बेबाक विचार

जी-20 की अध्यक्षता बड़ा मौका

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जी-20 की अध्यक्षता बड़ा मौका
भारत के बारे में राजनयिक बिरादरी में और कूटनीतिक मामलों के जानकारों के बीच यह आम धारणा है कि भारत जितनी बड़ी ताकत है उस अनुपात में वह विश्व राजनीति में अपनी भूमिका नहीं निभाता है। यह सही है कि भारत महाशक्ति नहीं है या संयुक्त राष्ट्र संघ में उसके पास वीटो का अधिकार नहीं है। लेकिन भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, दुनिया भर के उत्पादों और सेवाओं का सबसे बड़ा बाजार है और परमाणु शक्ति संपन्न है। दुनिया के कई बड़े धर्मों की उत्पत्ति वाला देश होने और अपने प्रवासियों की वजह से एक बड़ा सॉफ्ट पावर है। इसके बावजूद भारत विश्व राजनीति में बहुत सीमित भूमिका निभाता है। लेकिन जी-20 देशों की एक साल के लिए मिली अध्यक्षता भारत के लिए बड़ा मौका है। भारत इस बहाने विश्व मंच पर बड़ी भूमिका निभा सकता है। यह बड़ा मौका इसलिए भी है क्योंकि कोरोना की महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पुरानी विश्व व्यवस्था बदल रही है और नया वर्ल्ड ऑर्डर बन रहा है, जिसमें भारत एक महत्वपूर्ण प्लेयर हो सकता है। लेकिन यह तब होगा, जब भारत इस मौके का अधिकतम इस्तेमाल करेगा। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जब जी-20 की अध्यक्षता सौंपी तब प्रधानमंत्री ने चार बातें कहीं। उन्होंने जी-20 को ‘समावेशी, महत्वाकांक्षी, निर्णायक और कार्योन्मुख’ बनाने की बात कही। ऐसा लग रहा है कि ये चारों बातें बहुत सोच समझ कर तय की गई हैं। असल में इस समय दुनिया को एक ऐसी संस्था की जरूरत है, जो समावेशी हो और निर्णायक हो। ध्यान रहे यह भूमिका संयुक्त राष्ट्र संघ को निभानी थी लेकिन वह संस्था धीरे धीरे अपनी भूमिका खोती जा रही है। वहां कोई भी मसला फैसले तक नहीं पहुंच पाता है। दुनिया इस तरह से बंट गई है कि हर मामले में कोई न कोई महाशक्ति अपने वीटो का इस्तेमाल कर रही है। सोचें, किसी खूंखार आतंकवादी को वैश्विक आतंकवादी की सूची में शामिल कराना होता है और भारत-अमेरिका इसका प्रस्ताव लाते हैं तो चीन उसे वीटो करके रूकवा देता है। इसलिए यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि किसी भी मामले पर संयुक्त राष्ट्र संघ में फैसला हो पाएगा। इस लिहाज से जी-20 वह संस्था है, जो निर्णायक भूमिका निभा सकती है। यह संस्था छोटी है और समावेशी भी है क्योंकि हर महादेश और हर तरह की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले देश इसमें हैं। दुनिया की 85 फीसदी जीडीपी इन 20 देशों की होती है। तभी यह अंदेशा होता है कि ये संस्था सिर्फ अमीर और विकसित देशों के बारे में विचार करेगी। लेकिन असलियत यह है कि दुनिया की जो भी बड़ी समस्या है वह इन देशों की ही समस्या है। इसलिए अगर ये देश अपनी समस्याएं ही सुलझा लें तो दुनिया की बड़ी समस्या सुलझ जाएगी। जैसे जलवायु परिवर्तन दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। वह समस्या इन देशों की वजह से है और उससे निपटने में इन्हीं देशों को बड़ी भूमिका निभानी है। इस लिहाज से भारत के लिए यह बड़ा मौका है। भारत ने जी-20 की अध्यक्षता संभालने से पहले इसकी जो थीम जारी की है वह ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ का है। यानी धरती एक है, यह एक परिवार है और इसका साझा भविष्य है। अगर एक देश का भविष्य खराब है तो दूसरे का अच्छा नहीं हो सकता है। भारत अपनी अध्यक्षता में यह सहमति बनवा सकता है कि दुनिया के अमीर देश, जो जलवायु परिवर्तन के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार हैं वे इस समस्या से निपटने के लिए अपना खजाना खोलें। वे विकासशील और गरीब देशों को फंड दें ताकि वे जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियां