बेबाक विचार

निशाने पर पर्यावरणवादी कार्यकर्ता

ByNI Editorial,
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निशाने पर पर्यावरणवादी कार्यकर्ता
दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षक कार्यकर्ताओं की हत्या की घटनाएं बढ़ी हैं। केवल 2019 में ही जंगलों और धरती को बचाने में लगे 212 संरक्षकों की हत्या हुई। यह उसके पिछले साल के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा है। मारे गए कार्यकर्ताओं में से करीब 40 फीसदी लोग अपने इलाकों में जमीन के पारंपरिक मालिक और स्थानीय निवासी रहे थे। लंदन स्थित ग्लोबल विटनेस नाम के एक गैर सरकारी संगठन ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि कैसे पर्यावरणवादी कार्यकर्ताओं के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। जाहिर है, इन हत्याओं के पीछे निहित स्वार्थी तत्वों का हाथ है जो प्राकृतिक संसाधनों की असीमित लूट जारी रखना चाहते हैं। ग्लोबल विटनेस का कहना है कि हमारी धरती पर जमीन सीमित है, इसलिए बढ़ती आबादी के साथ ही इस सीमित संसाधनों को लेकर विवाद भी बढ़ रहे हैं। यही कारण है कि कई इलाकों में वहां के रहने वाले मूल निवासियों और पारंपरिक समुदायों को उनकी जमीन से हटाने और बेदखल करने की तमाम कोशिशें की जाती हैं। कई ऐसे समुदायों के नेता अपने पारंपरिक इलाकों को बचाने की कोशिश करते हैं। तब उन पर हमले कराए जाने का खतरा बहुत ज्यादा है। कई मामलों में स्थानीय अल्पसंख्यकों ने किसी इलाके में खनन किए जाने, जंगल काटे जाने या एग्रीबिजनेस की योजनाओं का विरोध किया तो उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। इसके पहले मशहूर पत्रिका नेचर में 2019 में छपी एक रिपोर्ट में ऐसी हत्याओं के बढ़ते ट्रेंड पर प्रकाश डाला गया था। उसके मुताबिक 2002 से 2017 के बीच के 15 सालों में करीब 1,558 पर्यावरण संरक्षकों की जान ले ली गई। यानी हर हफ्ते चार ऐसे कार्यकर्ताओं की हत्या हुई। इनकी हत्या के आरोपियों में से केवल 10 फीसदी को ही सजा हुई। 2019 में दुनिया के जिन पांच देशों में सबसे ज्यादा कार्यकर्ता मारे गए, वे हैं- फिलिपींस, ब्राजील, मेक्सिको, रोमानिया और होंडुरास। दरअसल धुर दक्षिणपंथी नेताओं के चुने जाने के बाद ऐसी हत्याओं में इजाफा हुआ है। फिलीपींस में राष्ट्रपति डुटेर्टे के शासन में ऐसी हत्याएं काफी बढ़ीं हैं। ऐसा ही ब्राजील में राष्ट्रपति बोलसेनारो के शासनकाल में हुआ है। भारत में भी पर्यावरणवादी और तमाम तरह के अन्य अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं के लिए जोखिम बढ़ता गया है। यह चिंताजनक बात है। लेकिन अगर सरकारें ऐसे कार्यकर्ताओं का संरक्षक ना रहें, तो फिर किससे शिकायत की जा सकती है?
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