परस्पर विरोधी मकसदों के लिए काम कर रहे दो गुट भारत को अपना विशेष सहयोगी मान रहे हैं। यह कहानी यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से जारी है। भारत को इसका खूब लाभ भी मिला है।
ये दोनों बातें एक ही दिन हुईं। रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने अपने देश की विदेश नीति का कॉन्सेप्ट दस्तावेज जारी किया, जिसमें चीन और भारत को रूस का खास सहयोगी बताया गया। यह भी कहा गया कि रूस की विदेश नीति का मकसद अपने सहयोगी देशों को साथ लेकर पश्चिमी वर्चस्व वाली विश्व व्यवस्था पर विराम लगाना है। उधर अमेरिकी नेतृत्व वाले सैनिक गठजोड़ नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नाटो) में अमेरिका की राजदूत जुलियाने स्मिथ ने एक महत्त्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने कहा कि नाटो भारत से अपना संबंध बढ़ाना चाहता है, बशर्ते भारत इसके लिए इच्छुक हो। गौरतलब यह है कि नाटो के नेता रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के शासन के अंत को अपना मकसद बताते रहे हैं। ध्यान देने की बात यह है कि परस्पर विरोधी मकसदों के लिए काम कर रहे दो गुट भारत को अपना विशेष सहयोगी मान रहे हैं। यह कहानी यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से जारी है। भारत को इसका खूब लाभ मिला है।
एक तरफ रूस से सस्ता तेल मिला है, तो दूसरी तरफ पश्चिमी प्रतिबंधों के लगातार उल्लंघन के बावजूद नाटो के सदस्य देश भारत के खिलाफ बोलने में भी संयम बरतते रहे हैं। जाहिरा तौर पर इसके पीछे वजह भारत की भौगोलिक और रणनीतिक स्थिति है। रूस और चीन यूरेशिया में पश्चिम की पैठ खत्म करने की रणनीति पर चल रहे हैं। यह मकसद तभी सध सकता है, जब भारत इस प्रयास में शामिल ना भी हो, तब भी कम-से-कम वह नई बनती धुरी और पश्चिमी देशों से समान दूरी बना कर चले। उधर पश्चिम का अभी भले प्रमुख टकराव रूस के साथ हो, लेकिन उनका अंतिम निशाना चीन है। चीन के खिलाफ उनकी रणनीति कारगर हो, इसके लिए जरूरी है कि भारत इसमें एक खास भूमिका निभाए। इसलिए वे रूस के सवाल पर भारत को खुद से दूर नहीं करना चाहते। भारत का चीन से खराब संबंध इस मामले में भारत के फायदे में जा रहा है। फिर भी यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि यह सुविधा स्थायी नहीं है। देर-सबेर भारत को दोनों में से किसी एक पाले को चुनना ही होगा।