पांच राज्यों के चुनाव परिणाम वहां अगले सत्ताधारी तय करने के साथ-साथ यह भी बताएंगे कि भारतीय राज्य-व्यवस्था आने वाले समय में क्या स्वरूप ग्रहण करेगी। फिलहाल, जो स्वरूप है उसमें देश की राजनीतिक जनादेश का अर्थव्यवस्था और आम प्रशासन से संबंध टूटा हुआ है। five state assembly election
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मतदान का आखिरी चरण पूरा होने के बाद स्वाभाविक रूप से अब सबकी निगाहें चुनाव परिणाम की तरफ टिक गई हैँ। दस मार्च को जब नतीजे आएंगे, तो आम तौर पर राजनीतिक दलों और मीडिया का ध्यान इस पर रहेगा कि इन राज्यों में अगली सरकार बनाने की स्थिति में कौन आता है। बेशक लोकतंत्र में चुनावों का पहला मकसद अगले कार्यकाल के लिए सत्ताधारी समूह का निर्वाचन ही होता है। लेकिन इसके साथ ही चुनाव देश के दीर्घकालिक भविष्य की दिशा भी तय करते हैँ। इसलिए पांच राज्यों के चुनाव परिणाम वहां अगले सत्ताधारी तय करने के साथ-साथ यह भी बताएंगे कि भारतीय राज्य-व्यवस्था आने वाले समय में क्या स्वरूप ग्रहण करेगी। फिलहाल, जो स्वरूप है उसमें देश की राजनीति का अर्थव्यवस्था और आम प्रशासन से संबंध टूटा हुआ है। यानी आर्थिक मोर्चे और आम प्रशासन के मोर्चों पर सरकार का जो प्रदर्शन रहता है, उसका जनादेश तय करने में न्यूनतम भूमिका रहती है। यही वजह है कि नोटबंदी जैसी गहरी मार या महंगाई-बेरोजगारी से पैदा हुई बदहाली के बावजूद के भारतीय जनता पार्टी जीतती रही है।
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भाजपा की सफलता का राज़ यह है कि उसने रोजमर्रा की जिंदगी के मसलों से राजनीति को मोटे तौर पर अलग कर दिया है। इसलिए मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग मतदान करते वक्त रोजी-रोजी के सवालों से ज्यादा सामाजिक-सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों को महत्त्व देता है। हालांकि ये रुझान 1990 के दशक में ही शुरू हो गया था, लेकिन 2014 में आकर इसने निर्णायक रूप ग्रहण कर लिया। तब से यह भारतीय राजनीति का ठोस निर्णायक पहलू बना हुआ है। चुनावों के पिछले दौर- यानी 2021 में हुए विधानसभा चुनावों तक यह पहलू भाजपा के प्रभाव वाले इलाकों में न सिर्फ कारगर रहा, बल्कि इसके मजबूत होने के भी संकेत मिले। अब गुरुवार को जब मौजूदा दौर के चुनावों के नतीजे सामने आएंगे, तो दीर्घकालिक नजरिए से देखने की सबसे अहम बात यही होगी कि क्या अब इस रुझान के कमजोर पड़ने के संकेत कहीं हैँ। महंगाई, बेरोजगारी, आम आर्थिक बदहाली और कोरोना महामारी की दूसरी लहर से बुरी तरह प्रभावित राज्यों- खास कर उत्तर प्रदेश में इसी पहलू पर सबसे ज्यादा निगाह रहेगी कि क्या आखिरकार रोजमर्रा की जिंदगी भावनात्मक मुद्दों पर तरजीह पाने लगी है या आठ साल पुराना रुझान अभी भी धारदार बना हुआ है। five state assembly election