रोक सकें। अभी मिस्र के शर्म अल शेख में सीओपी 27 की जो बैठक हुई है उसकी थीम यही थी कि विकसित देश मदद करें। अगर भारत अध्यक्ष रहते हुए स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में बढ़ने के लिए जरूरी संसाधानों का इंतजाम कराने में कामयाब रहता है तो यह बड़ी उपलब्धि होगी। इससे दुनिया में भारत की धाक जमेगी। भारत की अपनी समस्याएं भी काफी हद तक दूर होंगी। बाली में जी-20 शिखर सम्मेलन का समापन कार्बन उत्सर्जन की समस्या को कम करने में मददगार होने वाले मैंग्रोव फॉरेस्ट की यात्रा और वहां नए पेड़ लगाने के साथ हुई। वहां से भारत के बतौर अध्यक्ष इस अभियान को आगे बढ़ाना है। अध्यक्ष के तौर पर भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती भू राजनीतिक तनावों और टकरावों की है। इसी के साये में बाली का सम्मेलन संपन्न हुआ। सम्मेलन के दौरान रूस ने यूक्रेन पर भीषण हमला बोला और इसी क्रम में यूक्रेन की मिसाइल पोलैंड में गिर गई। पहले लगा कि रूस ने पोलैंड पर हमला किया है, जिसके बाद अचानक विश्वयुद्ध की आशंका मंडराने लगी। नाटो और जी-7 देशों की आपात बैठक भी हुई। इस घटनाक्रम के बाद शिखर सम्मेलन में जो प्रस्ताव स्वीकार किया गया उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस बात को शामिल किया गया कि यह समय युद्ध का नहीं है। प्रस्ताव में कहा गया कि ‘दिस इज नॉट द एरा ऑफ वार’। भारत को इस थीम को आगे बढ़ाना है। भारत अब तक रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर बयान जारी करता रहा है। जी-20 के अध्यक्ष के नाते भारत को पहल करनी होगी कि युद्ध समाप्त हो। भू राजनीतिक तनावों को कम करने के लिहाज से भी बाली सम्मेलन से उम्मीद बंधी है। बाली में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग की अच्छी मुलाकात हुई और ढाई साल से ज्यादा समय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनफिंग ने हाथ मिलाया। उम्मीद करनी चाहिए बात हाथ मिलाने से आगे बढ़ेगी। जी-20 के अध्यक्ष के नाते भारत को कुछ और चुनौतियां विरासत में मिल रही हैं, जिन्हें सुलझा कर या उसकी पहल करके भारत विश्व कूटनीति में अपनी छाप छोड़ सकता है। कोरोना की महामारी के बाद से दुनिया जो समस्याएं झेल रही थीं उनमें रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से इजाफा हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने बाली में पहले सत्र के अपने भाषण में कहा कि दुनिया की आपूर्ति शृंखला बुरी तरह से प्रभावित हुई है। यह हकीकत है कि ईंधन और खाद्यान्न दोनों की आपूर्ति शृंखला कमजोर हुई है या टूट गई है। दुनिया के सामने ईंधन का संकट है तो साथ ही खाद्यान्न का संकट भी है। ऐसे समय में प्रतिबंधों की राजनीति इस संकट को और बढ़ाएगी। ध्यान रहे दुनिया आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रही है और विकसित देशों ने इसके असर से बचने की तैयारी शुरू कर दी है। लेकिन अगर नीतियों को समावेशी नहीं बनाया गया या समग्रता से इस संकट के बारे में नहीं सोचा गया तो दुनिया के अनेक गरीब व पिछड़े देशों की दशा बिगड़ेगी। सो, जी-20 के अध्यक्ष के नाते भारत को रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म कराने और ईंधन व खाद्यान्न की आपूर्ति शृंखला को पहले की तरह बहाल कराने की बड़ी जिम्मेदारी निभानी है। भारत यह सारे काम कर सकता है बशर्ते कि वह हिचक छोड़े और अपनी ताकत को पहचान कर उसके अनुरूप आचरण करे। साथ ही यह भी जरूरी है कि भारत जी-20 की अध्यक्षता को सिर्फ तमगे की तरह सीने पर लगा कर न घूमे और अगले साल सितंबर में होने वाले सालाना सम्मेलन को 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिहाज से बड़े व रंगारंग इवेंट के तौर पर इस्तेमाल न करे।
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