इस पर आम सहमति है कि 2008 में दुनिया को आर्थिक मंदी से निकालने में जी-20 ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मगर अब जबकि जी-20 का शिखर सम्मेलन इंडोनेशिया के बाली में शुरू हुआ है, तो तब वैसी उम्मीद किसी को नहीं है।
एक अंतरराष्ट्रीय समूह के रूप में जी-20 ने 2008 में आई वैश्विक मंदी की पृष्ठभूमि में आकार ग्रह किया था। 1970 के दशक से सात सबसे धनी देश वैश्विक मामलों की दिशा तय करते आ रहे थे। लेकिन 2008 में उन्हें महसूस हुआ कि अब विश्व अर्थव्यवस्था में नई ताकतें भी उभर चुकी हैँ। बिना उन्हें साथ लिए वैश्विक मंदी से नहीं उबरा जा सकता। तो जी-20 अस्तित्व में आया। और सचमुच इस समूह की तबसे बड़ी भूमिका रही है। बल्कि इस बात पर आम सहमति है कि चीन ने उस समय की मंदी से दुनिया को निकालने में इंजन की भूमिका निभाई। मगर अब जबकि जी-20 का शिखर सम्मेलन इंडोनेशिया के बाली में शुरू हुआ है, तो तब जैसी सहमति उभरने की उम्मीद किसी को नहीं है। जबकि आज के हालात उस समय जैसे ही हैँ। इस समय दुनिया पर आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है। बल्कि यूरोप मंदी में फंस चुका है। इसकी वजह रूस पर लगाए गए प्रतिबंध हैं, जिनसे पूरा यूरोप ऊर्जा के गहरे संकट से जूझ रहा है।
महंगाई रिकॉर्ड सीमा तक बढ़ गई है। इससे उपभोक्ता अपना खर्च घटा रहे हैं, जबकि कारोबारियों ने भी निवेश के मामले में हाथ समेट लिए हैँ। उधर खाद्य और ऊर्जा आयात का बिल बढ़ने की वजह से विकासशील देश गहरे दबाव में हैँ। इससे कई देशों के कर्ज संकट में फंसने का अंदेशा है। मगर जी-20 इससे दुनिया को उबारने में क्या भूमिका निभा पाएगा, जब वह अंदरूनी तौर पर बंट चुका है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टेलिना जियोर्जियेवा की ये टिप्पणी गौरतलब है कि इस समय दुनिया और अधिक बंटती जा रही है, जबकि इस समय सबको एक दूसरे के साथ की जरूरत है। यूक्रेन युद्ध इस विभाजन का एक पहलू है। दूसरा पहलू चीन पर लगातार लगाए जा रहे अमेरिकी प्रतिबंधों से सामने आया है। इंडोनेशियाई वित्त मंत्री श्री मुलयानी इंद्रवती की ये बादकाबिल-ए-गौर हैः 2008 में सभी देशों की समान दुश्मन के खिलाफ समान चिंता थी। लेकिन इस बार वे एक-दूसरे के दुश्मन बने नजर आते हैँ। ऐसे आखिर उम्मीद का क्या आधार हो सकता है?
उम्मीद की गुंजाइश नहीं
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