बेबाक विचार

मुद्दा निजता के अधिकार का

ByNI Editorial,
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मुद्दा निजता के अधिकार का
अगर आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल में विवेक की बलि चढ़ने लगे, तो वैसे इस्तेमाल के बारे में नियम तय करने की जरूरत आ पड़ती है। यही हैदराबाद में दायर हुए उस मुकदमे का सार है, जिसके तहत फेसियल रिकॉग्निशन की तकनीक (फोटो खींचने वाली मशीन) के इस्तेमाल को चुनौती दी गई है। issue right to privacy टेक्नोलॉजी के विकास को रोका नहीं जा सकता। उसके इस्तेमाल को भी सिरे से नकाराना संभव नहीं है। लेकिन इस बारे में अगर विवेक की बलि चढ़ने लगे, तो वैसे इस्तेमाल के बारे में नियम तय करने की जरूरत आ पड़ती है। यही हैदराबाद में दायर हुए उस मुकदमे का सार है, जिसके तहत फेसियल रिकॉग्निशन की तकनीक को चुनौती दी गई है। हुआ यह कि लॉकडाउन के दौरान हैदराबाद में पुलिस ने एसक्यू मसूद को सड़क पर ही रोक लिया। पुलिस ने उन्हें अपना मास्क हटाने को कहा और फिर उनकी एक फोटो खींच ली। मसूद को इसकी कोई वजह नहीं बताई गई। सामाजिक कार्यकर्ता मसूद को फिक्र हुई कि उनकी तस्वीर क्यों ली गई है और उसका क्या इस्तेमाल किया जाएगा। इसलिए उन्होंने शहर के पुलिस प्रमुख को एक कानूनी नोटिस भेजकर जवाब मांगा। कोई जवाब ना मिलने पर उन्होंने पिछले महीने एक मुकदमा दायर किया, जिसमें चेहरा पहचानने वाली तकनीक के इस्तेमाल को चुनौती दी गई है। भारत में अपनी तरह का यह पहला मामला है। एक समाचार एजेंसी से बातचीत में मसूद ने कहा- "मैं ऐसे अल्पसंख्यकों के साथ लगातार काम करता हूं, जिन्हें लगातार पुलिस परेशान करती है। इसलिए मुझे इस बात का डर है कि मेरे फोटो का दुरुपयोग किया जा सकता है।” तो अब ये मामला न्यायालय के दायरे में है।  Read also पद्म पुरस्कारों की प्रामाणिकता? गौरतलब है कि सारी दुनिया में सीसीटीवी एक आम चीज बन गए हैं। हर साल एक अरब तक नए कैमरे लगाए जा रहे हैं। एक वेबसाइट के मुताबिक चीन के कुछ शहरों के साथ भारत में हैदराबाद और दिल्ली दुनिया के सबसे अधिक सीसीटीवी वाले शहरों में शामिल हैं। जाहिर है, पिछले साल आई एक रिपोर्ट में तेलंगाना को दुनिया की सबसे अधिक निगरानी वाली जगह बताया गया था। राज्य में छह लाख से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, जिनमें से अधिकतर हैदराबाद में हैं। इसके अलावा पुलिस के पास स्मार्टफोन और टैबलेट में एक ऐप भी है जिससे वह कभी भी तस्वीर लेकर उसे अपने डेटाबेस से मिलान के लिए उयोग कर सकती है। विशेषज्ञों ने कहा है कि आज बिना फेशियल रिकग्निशन तकनीक की पकड़ में आए कहीं भी जाना असंभव है। क्या ये स्वस्थ स्थिति है? बड़ा सवाल यह है कि सरकारें नागरिकों को इतने शक की निगाह से क्यों देखने लगी हैं?
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