बेबाक विचार

प्रचार-तंत्र की महिमा है

ByNI Editorial,
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प्रचार-तंत्र की महिमा है
फिलीपीन्स के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति मार्कोस जूनियर की सफलता का राज यह है कि अपने पिता को उन्होंने देश के पितृ पुरुष और उनके शासनकाल को गुजरे अच्छे दिन के रूप में पेश करने में कामयाबी पा ली है। यह प्रचार तंत्र की महिमा है। फर्डिनैंड मार्कोस को फिलीपीन्स के एक क्रूर तानाशाह के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने 1965 से 1986 तक देश पर राज किया था। राष्ट्रपति निर्वाचित होने के सात साल बाद उन्होंने देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया था। कुल मिला कर उनके शासनकाल को देश के धन की लूट और मानव अधिकारों के खुलेआम उल्लंघन के लिए याद किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक उस दौरान मानव अधिकार हनन की 11 हजार से ज्यादा घटनाएं हुईं। 1983 में जब विपक्ष के नेता बेग्निनो एक्वीनो की स्वदेश लौटते ही हवाई अड्डे पर गोली मार कर हत्या कर दी गई, तो आखिर उनके खिलाफ जन विद्रोह भड़का था। मार्कोस के बेटे फर्डिनैंड मार्कोस जूनियर 1986 में 26 साल के थे, जब जन विद्रोह के कारण उनके पिता को अपने परिजनों से साथ देश से भागना पड़ा था। तब मार्कोस परिवार ने अमेरिकी राज्य हवाई में जाकर पनाह ली थी, जहां वे तीन साल रहे। 1991 में मार्कोस परिवार फिलीपीन्स लौटा था। अब उसी देश की जनता ने मार्कोस जूनियर को भारी बहुमत से देश के राष्ट्रपति पद पर बैठाने का फैसला किया है। बात सिर्फ इतनी नहीं है। बल्कि ध्यान खींचने वाली बात यह है कि सोशल मीडिया पर धुआंधार प्रचार अभियान चला कर मार्कोस जूनियर की टीम ने फिलीपीन्स के नई पीढ़ी के दिमाग से अपने पिता की क्रूर तानाशाह छवि को हटाने में सफलता पा ली है। इसके विपरीत मार्कोस सीनियर को देश के पितृ पुरुष और उनके शासनकाल को गुजरे अच्छे दिन के रूप में पेश करने में भी उसे कामयाबी मिल गई है। तो अब उस विरासत को आगे बढ़ाने के लिए फिलीपीन्स की जनता ने जनादेश दे दिया है। जाहिर है, मार्कोस को मिली भारी जीत से फिलीपीन्स के लोकतंत्र समर्थक संगठन मायूस हैँ। उनके मुताबिक ये चुनाव नतीजा दिखाता है कि न सिर्फ फिलीपीन्स, बल्कि दुनिया भर में मतदाता झूठे प्रचार से प्रभावित हो रहे हैं।
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