केंद्रीय मंत्रिमंडल से अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर का इस्तीफा इस बात का प्रमाण अवश्य है कि कृषि संबंधी जिन तीन विधेयकों को सरकार ने पारित कराया है, उनको लेकर किसानों में भारी विरोध है। मगर केंद्र और सत्ताधारी इससे विचलित नहीं हैं। तमाम विरोध के बावजूद वो विधेयकों को पारित कराने की तरफ आगे बढ़ गए हैं। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पिछले सोमवार को लोक सभा में कृषि क्षेत्र से संबंधित तीन विधेयक प्रस्तुत किए थे। ये विधेयक हैं- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक। ये तीनों विधेयक पहले अध्यादेश की शक्ल में जून में लागू कर दिए गए थे। सरकार संसद के मानसून सत्र में अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में ले आई। विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के किसान इन तीनों अध्यादेशों का जून से ही विरोध कर रहे हैं।
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक का उद्देश्य है अनाज, दालों, तिलहन, आलू और प्याज जैसी सब्जियों के दामों को तय करने की प्रक्रिया को बाजार के हवाले करना। बिल के आलोचकों का मानना है कि इससे सिर्फ बिचौलियों और बड़े उद्योगपतियों का फायदा होगा और छोटे और मझौले किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाएंगे। सत्तारूढ़ बीजेपी के पंजाब में जनाधार वाले घटक दल अकाली दल ने एक सप्ताह पहले ही सरकार से तीनों विधेयकों पर पुनर्विचार करने की अपील की थी, लेकिन सरकार ने ध्यान नहीं दिया। अकाली दल ने लोक सभा में भी सरकारी पक्ष में होने के बावजूद बिल का विरोध किया। पार्टी के नेता सुखबीर सिंह बादल ने बताया कि उनके दल की नेता और कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कैबिनेट में भी बिल का विरोध किया। लेकिन उनके विरोध को नजरअंदाज करते हुए सरकार बिल पर आगे बढ़ गई। उसके बाद उनके पास इस्तीफा देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। कुल मिलाकर किसान और विपक्षी राजनीतिक दल इन तीनों विधेयकों का आरंभ से ही विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सबसे पहले तो कोविड-19 महामारी के बीच में सरकार का कृषि क्षेत्र में इतने बड़े बदलावों को अध्यादेश के रूप में लाना सरकार की खराब मंशा को दिखाता है। उनका यह भी आरोप है कि इतने विरोध के बावजूद सरकार अध्यादेशों को कानून में बदलने से पहले भी किसानों से और उनके प्रतिनिधियों से चर्चा नहीं की गई।
किसानों का बढ़ा विरोध
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