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जी-20 बैठक: मरी चूहिया भी नहीं!

न क्वार्टर-फाइनल में कुछ और न सेमी-फाइनल बैठक में कुछ! देशों के साझे समूह काएक साझा बयानभी नहीं।अब सितंबर में फाइनल है। क्या तब भी राष्ट्राध्यक्षों के फाइनल शोमेंभारतीय मेजबानी के कूटनीतिक ओलंपिक का क्याकोई अर्थ बनेगा? आखिर कुछ तो निकलना चाहिए!भारत ने इतना तामझाम किया, घर-घरयह नगाड़ा बनवाया कि देखों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के राजा हैं! सब उनसे सलाह करते है और उन्हे मानते है। सो परिणाम में कुछ तो होना चाहिए? मगरपहले जी-20 के वित्त मंत्रियों की बैठक, फिर विदेश मंत्रियों की बैठक दोनों बिना किसी सहमति के खत्म! ऐसे में राष्ट्राध्यक्षों की फाइनल सितंबर बैठक के लिए सभी नेता हाथ मिलाने के लिए भी क्या पहुंचेंगे?कही राष्ट्राध्यक्ष भी अपने सहायकों को नहींभेज दे जैसे विदेश मंत्री कीबैठक में जापान और दक्षिण कोरिया के विदेश मंत्रियों ने अपने सहायक अभी दिल्ली भेजे!

तभी न मेजबानी का मान, न रैफरी की कोशिशों से सहमति और न ही उसके चाहे एजेंडे को खिलाडियों द्वारा गंभीरता से लेना! तब जी-20 के भारत शो मेंआगेताली बजाने को क्या है? नतीजों में मरी चुहिया भी नहीं निकलीतो  हम, भारत के लोग क्या नगाडा बजाएं? क्या यह कि विश्व नेता भारत आए है, आ रहे है और यह अपने आपमें शान बढ़ाने वाली बात है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया में अछूत नेता नहीं है बल्कि बाइडन, पुतिन, शी जिन पिंग आदि उनके हमजोली है। वे दुनिया के सरपंच है। दुनिया आपस में लड़ रहीहै लेकिन भारत सबका पंचायती चबूतरा!

अच्छी बात! इसलिएतय माना जाना चाहिएकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके विदेश मंत्री जयशंकर जी-20 की अपनी अध्यक्षता के तरानों को सितंबर तक तरह-तरह के जुमलों से गूंजाते रहेंगे। लेकिन अपने को दिखता नजर आ रहा है कि जी-20 की शिखर बैठक भी नकारखाने में तूती होगी। दुनिया का हर नेता, वैश्विक मीडिया, वैश्विक थिंक टैंक तब सोचता हुआ होगा कि हवाबाजी कोई भारत से सीखे। है कुछ नहीं मगर हवाबाजी ऐसी जैसे दुनिया मानों धान बाईस पसेरी!विश्व और वैश्विक कूटनीतिज्ञ आने वाले महिनों में भारत बनाम इंडोनेशिया में फर्क को बूझते हुए होंगे। ध्यान रहे जैसे भारत को पहली बार जी-20 की अध्यक्षता मिली है वैसे ही 2022 में इंडोनेशिया पहली बात जी-23 का मेजबान देश बना था।उसके राष्ट्रपति जोको विडोडो ने भी मौके का फायदा उठा कर अंदरूनी राजनीति में हवा बनाई। यूक्रेन-रूस लड़ाई के पचड़े से बचने के लिए जी-20 की बैठक में भूराजनीति की जगह भूआर्थिकी, खाद्य सुरक्षा, महामारी के भावी खतरों में वैश्विक फंड बनवाने, जलवायु परिवर्तन, बहुपक्षीय व्यवस्था की मजबूती जैसी बातों को जी-20 के एजेंडे में पैठाना चाहा। भारत की ताजा कोशिश की तरहजोको विडोडो ने अपनी लीडरशीप को पश्चिम बनाम रूस के पचड़े से बचाना चाहा।

बावजूद इसके जोको विडोडोने समझदारी दिखाई। बहादुरी दिखाई। रियलिटी में कूटनीति की। पहली बात संयुक्त राष्ट्र में इंडोनेशिया ने स्टेंड लिया कि किसी राष्ट्र की सार्वभौमता को दूसरे देश द्वारा भंग करना, उसे कब्जाने का हमला संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का उल्लंघन है इसलिए प्राथमिक तौर पर हमलावर के नाते रूस दोषी। इसी स्टेंड पर इंडोनेशिया ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ पेश प्रस्ताव के समर्थन में वोट दिया। जोको विडोडो ने नरेंद्र मोदी की तरह जुमला नहीं बोला कि ग्लोबल गर्वनेश फेल हुई।

