हें नापसंद थी।
जब एक बार मैंने किसी खबर के संबंध में उन्हें फोन किया तो मेरी आवाज सुनने के बाद वह गुस्से में कहने लगे ‘भारत माता की जय हो’। मैंने फिर अपना सवाल दोहराया। इस बार भी उन्होंने 'भारत माता की जय' कहते हुए कहा कि तुम जितनी बार भी अपना सवाल पूछोंगे मैं उतनी बार यही जवाब दूंगा। फिर उन्होंने फोन रख दिया। वे अपना फोन खुद उठाते थे। उन्हें उनकी सरकारी सेवाओं के लिए 1995 में रेमन मैगसेसे अवार्ड भी मिला। उन्होंने 1997 में राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ा पर वे के आर नारायण से चुनाव हार गए। ता उम्र विवादों में घिरे रहे। उन पर 1994 में कांचीपुरम में एक धार्मिक समारोह में रिलाएंस का हवाई जहाज उपयोग करने का आरोप लगा था।
विवाद ज्यादा बढ़ने पर उन्होंने विमान के किराए का चैक रिलायंस को भेज दिए। रिटायर होने के बाद उन्होंने देश भक्त ट्रस्ट बनाया। उनका कहना था कि वह देश में व्याप्त भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए अपना ट्रस्ट बना रहे हैं। वे एक धार्मिक मठ से भी जुड़े रहे है। वे सांई बाबा के भक्त रहे। वे देश के सबसे बड़े नौकरशाह कैबिनेट सेक्रेटरी भी रहे। उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी। पर यह कहते हुए उसे नहीं छपवाया कि किताब के छपने के बाद बड़ी संख्या में लोग दुखी होंगे।
उनका भारतीय पुलिस सेवा में चुनाव हो गया था मगर उन्होंने यह सोचते हुए नौकरी नहीं क्योंकि उन्हें अपराधियों से जूझना पड़ेगा। उन्होंने आइएएस की परीक्षा में टाॅप किया पर उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव सुधार में ऐसा काम कर दिखाया कि आज सुप्रीम कोर्ट तक उनकी मिसाल पेश कर रहा है। उसका मानना है कि आज देश को फिर टीएन शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त की जरुरत है। वैसे तो वे किसी भी नेता की परवाह नहीं करते थे मगर वे जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी की बहुत इज्जत करते थे जिन्होंने उन्हें हारवर्ड में पढ़ाया था।
शेषन की बात ही कुछ और थी!
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