भारत के 81 करोड़ से ज्यादा नागरिकों को अगले एक साल तक यानी 31 दिसंबर 2023 तक मुफ्त में पांच किलो अनाज मिलता रहेगा। सवाल है कि प्रधानमंत्री ने खुद इस योजना की घोषणा क्यों नहीं की? यह इतनी बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना है फिर भी इसकी घोषणा एक सरकारी अधिकारी ने कर दी और फिर भाजपा और सरकार के प्रवक्ताओं ने इसकी जानकारी दी। इससे पहले प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की घोषणा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी और उसके बाद जब भी इस योजना का विस्तार हुआ तो ज्यादातर मौके पर उसकी भी घोषणा खुद प्रधानमंत्री ने की थी। लेकिन इस बार वे सामने नहीं आए। ऐसा क्यों हुआ? क्या इसमें कोई पेंच है? एक सवाल और है, जिसका जवाब सबको पता है। वह सवाल है कि क्या योजना दिसंबर 2023 में समाप्त हो जाएगी? जवाब है नहीं। यह योजना आगे भी चलती रहेगी क्योंकि 2024 के मध्य में लोकसभा के चुनाव हैं। हां, उसके बाद यह योजना पुराने स्वरूप में आ सकती है।
असल में इसमें जो पेंच है वह नए और पुराने स्वरूप का ही है। एक साल तक पांच किलो अनाज बिल्कुल मुफ्त देने की जो घोषणा हुई है वह नेशनल फूड सिक्योरिटी कानून, एनएफएसए यानी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत हुई है। इस योजना के तहत पहले से नागरिकों को पांच किलो अनाज मिल रहा था। लेकिन तब उनको इसके लिए प्रतीकात्मक रूप से एक रकम देनी होती थी। इस योजना के तहत चावल के लिए तीन रुपए और गेहूं के लिए दो रुपए प्रति किलो दाम चुकाना होता था। इस योजना के ऊपर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की शुरुआत हुई थी। यानी देश के गरीब नागरिकों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत नाममात्र की कीमत पर पांच किलो अनाज मिलता था और उससे ऊपर मुफ्त में पांच किलो अनाज दिया जाता था। इस तरह नागरिकों को 10 किलो अनाज मिल रहा था। प्रति व्यक्ति उपभोग के लिहाज से एक व्यक्ति के लिए एक महीने का राशन इतना ही होता है।
अब इन दोनों योजनाओं को मिला दिया गया है। इसे खाद्य सुरक्षा की हाईब्रीड योजना कह सकते हैं। अब प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना बंद कर दी गई या उसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में मिला दिया गया। सो, यह एक बड़ी महत्वाकांक्षी योजना के बंद होने का मामला था और संभवतः इसलिए प्रधानमंत्री इसकी घोषणा करने नहीं आए और न उसके बाद के अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इसका जिक्र किया। नई योजना हाईब्रीड इसलिए है क्योंकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत नागरिकों को चावल के लिए तीन रुपए और गेहूं के लिए दो रुपए प्रति किलो के हिसाब से जो दाम चुकाना होता था वह नहीं देना होगा। यानी अब पांच किलो अनाज मिलेगा और वह पूरी तरह से निःशुल्क होगा। इस तरह मुफ्त का पांच किलो अनाज मिलना बंद हो गया और बाकी पांच किलो के लिए जो 10 या 15 रुपए हर महीने देने होते थे वह नहीं देने पड़ेंगे। सो, नई योजना से लाभार्थियों को हर महीने 10 से 15 रुपए की बचत होगी।
यह बहुत चालाकी से किया गया फैसला है। असल में सरकार 81 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त में पांच किलो और नाममात्र की कीमत पर अतिरिक्त पांच किलो अनाज देने की योजना का आर्थिक बोझ महसूस करने लगी थी। इसलिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को बंद करने का दबाव सरकार के ऊपर था। लेकिन सरकार इससे होने वाले राजनीतिक नुकसान से परिचित थी। तभी योजना को इस तरह से बंद करने का फैसला हुआ, जिससे लोगों को लगे कि योजना अभी चालू हुई है। हालांकि जो लाभार्थी हैं उनको जनवरी से ही वास्तविकता का पता चल जाएगा। इस योजना की तैयारी पहले से हो रही थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सरकार ने किसानों से अनाज की खरीद घटा दी है। पिछले साल के मुकाबले इस साल रबी की फसल की खरीद 50 फीसदी के करीब कम रही है और यह संयोग है कि नई योजना में सरकार को पहले से 50 फीसदी कम अनाज बांटना होगा।
जब सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत 81.35 करोड़ लोग को 10 किलो अनाज बांटती थी तब सरकार को एक सौ मिलियन टन यानी 10 करोड़ टन अनाज की जरूरत थी। एक योजना बंद होने से यह मात्रा घट कर 50 मिलियन टन हो गई है और यह भी संयोग है कि एक दिसंबर तक केंद्र सरकार के पास चावल और गेहूं मिला कर 55.46 मिलियन टन अनाज का भंडार था। इससे भी लगता है कि सुविचारित सोच के तहत ही अनाज की खरीद कम हुई और अंत में एक योजना को बंद कर दिया गया। हालांकि सरकारी खरीद कम होने से निजी कारोबारियों को ज्यादा मात्रा में अनाज खरीद कर भंडारण का मौका मिला है। इससे दाम में बढ़ोतरी होगी और हर नागरिक को इसकी कीमत चुकानी होगी। हर नागरिक में 81.35 करोड़ वो लोग भी शामिल हैं, जिनको पांच किलो अनाज मुफ्त मिलेगा। बाकी जरूरत का अनाज खरीदने में उनकी क्या हालत होगी उसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
बहरहाल, भारत में कुपोषण और भुखमरी की स्थिति को देखते हुए सरकार के फैसले पर चाहे जो सवाल उठाए जाएं लेकिन वित्तीय नजरिए से यह एक अच्छा फैसला है क्योंकि सरकार का बोझ बहुत कम होगा। सरकार ने खुद ही कहा है कि इस योजना पर उसे दो लाख करोड़ रुपए खर्च करने होंगे। ध्यान रहे पांच किलो मुफ्त और पांच किलो सस्ता अनाज देने पर सरकार का सालाना खर्च तीन से साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए तक था। अब सरकार को 50 मिलियन टन अनाज खरीदना होगा और इसके अलावा किसी आपदा की स्थिति के लिए बफर स्टॉक या किसी अन्य कल्याणकारी योजना के लिए 10 से 15 मिलियन टन अनाज खरीदना होगा। हाल के दिनों में सरकार हर साल 90 से एक सौ मिलियन टन अनाज खरीद रही थी। इसकी खरीद पर जो खर्च होता था वह तो था ही इसे लाभार्थियों तक पहुंचाना एक बड़े खर्च का और श्रमसाध्य काम था। सरकार ने खर्च भी कर लिया है और राजनीतिक रूप से यह मैसेज भी बनवाया है कि केंद्र सरकार 81 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त अनाज दे रही है।