सोचे एक तरफ भारत ने खुद संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में लिखी यह बात नहीं मानी की सभी देशों की संप्रभुता, राजनीतिक स्वतंत्रता और प्रादेशिक अखंडता हीनियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था-कानूनहै। कोई देश (रूस) यदिइसकोमानने के बजाय दूसरे देश (यूक्रेन) पर हमला बोल चार्टर का एकतरफा उल्लंघन करे तो उसकी निंदा के बजाय ग्लोबल गर्वनेश के खत्म होने का रोना बना कर कूटनीति करना कैसा पाखंड है? दिल्ली की जी-23 बैठक से यह सुन-देख दुनिया के विकसित-सभ्य-लोकतांत्रिक देशों में भारत की सराहना हुई होगी या भारत से एलर्जी बनी होगी? तभी गुरूवार को वैश्विक मीडिया में भारत को ले कर चर्चा थी कि कैसा देश जो ‘चित भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का’ की एप्रोचसे मेजबानी कर रहा है। दोनों नावों की सवारी से जी-20  को फिजूल का बनवा दे रहा है!

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति और विदेश मंत्रालय ने ऐसी कोई गलती नहीं की। इंडोनेशिया ने पहले तो ग्लोबल गर्वनेश के चार्टर की रक्षा और उसकी कसम में (जो भारत की भी है) संयुक्त राष्ट्र में रूस के हमले की भर्त्सना के प्रस्ताव के पक्ष में वोट (भारत अनुपस्थित) दिया। जब जी-20 की बैठक का वक्त आया तो रूस (अमेरिका के न चाहने के बावजूद) और यूक्रेन दोनों को न्यौता। राष्ट्रपति विडोडो घमासान लड़ाई के दौरान अपनी पत्नी के साथ पौलेंड के रास्ते ट्रेन में बैठ कर यूक्रेन की राजधानी कीव गए। जेलेंस्की से मिल कर उन्हे निजी तौर पर न्यौता। फिर जर्मनी की जी-7 बैठक के बीच अचानक मास्कों गए और राष्ट्रपति पुतिन को निमंत्रण दिया। ऐसे ही बीजिंग जा कर उन्होने चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग को न्यौता। वे जापान और दक्षिण कोरिया गए। दोनों देशों के  नेताओं को भरोसे में लिया। जोको विडोडोकी मेहनत-समझदारी का परिणाम था जो बाली बैठक में सभी की उपस्थिति हुई। जोको विडोडोने बूझा कियूक्रेन संकट ही जी-20 समूह का अब कोर मसला है तोउस पर साझा प्रस्ताव पास कराना होगा नहीं तो मेजबानी की कूटनैतिक साख जीरो होगी। उनकी समझदारी का परिणाम था जो बैठक में जेलेंस्की का वीडियो भाषण हुआ। पुतिन की तरफ से विदेश मंत्री सर्गेई लावरोवबैठक में थे। आखिर में जी-20 बैठक का सर्वसम्मति से बाली प्रस्ताव (सर्गेई लावरोव को लौटने दे कर) जारी हुआ। इसमें ‘यूक्रेन पर हमले’ (aggression against Ukraine)की आलोचना थी। रूस से अपनी सेनाओं की बिना शर्त वापसी (complete and unconditional withdrawal) की मांग थी।

जानकारों ने तब माना था कि बाली प्रस्ताव जी-20 केअगले अध्यक्ष भारत की मेजबानी का आसान बनाने वाला है। बाली प्रस्ताव के टेंपलेट पर दिल्ली बैठक का प्रस्ताव बनेगा। कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन हुआ क्या? रूस-चीन ने अपनी चलाई और उस टैंपलेट पर भी भारत साझा प्रस्ताव जारी नहीं कर पाया। रूस तथा चीन अड गए। रूसी अधिकारियों ने दादागिरी के साथ मीडिया को बताया पश्चिमी देशों की ब्लेकमेलिंग और धमकियों के विरोध में रूस-चीन एकजुट है। इतना ही नहीं रूस के विदेश मंत्री ने भारत की तारीफ की। उसे highly responsible बताया। मतलबदुनिया को जताया कि चीन-रूस के साथ भारत नींद में चलता हुआ है।

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